कालीबाई

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कालीबाई राजस्थान की वीरांगनाओं में से एक थीं। भारत की आजादी की लड़ाई में राजस्थान की वीरांगनाएं भी पीछे नहीं रहीं। कालीबाई ने आंदोलनों में भाग लेने के साथ-साथ महिलाओं में राष्ट्रीय चेतना का संचार भी किया था।

महारावल का आदेश

जिस समय देशी रियासतों के स्वेच्छाचारी शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए अलवर, जोधपुर, जयपुर, उदयपुर, नीम का थाना, कोटा और बूंदी में प्रजामंडलों की स्थापना की गई, उसी समय राजस्थान के डूंगरपुर में मांगीलाल पंड्या ने 1 अगस्त, 1944 को प्रजामंडल की स्थापना की।

डूंगरपुर के महारावल ने सेवा संघ द्वारा रास्तापाल में संचालित पाठशाला को बंद करने का आदेश दिया, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि राज्य के आदिवासियों में शिक्षा का प्रसार हो। डूंगरपुर महारावल के पाठशाला बंद करने के आदेश का विरोध रास्तापाल के ही सेवा संघ के कार्यकर्ता नाना भाई खाँट ने किया। इस पर पुलिस ने नाना भाई खाट तथा एक स्कूल के अध्यापक श्री सेंगा की पाठशाला के आंगन में पिटाई की। इस घटना में नाना भाई 19 जून, 1947 को डूंगरपुर रियासत की पाठशाला के समक्ष शहीद हो गए।[1]

घटनाक्रम

डूंगरपुर के महारावल ने रास्तापाल की पाठशाला को बंद करने का आदेश दिया था, जिसका पालन कराने के लिए ज़िला मजिस्ट्रेट और डीएसपी कुछ सिपाहियों को लेकर रास्तापाल की पाठशाला पहुंचे और उन्होंने स्कूल के अध्यापक श्री चंगा भाई और संरक्षक श्री नाना भाई खाट को स्कूल बंद करने के लिए कहा। पुलिस ट्रक के पीछे सेंगाभाई को बांधकर घसीटा गया। एकत्रित जनसमूह इस दृश्य को देखकर दंग रह गया। इसी समय एक 13 वर्षीय भील कन्या कालीबाई अपने खेत से घास काट कर घर लौट रही थी। वह अपने अध्यापक सिंगा जी को ट्रक के पीछे ज़मीन पर रस्सी बांध कर घसीटते ले जाने का दृश्य देख ना देख सकी। वह ट्रक के पीछे चिल्लाते हुए दौड़ी, जिससे की रस्सी को काट सके।

ट्रक में बैठे हुए अधिकारियों ने उससे दूर रहने के लिए कहा, लेकिन उसने उनकी बात नहीं मानी। फौजियों ने अपनी बंदूक तान ली। ट्रक की धीमी गति कर दी गई। ट्रक की गति धीमी होते देखकर अबोध भील बाला कालीबाई ने अपनी दांतली से अध्यापक सेंगाभाई की कमर से बंधी रस्सी को झटके से काट दिया और गुरु जी को मौत के मुंह से बचा लिया। किंतु ट्रक में बैठे हुए फौजियों ने कन्या कालीबाई को अपनी गोलियों से भून दिया, जिससे वह खून से लथपथ होकर जमीन पर गिर पड़ी और अपने जीवन की अंतिम सांस ली। श्रीमती नवलाबाई, श्रीमती मोतीबाई, श्रीमती होमलीबाई, श्रीमती लालीबाई और श्रीमती नानीबाई आदि महिलाओं ने कालीबाई को बचाने का प्रयास किया तो पुलिस ने उन पर भी गोलियां चलाई। इसी प्रकार आदिवासी भाई सासोहन को भी पुलिस की गोलियों से भून दिया, क्योंकि वह कालीबाई को बचाने का प्रयास कर रहा था।

गांव वालों ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया, जिससे डरकर पुलिस वाले भाग गये। बाद में शवों को डूंगरपुर अस्पताल ले जाया गया, जहाँ नानाभाई और कालीबाई को मृत घोषित करके शव परिजनों को सोंप दिए। इस प्रकार कालीबाई के बलिदान से सेंगाभाई के प्राण बच गये। इसके बाद पुलिस वालों का उस क्षेत्र में आने का साहस नहीं हुआ। कुछ ही दिन बाद देश स्वतंत्र हो गया।

दाह संस्कार

शहीदों के दाह संस्कार दो दिन तक गागली नदी पर संपन्न किए गए। 20 जून को नानाभाई और 21 जून को कालीबाई का शव अग्नि को समर्पित कर दिया गया।

स्मारक

रास्तापाल में लोगों ने इस आदिवासी बाला कालीबाई की याद में एक स्मारक बनवाया और बाद में डूंगरपुर में गेब सागर के सामने वाले पार्क में कालीबाई की मूर्ति लगाई, जो आज भी उसके मुक्ति संग्राम की बेदी पर शहीद होने की याद ताजा करती है।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्वतंत्रता सेनानी कोष, गांधी युगीन, भाग तीन, पृष्ठ 117 से 119

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