किब्बर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

किब्बर हिमाचल प्रदेश के दुर्गम जनजातीय क्षेत्र स्पीति घाटी में स्थित एक गाँव है। इसे 'शीत मरुस्थल' के नाम से भी जाना जाता है। गोंपाओं और मठों की इस धरती में प्रकृति के विभिन्न रूप परिलक्षित होते हैं। कभी घाटियों में फिसलती धूप देखते ही बनती है तो कभी खेतों में झूमती हुई फ़सलें मन को आकर्षित करती हैं। कभी यह घाटी बर्फ की चादर में छिप सी जाती है, तो कभी बादलों के टुकड़े यहाँ के खेतों और घरों में बगलगीर होते दिखते हैं। किब्बर की घाटी में कहीं-कहीं पर सपाट बर्फीला रेगिस्तान है तो कहीं हिमशिखरों में चमचमाती झीलें नजर आती हैं।

स्थिति

समुद्र तल से 4850 मीटर की ऊंचाई पर स्थित किब्बर गाँव में खडे होकर ऐसा महसूस होता है कि मानो आसमान ज़्यादा दूर नहीं है। यहाँ खड़े होकर दूर-दूर तक बिखरी मटियाली चट्टानों, रेतीले टीलों और इन टीलों पर बनी प्राकृतिक कलाकृतियों से रूबरू हुआ जा सकता है। यहाँ के टीले प्रकृति की सुन्दर कलाकृति माने जाते हैं। सैलानी जब इन टीलों से मुखातिब होते हैं तो इनमें बनी कलाकृतियाँ उनसे संवाद स्थापित करने को आतुर प्रतीत होती हैं। अधिकांश सैलानी इन कलाकृतियों और टीलों को कैमरे में उतार कर साथ ले जाते हैं।[1]

वर्षा की स्थिति

किब्बर की धरती पर बारिश का होना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। बादल यहाँ आते तो हैं, लेकिन शायद ही वर्षा होती है। एक तरह से बादलों को सैलानियों का खिताब दिया जा सकता है, जो आते तो हैं लेकिन पर्वतों के दूसरी ओर रुख़ कर लेते हैं। यही वजह है कि किब्बर में बारिश हुए महीनों बीत जाते हैं। यहाँ के निवासी केवल बर्फ से ही साक्षात्कार करते हैं। बर्फ भी यहाँ इतनी अधिक होती है कि कई-कई फुट मोटी तहें जम जाती हैं। जब बर्फ पड़ती है तो किब्बर अपनी ही दुनिया में कैद होकर रह जाता है। गर्मियों में धूप निकलने पर बर्फ पिघलती है तो गाँव सैलानियों की चहल-कदमी का केंद्र बन जाता है।

दुर्गम रास्ते

हिमाचल प्रदेश के इस गाँव तक पहुँचना आसान नहीं है। कुंजम दर्रे को नापकर सैलानी स्पीति घाटी में दस्तक देते हैं। इसके बाद 12 किलोमीटर का रास्ता काफ़ी कठिन है, लेकिन ज्यों ही लोसर गाँव में पहुँचते हैं, शरीर ताजादम हो उठता है। स्पीति नदी के दायीं ओर स्थित लोसर, स्पीति घाटी का पहला गाँव है। लोसर से स्पीति उपमण्डल के मुख्यालय काजा की दूरी 56 किलोमीटर है और रास्ते में हंसा, क्यारो, मुरंग, समलिंग, रंगरिक जैसे कई ख़ूबसूरत गाँव आते हैं।[1]

संस्कृति

काजा से किब्बर 20 किलोमीटर दूर है। यहाँ के लोग नाच-गाने के बहुत शौकीन हैं। यहाँ के लोक नृत्यों का अनूठा ही आकर्षण है। यहाँ की युवतियाँ जब अपने अनूठे परिधान में नृत्यरत होती हैं तो नृत्य देखने वाला मंत्रमुग्ध हो उठता है। 'दक्कांग मेला' यहाँ का मुख्य उत्सव है, जिसमें किब्बर के लोक नृत्यों के साथ-साथ यहाँ की अनूठी संस्कृति से भी साक्षात्कार किया जा सकता है।

वस्त्र

किब्बर के निवासियों का पहनावा भी काफ़ी निराला है। औरतें और मर्द दोनों ही चुस्त पायजामा पहनते हैं। सर्दी से बचने के लिये पायजामे को जूते के अन्दर डालकर बांध दिया जाता है। इस जूते को 'ल्हम' कहा जाता है। इस जूते का तला तो चमडे का होता है और ऊपरी हिस्सा गर्म कपडे से निर्मित होता है। गाँव की औरतों के मुख्य पहनावे हैं-

  1. हुजुक
  2. तोचे
  3. रिधोय
  4. लिगंचे
  5. शमों

सर्दियों में यहाँ की औरतें 'लोम', फर की एक ख़ूबसूरत टोपी पहनती हैं। इसे 'शमों' कहा जाता है। गाँव के लोग गहनों के भी शौकीन बहुत शौकीन होते हैं।

विवाह परम्परा

किब्बर गाँव में विवाह की परम्पराएँ भी निराली हैं। प्राचीन समय से ही यहाँ विवाह की एक अनूठी प्रथा रही है। इस प्रथा के अनुसार अगर किसी युवती को कोई लड़का पसंद आ जाये तो वह युवती से किसी एकांत स्थल में मिलता है और उसे कुछ धनराशि भेंट करता है, जिसे स्थानीय भाषा में 'अंग्या' कहा जाता है। यदि लड़की इस भेंट को स्वीकार कर लेती है तो समझा जाता है कि वह विवाह के लिये राजी है। लेकिन यदि लड़की भेंट स्वीकार करने से इंकार कर दे तो यह उसकी विवाह के प्रति अस्वीकृति मानी जाती है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 जी. बी., सिंह। किब्बर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख