गन्ना

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गन्ने

गन्ना सारे विश्व में पैदा होने वाली एक पुमुख फ़सल है। भारत को गन्ने का 'जन्म स्थान' माना जाता है, जहाँ आज भी विश्व में गन्ने के अन्तर्गत सर्वाधिक क्षेत्रफल 35 प्रतिशत क्षेत्र पाया जाता है। वर्तमान में गन्ना उत्पादन में 'भारत का विश्व में प्रथम स्थान' है। यद्यपि ब्राजील एवं क्यूबा भी भारत के लगभग बराबर ही गन्ना पैदा करते हैं। देश में र्निमित सभी मुख्य मीठाकारकों के लिए गन्ना एक मुख्य कच्चा माल है। इसका उपयोग दो प्रमुख कुटीर उद्योगों मुख्यत: गुड़ तथा खंडसारी उद्योगों में भी किया जाता है। इन दोनों उद्योगों से लगभग 10 मिलियन टन मीठाकारकों[1] का उत्पादन होता है, जिसमें देश में हुए गन्ने के उत्पादन का लगभग 28-35% गन्ने का उपयोग होता है।

वाणिज्यिक फ़सल

आज वर्तमान समय में गन्ना देश की एक प्रमुख वाणिज्यिक फ़सल है और लगभग 4.36 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है। 2002-2003 में गन्ने का वार्षिक उत्पादन 281.6 मिलियन टन था। गन्ने की खेती कुल कृषि क्षेत्र के लगभग 3.0% भाग में की जाती है। यह प्रमुख नकदी फ़सलों में से एक है, जिसका देश में कृषि उत्पादन का सकल मूल्य लगभग 7.5% है। लगभग 50 मिलियन किसान अपनी जीविका के लिए गन्ने की खेती पर निर्भर हैं और इतने ही खेतिहर मज़दूर हैं, जो गन्ने के खेतों में काम करके अपनी जीविका कमाते हैं।

गन्ने की उपलब्धता

भारत में गन्ने की खेती का मुख्य भाग अर्ध-उष्णकटिबंधीय भाग है। इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, बिहार, पंजाब, हरियाणा मुख्य गन्ना उत्पादक राज्य हैं। मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और असम के भी कुछ क्षेत्रों में गन्ना पैदा किया जाता है, लेकिन इन राज्यों में उत्पादकता बहुत ही कम है। गन्ने की खेती व्यापक रुप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में की जाती है, जिसमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात राज्य शामिल हैं। चूंकि गन्ना, जो एक उष्णकटिबंधीय फ़सल है, के लिए इन राज्यों में अनुकूलतम कृषि जलवायु स्थित है। अर्ध-ऊष्ण-कटिबंधीय क्षेत्रों की तुलना में ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पैदावार अपेक्षाकृत अधिक है।

भौगोलिक दशाएँ

गन्ना मुख्यतः अयनवृत्तीय पौधा है। भारत में इसकी खेती 8° उत्तरी अक्षांश से 32° उत्तरी अक्षांश तक की जाती है। इसके लिए निम्न दशाओं की आवश्यकता होती है-

तापमान

भारत में गन्ने की फ़सल को तैयार होने में लगभग एक वर्ष का समय लग जाता है। अंकुर निकलने के समय 20° सेंटीग्रेड का तापमान लाभदायक रहता है, किन्तु बढ़ने के लिए 20° सेंटीग्रेड से 30° सेंटीग्रेड के तापमान की आवश्यकता पड़ती है। 30° सेंटीग्रेड से अधिक और 16° सेंटीग्रेड से नीचे के तापमान में यह पैदा नहीं होता है। अत्यधिक शीत और पाला फ़सल के लिए हानिकारक होता है। साधारणतः इसके लिए लम्बी और तापयुक्त गर्मियाँ ही अनुकूल रहती हैं।

