"केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

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'''केदारनाथ सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]:'' Kedarnath Singh'') प्रमुख आधुनिक हिंदी कवियों एवं लेखकों में से हैं। केदारनाथ सिंह चर्चित कविता संकलन ‘तीसरा सप्तक’ के सहयोगी कवियों में से एक हैं। इनकी कविताओं के अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा [[अंग्रेज़ी]], स्पेनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं। कविता पाठ के लिए दुनिया के अनेक देशों की यात्राएँ की हैं।
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'''केदारनाथ सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]:'' Kedarnath Singh'', जन्म: [[7 जुलाई]], [[1934]] - [[19 मार्च]], [[2018]]) प्रमुख आधुनिक हिंदी कवियों एवं लेखकों में से हैं। केदारनाथ सिंह चर्चित कविता संकलन ‘तीसरा सप्तक’ के सहयोगी कवियों में से एक हैं। इनकी कविताओं के अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा [[अंग्रेज़ी]], स्पेनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं। कविता पाठ के लिए दुनिया के अनेक देशों की यात्राएँ की हैं।
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
केदारनाथ सिंह का जन्म [[1934]] में [[उत्तर प्रदेश]] के [[बलिया ज़िला|बलिया ज़िले]] के चकिया गाँव में हुआ था। इन्होंने [[बनारस हिंदू विश्वविद्यालय]] (बीएचयू) से [[1956]] में [[हिन्दी]] में एम.ए. और [[1964]] में पी.एच.डी की। केदारनाथ सिंह ने कई कालेजों में पढ़ाया और अन्त में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने [[कविता]] व गद्य की अनेक पुस्तकें रची हैं और अनेक सम्माननीय सम्मानों से सम्मानित हुए। आप समकालीन कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। केदारनाथ सिंह की कविता में गाँव व शहर का द्वन्द्व साफ नजर आता है। 'बाघ' इनकी प्रमुख लम्बी कविता है, जो मील का पत्थर मानी जा सकती है।
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केदारनाथ सिंह का जन्म [[7 जुलाई]], [[1934]] में [[उत्तर प्रदेश]] के [[बलिया ज़िला|बलिया ज़िले]] के चकिया गाँव में हुआ था। इन्होंने [[बनारस हिंदू विश्वविद्यालय]] (बीएचयू) से [[1956]] में [[हिन्दी]] में एम.ए. और [[1964]] में पी.एच.डी की। केदारनाथ सिंह ने कई कालेजों में पढ़ाया और अन्त में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने [[कविता]] व गद्य की अनेक पुस्तकें रची हैं और अनेक सम्माननीय सम्मानों से सम्मानित हुए। आप समकालीन कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। केदारनाथ सिंह की कविता में गाँव व शहर का द्वन्द्व साफ नजर आता है। 'बाघ' इनकी प्रमुख लम्बी कविता है, जो मील का पत्थर मानी जा सकती है।
 
==साहित्यिक परिचय==
 
==साहित्यिक परिचय==
 
यह कहना काफ़ी नहीं कि केदारनाथ सिंह की काव्‍य-संवेदना का दायरा गांव से शहर तक परिव्‍याप्‍त है या यह कि वे एक साथ गांव के भी कवि हैं तथा शहर के भी। दरअसल केदारनाथ पहले गांव से शहर आते हैं फिर शहर से गांव, और इस यात्रा के क्रम में गांव के चिह्न शहर में और शहर के चिह्न गांव में ले जाते हैं। इस आवाजाही के चिह्नों को पहचानना कठिन नहीं हैं, परंतु प्रारंभिक यात्राओं के सनेस बहुत कुछ नए दुल्‍हन को मिले भेंट की तरह है, जो उसके बक्‍से में रख दिए गए हैं। परवर्ती यात्राओं के सनेस में यात्री की अभिरुचि स्‍पष्‍ट दिखती है, इसीलिए 1955 में लिखी गई ‘अनागत’ कविता की बौद्धिकता धीरे-धीरे तिरोहित होती है, और यह परिवर्तन जितना केदारनाथ सिंह के लिए अच्‍छा रहा, उतना ही हिंदी साहित्‍य के लिए भी। बहुत कुछ [[नागार्जुन]] की ही तरह केदारनाथ के [[कविता]] की भूमि भी गांव की है। दोआब के गांव-जवार, नदी-ताल, पगडंडी-मेड़ से बतियाते हुए केदारनाथ न [[अज्ञेय]] की तरह बौद्धिक होते हैं न प्रगतिवादियों की तरह भावुक। केदारनाथ सिंह बीच का या बाद का बना रास्‍ता तय
 
