"अहिल्याबाई होल्कर" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "उन्होने" to "उन्होंने")
छो (Text replace - "खास " to "ख़ास ")
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
{{highright}}मल्हारराव के जीवन काल में ही उनके पुत्र खंडेराव का निधन 1754 ई. में हो गया था। अतः मल्हार राव के निधन के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य का शासन-भार सम्भाला था। रानी अहिल्याबाई ने 1795 ई. में अपनी मृत्यु पर्यन्त बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया। उनकी गणना आदर्श शासकों में की जाती है।{{highclose}}
 
{{highright}}मल्हारराव के जीवन काल में ही उनके पुत्र खंडेराव का निधन 1754 ई. में हो गया था। अतः मल्हार राव के निधन के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य का शासन-भार सम्भाला था। रानी अहिल्याबाई ने 1795 ई. में अपनी मृत्यु पर्यन्त बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया। उनकी गणना आदर्श शासकों में की जाती है।{{highclose}}
 
==शांति और सुरक्षा की स्थापना==
 
==शांति और सुरक्षा की स्थापना==
शासन की बागडोर जब अहिल्याबाई ने अपने हाथ मे ली, राज्य में बड़ी अशांति थी। चोर, डाकू आदि के उपद्रवों से लोग बहुत तंग थे। ऐसी हालत मे उन्होंने देखा कि राजा का सबसे पहला कर्त्तव्य उपद्रव करने वालों को काबू मे लाकर प्रजा को निर्भयता और शांति प्रदान करना है। उपद्रवों में भीलों का खास हाथ था। उन्होंने दरबार किया और अपने सारे सरदारों और प्रजा का ध्यान इस ओर दिलाते हुए घोषणा की—'जो वीर पुरुष इन उपद्रवी लोगों को काबू मे ले आवेगा, उसके साथ मैं अपनी लड़की मुक्ताबाई की शादी कर दूँगी।' इस घोषणा को सुनकर यशवंतराव फणसे नामक एक युवक उठा और उसने बड़ी नम्रता से अहिल्याबाई से कहा कि वह यह काम कर सकता है। महारानी बहुत प्रसन्न हुई। यशवंतराव अपने काम मे लग गये और बहुत थोड़े समय मे उन्होंने सारे राज्य मे शांति की स्थापना कर दी। महारानी ने बड़ी प्रसन्नता और बड़े समारोह के साथ मुक्ताबाई का विवाह यशवंतराव फणसे से कर दिया। इसके बाद अहिल्याबाई का ध्यान शासन के भीतरी सुधारों की तरफ गया। राज्य मे शांति और सुरक्षा की स्थापना होते ही व्यापार-व्यवसाय और कला-कौशल की बढ़ोत्तरी होने लगी और लोगों को ज्ञान की उपासना का अवसर भी मिलने लगा। [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के तीर पर महेश्वरी उनकी राजधानी थी। वहाँ तरह-तरह के कारीगर आने लगे ओर शीघ्र ही वस्त्र-निर्माण का वह एक सुंदर केंद्र बन गया।
+
शासन की बागडोर जब अहिल्याबाई ने अपने हाथ मे ली, राज्य में बड़ी अशांति थी। चोर, डाकू आदि के उपद्रवों से लोग बहुत तंग थे। ऐसी हालत मे उन्होंने देखा कि राजा का सबसे पहला कर्त्तव्य उपद्रव करने वालों को काबू मे लाकर प्रजा को निर्भयता और शांति प्रदान करना है। उपद्रवों में भीलों का ख़ास हाथ था। उन्होंने दरबार किया और अपने सारे सरदारों और प्रजा का ध्यान इस ओर दिलाते हुए घोषणा की—'जो वीर पुरुष इन उपद्रवी लोगों को काबू मे ले आवेगा, उसके साथ मैं अपनी लड़की मुक्ताबाई की शादी कर दूँगी।' इस घोषणा को सुनकर यशवंतराव फणसे नामक एक युवक उठा और उसने बड़ी नम्रता से अहिल्याबाई से कहा कि वह यह काम कर सकता है। महारानी बहुत प्रसन्न हुई। यशवंतराव अपने काम मे लग गये और बहुत थोड़े समय मे उन्होंने सारे राज्य मे शांति की स्थापना कर दी। महारानी ने बड़ी प्रसन्नता और बड़े समारोह के साथ मुक्ताबाई का विवाह यशवंतराव फणसे से कर दिया। इसके बाद अहिल्याबाई का ध्यान शासन के भीतरी सुधारों की तरफ गया। राज्य मे शांति और सुरक्षा की स्थापना होते ही व्यापार-व्यवसाय और कला-कौशल की बढ़ोत्तरी होने लगी और लोगों को ज्ञान की उपासना का अवसर भी मिलने लगा। [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के तीर पर महेश्वरी उनकी राजधानी थी। वहाँ तरह-तरह के कारीगर आने लगे ओर शीघ्र ही वस्त्र-निर्माण का वह एक सुंदर केंद्र बन गया।
  