गन्ने

वर्षा

गन्ना 100 से 200 सेण्टीमीटर वर्षा वाले भागों में भली प्रकार पैदा किया जा सकता है। कई क्षेत्रों में तो 150 से 250 सेण्टीमीटर की वर्षा वाले भागों में भी यह पैदा होता है। यदि वर्षा की मात्रा कम होती है तो पौधे को सिंचाई के सहारे पैदा किया जाता है। गर्मी में पौधे को कम से कम चार बार सींचने और गोड़ने से एक-एक पोधें में कई अंकुर निकल आते हैं और वह भूमि में भली प्रकार जम जाता है। खेतों में फ़सल तैयार होते समय लम्बे समय तक पानी भरा रहने से गन्ने में शर्करा प्रतिशत में कमी आने लगती है।

मिट्टी

गन्ने के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी तथा नमी से पूर्ण भूमि, विशेषतः गहरी और चिकनी दोमट मिट्टी, उपयुक्त होती है। दक्षिण की लावा से युक्त भूमि में भी गन्ना पैदा किया जाता है। गन्ने के पौधे को पर्याप्त खाद की आवश्यकता होती है। अतः साधारणतः गन्ना तीन-वर्षीय हेर-फेर के साथ बोया जाता है। गोबर, कम्पोस्ट अथवा अन्य प्रकार की प्राणिज खादों और सनई, ढेंचा आदि हरी खाद, अमोनियम सल्फेट और सुपरफॉस्फेट आदि का भी खाद के रूप में पर्याप्त प्रयोग किया जाता है।

श्रम

गन्ने को रोपने, निराई-गुड़ाई करने और काटकर बण्डल बनाने तथा समय-समय पर सिंचाई करने के लिए पर्याप्त मात्रा में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है।

  • गन्ना सामुद्रिक वायु के सम्पर्क से बहुत अच्छे और अधिक रस वाला बनता है। इस प्रकार की अनुकूल अवस्थाएँ भारत के तटीय क्षेत्र में पाई जाती है। इसी कारण दक्षिण भारत में प्रति हेक्टेअर उत्पादन भी उत्तर भारत की अपेक्षा अधिक होता है।

गन्ने की कृषि

गन्ना साधारणतः मध्य दिसम्बर से मार्च तक बोया जाता है तथा आगामी दिसम्बर से मार्च के मध्य तक काट लिया जाता है। गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में अदसाली फ़सल जून से जुलाई तक बोयी जाती है, जबकि नयी पौध जनवरी में उगाई जाती है।

गन्ने

तमिलनाडु में पौध लगाने का समय मार्च से सितम्बर तक होता है। भारत में एक बार का बोया पौधा तीन वर्षों तक अच्छी फ़सल देता है। उपजाऊ भूमि, अच्छी सिंचाई और उपयुक्त तापमान में गन्ने का पौधा अच्छी तरह पनपता है। कभी कभी तो यह 7.5 मीटर तक ऊंचा हो जाता है। विश्व के अन्य देशों, जावा, क्यूबा, मॉरीशस, ब्राजील और फिजी आदि में गन्ने की फ़सल 20 से 24 माह पश्चात् काटी जाती है। अतः वहाँ की उपज बहुत अधिक होती है। भारत में जलवायु सम्बन्धी भिन्नताओं के कारण दक्षिणी भारत में अधिक शर्करा वाला मोटा गन्ना उत्पन्न होता है एवं ज्यों-ज्यों उत्तर की ओर बढ़ते हैं त्यों त्यों गन्नें में रेशे का अंश बढ़ता जाता है और मिठास की मात्रा भी कम हो जाती है। बिहारपश्चिम बंगाल में पतली किस्म का गन्ना पैदा होता है। उत्तरी भारत में शुष्क ऋतु अधिक लंबी होती है, फलस्वरूप गन्ने का रस सूखने लगता है, जबकि दक्षिण भारत की आर्द्र समुद्री जलवायु के कारण गन्ने में रस की मात्रा अधिक होती है।