यह कहना काफ़ी नहीं कि केदारनाथ सिंह की काव्‍य-संवेदना का दायरा गांव से शहर तक परिव्‍याप्‍त है या यह कि वे एक साथ गांव के भी कवि हैं तथा शहर के भी। दरअसल केदारनाथ पहले गांव से शहर आते हैं फिर शहर से गांव, और इस यात्रा के क्रम में गांव के चिह्न शहर में और शहर के चिह्न गांव में ले जाते हैं। इस आवाजाही के चिह्नों को पहचानना कठिन नहीं हैं, परंतु प्रारंभिक यात्राओं के सनेस बहुत कुछ नए दुल्‍हन को मिले भेंट की तरह है, जो उसके बक्‍से में रख दिए गए हैं। परवर्ती यात्राओं के सनेस में यात्री की अभिरुचि स्‍पष्‍ट दिखती है, इसीलिए 1955 में लिखी गई ‘अनागत’ कविता की बौद्धिकता धीरे-धीरे तिरोहित होती है, और यह परिवर्तन जितना केदारनाथ सिंह के लिए अच्‍छा रहा, उतना ही हिंदी साहित्‍य के लिए भी। बहुत कुछ [[नागार्जुन]] की ही तरह केदारनाथ के [[कविता]] की भूमि भी गांव की है। दोआब के गांव-जवार, नदी-ताल, पगडंडी-मेड़ से बतियाते हुए केदारनाथ न [[अज्ञेय]] की तरह बौद्धिक होते हैं न प्रगतिवादियों की तरह भावुक। केदारनाथ सिंह बीच का या बाद का बना रास्‍ता तय
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==सम्मान और पुरस्कार==
 
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[[चित्र:Vagdevi1.jpg|thumb|[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] प्रतीकः [[वाग्देवी]] की कांस्य प्रतिमा]]
 
[[चित्र:Vagdevi1.jpg|thumb|[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] प्रतीकः [[वाग्देवी]] की कांस्य प्रतिमा]]
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* [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]
 
* [[मैथिलीशरण गुप्त सम्मान]]
 
* [[मैथिलीशरण गुप्त सम्मान]]
 
* कुमारन आशान पुरस्कार
 
* कुमारन आशान पुरस्कार
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* [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]
 
* [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]
 
* [[व्यास सम्मान]]
 
* [[व्यास सम्मान]]
==समाचार==
 
; शुक्रवार, 20 जून, 2014
 
 
====प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह को मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार====
 