 
==तहसील और ज़िलों का निर्माण==
 
==तहसील और ज़िलों का निर्माण==

14:06, 26 सितम्बर 2010 का अवतरण

चित्र:Ahilyabai-Holkar-Statue-Rajwada-Indore.JPG
अहिल्याबाई होल्कर की प्रतिमा, राजवाड़ा, इन्दौर
The Statue of Ahilyabai Holkar, Rajwada, Indore

रानी अहिल्याबाई मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थी। अहिल्याबाई किसी बड़े राज्य की रानी नहीं थीं लेकिन अपने राज्य काल में उन्होंने जो कुछ किया वह आश्चर्य चकित करने वाला है। वह एक बहादुर योद्धा और कुशल तीरंदाज थीं। उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया और हाथी पर सवार होकर वीरता के साथ लड़ी।

जीवन परिचय

अहिल्याबाई का जन्म सन् 1725 में हुआ था। अहिल्याबाई के पिता मानकोजी शिंदे एक मामूली किंतु संस्कार वाले आदमी थे। इनका विवाह इन्दौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हार राव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। सन 1745 मे अहिल्याबाई के पुत्र हुआ और तीन वर्ष बाद एक कन्या। पुत्र का नाम मालेराव और कन्या का नाम मुक्ताबाई रखा। उन्होंने बड़ी कुशलता से अपने पति के गौरव को जगाया। कुछ ही दिनों मे अपने महान पिता के मार्गदर्शन में खण्डेराव एक अच्छे सिपाही बन गये। मल्हारराव को भी देखकर संतोष होने लगा। पुत्र-वधू अहिल्याबाई को भी वह राजकाज की शिक्षा देते रहते थे। उनकी बुद्धि और चतुराई से वह बहुत प्रसन्न होते थे। मल्हारराव के जीवन काल में ही उनके पुत्र खंडेराव का निधन 1754 ई. में हो गया था। अतः मल्हार राव के निधन के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य का शासन-भार सम्भाला था। रानी अहिल्याबाई ने 1795 ई. में अपनी मृत्यु पर्यन्त बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया। उनकी गणना आदर्श शासकों में की जाती है। वे अपनी उदारता और प्रजावत्सलता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके एक ही पुत्र था मालेराव जो 1766 ई. में दिवंगत हो गया। 1767 ई. में अहिल्याबाई ने तुकोजी होल्कर को सेनापति नियुक्त किया।

निर्माण कार्य

रानी अहिल्याबाई ने भारत के भिन्न-भिन्न भागों में अनेक मन्दिरों, धर्मशालाओं और अन्नसत्रों का निर्माण कराया था। कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर , गया में विष्णु मन्दिर उनके बनवाये हुए हैं। इन्होंने घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, मार्ग बनवाए, भूखों के लिए सदाब्रत (अन्नक्षेत्र ) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की। उन्होंने अपने समय की हलचल में प्रमुख भाग लिया। रानी अहिल्याबाई ने इसके अलावा काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारिका, बद्रीनारायण, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी इत्यादि प्रसिद्ध तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाए और धर्म शालाएं खुलवायीं। कहा जाता है कि रानी अहिल्‍याबाई के स्‍वप्‍न में एक बार भगवान शिव आए। वे भगवान शिव की भक्‍त थीं और इसलिए उन्‍होंने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया।

शिव जी की भक्त

उनका सारा जीवन वैराग्य, कर्त्तव्य-पालन और परमार्थ की साधना का बन गया। भगवान शकंर की वह बड़ी भक्त थी। बिना उनके पूजन के मुँह में पानी की बूंद नहीं जाने देती थी। सारा राज्य उन्होंने शंकर को अर्पित कर रखा था और आप उनकी सेविका बनकर शासन चलाती थी। 'संपति सब रघुपति के आहि'—सारी संपत्ति भगवान की है, इसका भरत के बाद प्रत्यक्ष और एकमात्र उदाहरण शायद वही थीं। राजाज्ञाओं पर हस्ताक्षर करते समय अपना नाम नहीं लिखती थी। नीचे केवल श्री शंकर लिख देती थी। उनके रूपयों पर शंकर का लिंग और बिल्व पत्र का चित्र अंकित है ओर पैसों पर नंदी का। तब से लेकर भारतीय स्वराज्य की प्राप्ति तक इंदौर के सिंहासन पर जितने नरेश उनके बाद में आये सबकी राजाज्ञाऐं जब तक की श्रीशंकर आज्ञा जारी नहीं होती, तब तक वह राजाज्ञा नहीं मानी जाती थी और उस पर अमल भी नहीं होता था। अहिल्याबाई का रहन-सहन बिल्कुल सादा था। शुद्ध सफेद वस्त्र धारण करती थीं। जेवर आदि कुछ नहीं पहनती थी। भगवान की पूजा, अच्छे ग्रंथों को सुनना ओर राजकाज आदि मे नियमित रहती थी।