उत्पादक क्षेत्र

उत्तरी भारत से देश के उत्पादन का 50 प्रतिशत गन्ना मिलता है, किन्तु इसका प्रति हेक्टेअर उत्पादन दक्षिण भारत की अपेक्षा कम है, जहाँ कर्नाटक में यह उत्पादन 84,361 किलोग्राम, तमिलनाडु में 1,06778 किलोग्राम, आन्ध्र प्रदेश में 65,756 किलोग्राम है, वहीं राजस्थान में केवल 41,578 किलोग्राम, पंजाब में 60,000 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर ही है। भारत में उत्पादित गन्ने का 40 प्रतिशत गुड़ एवं 50 प्रतिशत चीनी बनाने में प्रयुक्त होता है।

यद्यपि गन्ने की कृषि के लिए उत्तरी भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत भौगोलिक सुविधाओं की दृष्टि से अधिक अनुकूल है, तथापि अधिक गन्ना उत्तरी भारत में ही पैदा किया जाता रहा है। अकेला उत्तर प्रदेश देश की उपज का 35.81 प्रतिशत, महाराष्ट्र 25.4 प्रतिशत, तमिलनाडु 10.93 प्रतिशत पैदा करते हैं अर्थात् ये तीनों राज्य देश के कुल गन्ना उत्पादन का 72 प्रतिशत उत्पादन करते हैं। इधर पिछले दो दशकों से दक्षिण के राज्यों में गन्ने की उपज में पर्याप्त वृद्धि की गयी है। 1970 के पश्चात् दक्षिण भारत के गन्ने के उत्पादन में वृद्धि हुई है। वर्ष 2008-2009 में देश में 4.4 मिलियन हेक्टेअर क्षेत्र में गन्ना बोया गया, जिसमें 173.9 मिलियन टन गन्ने का उत्पादन हुआ। वर्ष 2008-2009 में गन्ने का प्रति हेक्टेअर उत्पादन 62 टन रहा। दक्षिणी राज्यों में आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु में गन्ने का उत्पादन अधिक होता है। इन राज्यों में प्रति हेक्टेअर गन्ने की उपज भी उत्तर भारत की तुलना में अधिक होती है। यही कारण है कि अधिकांश नयी चीनी मिलों की स्थापना इन राज्यों में हुई है।

गंगा की घाटी में उत्पादन

गंगा की ऊपरी व मध्यवर्ती घाटी में ही सर्वाधिक गन्ना पैदा किया जाता रहा है, क्योंकि-

  1. यहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ के समय खेतों में कछारी मिट्टी फैल जाती है।
  2. जल कम गइराई पर मिल जाता है, जिससे सिंचाई आसानी से हो जाती है।
  3. वर्षा भी 100 सेंटीमीटर तक हो जाती है।
  4. प्रायः यहाँ पर पाले का अभाव रहता है।
  5. घनी जनसंख्या होने के कारण मज़दूर सस्ते और आसानी से मिल जाते है।
  6. समतल मैदान होने के कारण खेती सरलतापूर्वक की जा सकती है।
  7. तापमान लगभग 27° सेंटीग्रेड तक रहता है, जबकि दक्षिणी भारत की लावा की चिकनी मिट्टी लगातार ऊंचे तापमान एवं आवश्यक सिंचाई द्वारा जल एवं उन्नत कृषि तकनीक सभी ने इस क्षेत्र को गन्ने के लिए आदर्श क्षेत्र बना दिया है।

आन्ध्र प्रदेश में गन्ने की कृषि गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के डेल्टाओं में सर्वाधिक होती है, क्योंकि इस प्रदेश में उपयुक्त नदियों के डेल्टों में नहरों द्वारा सिंचाई करने की विशेष सुविधा प्राप्त है। पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी, कृष्णा, विशाखापत्तनम, श्रीकाकुलम और त्रिचूर हैं।

तेलंगाना का निज़ामाबाद गन्ने का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है।