====प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह को मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार====
[[हिंदी]] की आधुनिक पीढ़ी के रचनाकार केदारनाथ सिंह को वर्ष [[2013]] के लिए देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] प्रदान किया जाएगा। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के 10वें लेखक हैं। ज्ञानपीठ की ओर से [[शुक्रवार]] [[20 जून]], [[2014]] को यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार सीताकांत महापात्रा की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में हिंदी के जाने माने कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का 49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय किया गया। केदारनाथ सिंह इस पुरस्कार को हासिल करने वाले हिंदी के 10वें रचनाकार है। इससे पहले [[हिन्दी साहित्य]] के जाने माने हस्ताक्षर [[सुमित्रानंदन पंत]], [[रामधारी सिंह दिनकर]], [[अज्ञेय, सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन|सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय]], [[महादेवी वर्मा]], [[नरेश मेहता]], [[निर्मल वर्मा]], [[कुंवर नारायण]], [[श्रीलाल शुक्ल]] और [[अमरकांत]] को यह पुरस्कार मिल चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार [[मलयालम भाषा|मलयालम]] के लेखक [[गोविंद शंकर कुरुप]] (1965) को प्रदान किया गया था। पुरस्कार के रूप में प्रो. केदारनाथ सिंह को 11 लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और [[वाग्देवी]] की प्रतिमा प्रदान की जाएगी।
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[[हिंदी]] की आधुनिक पीढ़ी के रचनाकार केदारनाथ सिंह को वर्ष [[2013]] के लिए देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] प्रदान किया गया। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के 10वें लेखक थे। ज्ञानपीठ की ओर से [[शुक्रवार]] [[20 जून]], [[2014]] को यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार सीताकांत महापात्रा की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में हिंदी के जाने माने कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का 49वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय किया गया। इससे पहले [[हिन्दी साहित्य]] के जाने माने हस्ताक्षर [[सुमित्रानंदन पंत]], [[रामधारी सिंह दिनकर]], [[अज्ञेय, सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन|सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय]], [[महादेवी वर्मा]], [[नरेश मेहता]], [[निर्मल वर्मा]], [[कुंवर नारायण]], [[श्रीलाल शुक्ल]] और [[अमरकांत]] को यह पुरस्कार मिल चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार [[मलयालम भाषा|मलयालम]] के लेखक [[गोविंद शंकर कुरुप]] (1965) को प्रदान किया गया था।  
;समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें
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==निधन==
*[http://zeenews.india.com/hindi/news/india/kedarnath-singh-will-get-highest-literary-honour-gyanpeeth-award/225867 ज़ी न्यूज]
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सुप्रसिद्ध साहित्यकार केदारनाथ सिंह (आयु- 84 वर्ष) का [[19 मार्च]], [[2018]] को [[सोमवार]] शाम [[नई दिल्ली]] के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। उन्हें 2013 में 49वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया। था। भारतीय ज्ञानपीठ के डायरेक्टर लीलाधर मंडलोई ने उनके निधन की जानकारी दी। मंडलोई के अनुसार, "केदारनाथ सिंह को [[कोलकाता]] में न्यूमोनिया हो गया था। उनका करीब एक महीने से इलाज चल रहा था। वे साल ठंड में अपनी बहन के यहां कोलकाता जाते थे।" "उनकी हालत में सुधार हुआ था लेकिन बाद में उनकी तबीयत बिगड़ गई। केदारनाथ सिंह को [[दिल्ली]] के [[साकेत]] और मूलचंद अस्पताल में भर्ती कराया गया था, बाद में उन्हें एम्स में स्थानांतरित कर दिया गया।" एम्स के सूत्रों ने बताया कि सिंह को 13 मार्च को वहां लाया गया था।
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/06/140620_jnanpith_award_kedarnathsingh_sk.shtml बी.बी.सी. हिंदी]
 
*[http://hindi.webdunia.com/literature-articles/49%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A0-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B-%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9-%E0%A4%95%E0%A5%8B-1140621033_1.htm वेबदुनिया हिंदी]
 
*[http://www.jansatta.com/index.php?option=com_content&view=article&id=71527:2014-06-21-03-33-24&catid=1:2009-08-27-03-35-27 जनसत्ता]
 
  
  

08:00, 21 मार्च 2018 का अवतरण

केदारनाथ सिंह
केदारनाथ_सिंह
पूरा नाम केदारनाथ सिंह
जन्म 7 जुलाई, 1934
जन्म भूमि चकिया गाँव, बलिया (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु 19 मार्च, 2018
मृत्यु स्थान नई दिल्ली
कर्म-क्षेत्र कवि, लेखक
मुख्य रचनाएँ अभी बिल्कुल अभी, ज़मीन पक रही है, यहाँ से देखो, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ, बाघ, तालस्ताय और साइकिल
भाषा हिंदी
विद्यालय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
शिक्षा एम.ए. (हिंदी), पी.एच.डी.
पुरस्कार-उपाधि ज्ञानपीठ पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी इनकी कविताओं के अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, स्पेनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

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केदारनाथ सिंह (अंग्रेज़ी: Kedarnath Singh, जन्म: 7 जुलाई, 1934 - 19 मार्च, 2018) प्रमुख आधुनिक हिंदी कवियों एवं लेखकों में से हैं। केदारनाथ सिंह चर्चित कविता संकलन ‘तीसरा सप्तक’ के सहयोगी कवियों में से एक हैं। इनकी कविताओं के अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, स्पेनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं। कविता पाठ के लिए दुनिया के अनेक देशों की यात्राएँ की हैं।

जीवन परिचय

केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई, 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के चकिया गाँव में हुआ था। इन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से 1956 में हिन्दी में एम.ए. और 1964 में पी.एच.डी की। केदारनाथ सिंह ने कई कालेजों में पढ़ाया और अन्त में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने कविता व गद्य की अनेक पुस्तकें रची हैं और अनेक सम्माननीय सम्मानों से सम्मानित हुए। आप समकालीन कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। केदारनाथ सिंह की कविता में गाँव व शहर का द्वन्द्व साफ नजर आता है। 'बाघ' इनकी प्रमुख लम्बी कविता है, जो मील का पत्थर मानी जा सकती है।