Blockquote-open.gif

Blockquote-close.gif

मल्हारराव के जीवन काल में ही उनके पुत्र खंडेराव का निधन 1754 ई. में हो गया था। अतः मल्हार राव के निधन के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य का शासन-भार सम्भाला था। रानी अहिल्याबाई ने 1795 ई. में अपनी मृत्यु पर्यन्त बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया। उनकी गणना आदर्श शासकों में की जाती है।Blockquote-close.gif |}

शांति और सुरक्षा की स्थापना

शासन की बागडोर जब अहिल्याबाई ने अपने हाथ मे ली, राज्य में बड़ी अशांति थी। चोर, डाकू आदि के उपद्रवों से लोग बहुत तंग थे। ऐसी हालत मे उन्होंने देखा कि राजा का सबसे पहला कर्त्तव्य उपद्रव करने वालों को काबू मे लाकर प्रजा को निर्भयता और शांति प्रदान करना है। उपद्रवों में भीलों का ख़ास हाथ था। उन्होंने दरबार किया और अपने सारे सरदारों और प्रजा का ध्यान इस ओर दिलाते हुए घोषणा की—'जो वीर पुरुष इन उपद्रवी लोगों को काबू मे ले आवेगा, उसके साथ मैं अपनी लड़की मुक्ताबाई की शादी कर दूँगी।' इस घोषणा को सुनकर यशवंतराव फणसे नामक एक युवक उठा और उसने बड़ी नम्रता से अहिल्याबाई से कहा कि वह यह काम कर सकता है। महारानी बहुत प्रसन्न हुई। यशवंतराव अपने काम मे लग गये और बहुत थोड़े समय मे उन्होंने सारे राज्य मे शांति की स्थापना कर दी। महारानी ने बड़ी प्रसन्नता और बड़े समारोह के साथ मुक्ताबाई का विवाह यशवंतराव फणसे से कर दिया। इसके बाद अहिल्याबाई का ध्यान शासन के भीतरी सुधारों की तरफ गया। राज्य मे शांति और सुरक्षा की स्थापना होते ही व्यापार-व्यवसाय और कला-कौशल की बढ़ोत्तरी होने लगी और लोगों को ज्ञान की उपासना का अवसर भी मिलने लगा। नर्मदा के तीर पर महेश्वरी उनकी राजधानी थी। वहाँ तरह-तरह के कारीगर आने लगे ओर शीघ्र ही वस्त्र-निर्माण का वह एक सुंदर केंद्र बन गया।

तहसील और ज़िलों का निर्माण

अहिल्याबाई होल्कर की भारतीय डाक टिकट
Indian Postage Stamp of Ahilyabai Holkar

राज्य के विस्तार को व्यवस्थित करके उसे तहसीलों और ज़िलों में बाँट दिया गया ओर प्रजा की तथा शासन की सुविधा को ध्यान मे रखते हुए तहसीलों और ज़िलों के केद्र कायम करके जहाँ-जहाँ आवश्यकता प्रतीत हुई, न्यायालयों की स्थापना भी कर दी गई। राज्य की सारी पंचायतों के काम को व्यवस्थित किया और न्याय पाने की सीढियाँ बना दी गईं। आख़िरी अपील मंत्री सुनते थे। परंतु यदि उनके फैसले से किसी को संतोष न होता तो महारानी खुद भी अपील सुनती थी।

सेनापति के रूप में

मल्हारराव के भाई-बंदों मे तुकोजीराव होल्कर एक विश्वासपात्र युवक थे। मल्हारराव ने उन्हें भी सदा अपने साथ मे रखा था और राजकाज के लिए तैयार कर लिया था। अहिल्याबाई ने इन्हें अपना सेनापति बनाया और चौथ वसूल करने का काम उन्हें सौंप दिया। वैसे तो उम्र में तुकोजीराव होल्कर अहिल्याबाई से बड़े थे, परंतु तुकोजी उन्हें अपनी माता के समान ही मानते थे और राज्य का काम पूरी लगन ओर सच्चाई के साथ करते थे। अहिल्याबाई का उन पर इतना प्रेम और विश्वास था कि वह भी उन्हें पुत्र जैसा मानती थीं। राज्य के काग़जों मे जहाँ कहीं उनका उल्लेख आता है वहाँ तथा मुहरों मे भी 'खंडोजी सुत तुकोजी होल्कर' इस प्रकार कहा गया है।

मृत्यु

राज्य की चिंता का भार और उस पर प्राणों से भी प्यारे लोगों का वियोग। इस सारे शोक-भार को अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका। और 13 अगस्त सन् 1795 को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई। अहिल्याबाई के निधन के बाद तुकोजी इन्दौर की गद्दी पर बैठा।

बाहरी कड़ियाँ

अहिल्याबाई

अहिल्याबाई की जीवन कथा