गन्ने की जूस की दुकान

तमिलनाडु में कोयम्बटूर, रामनाथपुरम्, तिरुचिरापल्ली, उत्तरी और दक्षिणी अर्काट एवं मदुरै ज़िलों में गन्ने की कृषि विशेष रूप से होती है। कोयम्बटूर में गन्ने की अनुसन्धानशाला भी है, जिससे गन्ने की कृषि के उन्नत उपायों और नयी किस्मों के अनुसन्धान में सहायता मिलती है। देश में गन्ना उत्पादन में इसका तीसरा स्थान है।

महाराष्ट्र में गन्ने का क्षेत्र नासिक के दक्षिण में गोदावरी की ऊपरी घाटी में स्थित है। सांगली, सतारा, अहमदनगर, नासिक, पुणे और शोलापुर प्रमुख उत्पादक ज़िले हैं। यहाँ गन्ने की सिंचाई के लिए अनेक योजनाएँ बनायी गयी हैं। तापमान वर्ष भर सम रहता है, जिससे गन्ने से अधिक रस की प्राप्ति होती है। गन्ने के उत्पादन की दृष्टि से यह भारत का दूसरा महत्त्वपूर्ण राज्य है। राष्ट्रीय उत्पादन में इसका द्वितीय स्थान है। यहाँ का वार्षिक उत्पादन यद्यपि 2.5 से 3.0 करोड़ टन ही है, किन्तु अधिकांश गन्ने से शक्कर बनाई जाती है। उत्पादकता अर्थात् प्रति हेक्टेअर उपज देश में सर्वाधिक है और चीनी की प्राप्ति अधिक है।

कर्नाटक में गन्ने का उत्पादक तुंगभद्रा, कावेरी और कृष्णाराज सागर बांध से निकाली गयी नहरों के सहारे शिवामोग्गा, रायचूर, कोलार, मंड्या, बेल्लारी और पश्चिमी बेलगामी ज़िलों में किया जाता है।

हरियाणा भी महत्त्वपूर्ण गन्ना उत्पादक राज्य है, जहाँ सिंचाई की सहायता से गन्ना उत्पन्न किया जाता है। यहाँ के प्रमुख गन्ना उत्पादक ज़िले गुड़गांव, हिसार, रोहतक, करनाल तथा अम्बाला हैं। पंजाब में संगरूर, पटियाला, जालन्धर, फिरोजपुर, गुरदासपुर एवं अमृतसर प्रमुख उत्पादक ज़िले हैं।

पश्चिमी बंगाल में अतिवृष्टि जूट की अपेक्षा गन्ना के लिए कम उपयोगी है, फिर भी जूट की मांग घटने एवं गन्ने की फ़सल से अधिक लाभ मिलने के कारण अब वहाँ गन्ना महत्त्वपूर्ण फ़सल है। अतः वर्तमान में दामोदर, बांग्ली और पद्मा नदियों की घाटी में यह पैदा किया जाता है। वर्द्धमान, वीरभूम, हुगली, मुर्शिदाबाद, चौबीस परगना और नादिया ज़िलों की आधी प्रतिशत से 1 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि पर गन्ने की खेती की जाती है।

बिहार में गन्ना उत्पादक क्षेत्र उत्तर प्रदेश की तराई वाले क्षेत्र से सम्बद्ध है। चम्पारन, गया, सारन, शाहाबाद, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया और भागलपुर और प्रमुख उत्पादक ज़िलें हैं। 1970 के पश्चात् यहाँ का उत्पादन निरन्तर कम होता जा रहा है।

राजस्थान में गन्ने का उत्पादन श्रीगंगानगर, कोटा, बूंदी, चित्तौड़गढ़, उदयपुर और भीलवाड़ा ज़िलों में होता है।

मध्य प्रदेश में उज्जैन, ग्वालियर, मुरैना, जावरा और शिवपुरी तथा छत्तीसगढ़ राज्य में रायपुर और बिलासपुर प्रमुख गन्ना उत्पादक क्षेत्र है।

गुजरात में गन्ना सूरत, भावनगर, राजकोट, बनासकांटा, जामनगर और जूनागढ़ में पैदा किया जाता है।