साहित्यिक परिचय

यह कहना काफ़ी नहीं कि केदारनाथ सिंह की काव्‍य-संवेदना का दायरा गांव से शहर तक परिव्‍याप्‍त है या यह कि वे एक साथ गांव के भी कवि हैं तथा शहर के भी। दरअसल केदारनाथ पहले गांव से शहर आते हैं फिर शहर से गांव, और इस यात्रा के क्रम में गांव के चिह्न शहर में और शहर के चिह्न गांव में ले जाते हैं। इस आवाजाही के चिह्नों को पहचानना कठिन नहीं हैं, परंतु प्रारंभिक यात्राओं के सनेस बहुत कुछ नए दुल्‍हन को मिले भेंट की तरह है, जो उसके बक्‍से में रख दिए गए हैं। परवर्ती यात्राओं के सनेस में यात्री की अभिरुचि स्‍पष्‍ट दिखती है, इसीलिए 1955 में लिखी गई ‘अनागत’ कविता की बौद्धिकता धीरे-धीरे तिरोहित होती है, और यह परिवर्तन जितना केदारनाथ सिंह के लिए अच्‍छा रहा, उतना ही हिंदी साहित्‍य के लिए भी। बहुत कुछ नागार्जुन की ही तरह केदारनाथ के कविता की भूमि भी गांव की है। दोआब के गांव-जवार, नदी-ताल, पगडंडी-मेड़ से बतियाते हुए केदारनाथ न अज्ञेय की तरह बौद्धिक होते हैं न प्रगतिवादियों की तरह भावुक। केदारनाथ सिंह बीच का या बाद का बना रास्‍ता तय करते हैं। यह विवेक कवि शहर से लेता है, परंतु अपने अनुभव की शर्त पर नहीं, बिल्‍कुल चौकस होकर। केदारनाथ सिंह की कविताओं में जीवन की स्‍वीकृति है, परंतु तमाम तरलताओं के साथ यह आस्तिक कविता नहीं है।[1]

मैं जानता हूं बाहर होना एक ऐसा रास्‍ता है
जो अच्‍छा होने की ओर खुलता है
और मैं देख रहा हूं इस खिड़की के बाहर
एक समूचा शहर है

मुख्य कृतियाँ

कविता संग्रह
  • अभी बिल्कुल अभी
  • जमीन पक रही है
  • यहाँ से देखो
  • बाघ
  • अकाल में सारस
  • उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ
  • तालस्ताय और साइकिल
आलोचना
  • कल्पना और छायावाद
  • आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान
  • मेरे समय के शब्द
  • मेरे साक्षात्कार
संपादन
  • ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन)
  • समकालीन रूसी कविताएँ
  • कविता दशक
  • साखी (अनियतकालिक पत्रिका)
  • शब्द (अनियतकालिक पत्रिका)

सम्मान और पुरस्कार

ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रतीकः वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा

प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह को मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार

हिंदी की आधुनिक पीढ़ी के रचनाकार केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 के लिए देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के 10वें लेखक थे। ज्ञानपीठ की ओर से शुक्रवार 20 जून, 2014 को यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार सीताकांत महापात्रा की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में हिंदी के जाने माने कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का 49वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय किया गया। इससे पहले हिन्दी साहित्य के जाने माने हस्ताक्षर सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, निर्मल वर्मा, कुंवर नारायण, श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को यह पुरस्कार मिल चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार मलयालम के लेखक गोविंद शंकर कुरुप (1965) को प्रदान किया गया था।

निधन

सुप्रसिद्ध साहित्यकार केदारनाथ सिंह (आयु- 84 वर्ष) का 19 मार्च, 2018 को सोमवार शाम नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। उन्हें 2013 में 49वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया। था। भारतीय ज्ञानपीठ के डायरेक्टर लीलाधर मंडलोई ने उनके निधन की जानकारी दी। मंडलोई के अनुसार, "केदारनाथ सिंह को कोलकाता में न्यूमोनिया हो गया था। उनका करीब एक महीने से इलाज चल रहा था। वे साल ठंड में अपनी बहन के यहां कोलकाता जाते थे।" "उनकी हालत में सुधार हुआ था लेकिन बाद में उनकी तबीयत बिगड़ गई। केदारनाथ सिंह को दिल्ली के साकेत और मूलचंद अस्पताल में भर्ती कराया गया था, बाद में उन्हें एम्स में स्थानांतरित कर दिया गया।" एम्स के सूत्रों ने बताया कि सिंह को 13 मार्च को वहां लाया गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. केदारनाथ सिंह का काव्य-संसार (हिंदी) हिंदी साहित्य। अभिगमन तिथि: 2 जुलाई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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