समस्याएँ

भारत में गन्ने की कृषि से सम्बन्धित कुछ प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

  1. गन्ने की आदर्श दशाएँ दक्षिण भारत में मिलती हैं, किन्तु अब इसकी अधिकतर खेती उत्तर भारत मे की जाती है, जहाँ शुष्क ऋतु अधिक लम्बी होने के कारण गन्ना अधिक समय तक खेत में नहीं रह पाता। यह पतला और कम रस वाला होता है।
  2. देश में गन्ने का उत्पादन प्रति हेक्टेअर इसकी कृषि उन्नत तकनीक के विशिष्टि प्रयोग के अभाव में बहुत ही कम है। इधर पिछले कुछ वर्षों से इसमें सुधार हुआ है। सन 1960-1961 में गन्ने का प्रति हेक्टेअर उत्पादन 46 टन था, जो बढत्रकर 2008-2009 में 62 टन हो गया।

कोयम्बटूर में 'केन्द्रीय अनुसन्धान केन्द्र' से प्रसारित अब गन्ने की कई किस्में बोयी जाने लगी हैं, जैसे- सीओ 410, सीओ 419, सीओ 431, सीओ 312, सीओ 212, सीओ 290, सीओ 205 आदि। अत: प्रति-हेक्टेअर इसका उत्पादन बढ़ रहा है। प्रादेशिक कृषि अनुसन्धानशालाओं से भी नवीन किस्में विकसित की जा रही हैं। लखनऊ में 'केन्द्रीय गन्ना अनुसन्धान केन्द्र', शाहजहांपुर, देवरिया व मुजफ्फरनगर में 'राज्य गन्ना अनुसन्धान केन्द्र' स्थापित हैं। भारत में जितना गन्ना पैदा होता है, उसका 40 प्रतिशत गुढ़ बनाने में, 50 प्रतिशत सफेद चीनी बनाने में, बूरा व सल्फर सुगर बनाने में और शेष चूसने तथा बीज के रूप में काम में लाया जाता है।

गन्ने का उपयोग

गन्ने का रस

भारत में 300 मिलियन टन के गन्ने उत्पादन की लगभग 35% मात्रा गुड़ और खंडसारी के विनिर्माण और चूसने के प्रयोजन के लिए उपयोग की जाती है। गुड़ और खंडसारी का विनिर्माण कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में मुख्य रुप से किया जाता है पर काफ़ी अधिक मात्रा में गुड़ और खंडसारी आंध्र प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में भी तैयार किया जाता है। 1996-2002 की अवधि के दौरान इन राज्यों में गन्ने से चीनी, गुड़ और खंडसारी के उत्पादन के लिए उपयोग में लाए जाने वाली गन्ने की मात्रा का ब्यौरा तालिका 3.2 में दिया गया है।

कम उत्पादकता के मुख्य कारण

  • हाल ही में गन्ने की खेती के अधीन क्षेत्र और उसकी पैदावार में काफ़ी कमी हुई है जिसका मुख्य कारण लगभग पूरे उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पड़ा सूखा है। हाल में सूखे, गन्ने के मूल्य का विलम्ब से भुगतान और कम चीनी मूल्यों के असर से गन्ना उत्पादन में कमी आई है और कुछ चीनी मिलें बंद हुई हैं।
  • गन्ने पर वूली एफिड नाम के एक नए कीट के ग्रसन की घटना अगस्त, 2002 में बेलगाम ज़िले में सामने आई और भद्रा नहर क्षेत्रों और दक्षिणी कर्नाटक के कावेरी घाटी में भी धीरे-धीरे इसकी पहुंच हो गई। इसके प्रभाव और फैलने की बढ़ती दर और तीव्रता ने कावेरी घाटी में गन्ना किसानों के बीच खौफ पैदा कर दिया है जिन्होंने पहले से ही पिछले वर्षों के दौरान सूखे के कारण भारी नुक़सान उठाया था।

जल संरक्षण

  • देश में कुल सिंचित क्षेत्र में से लगभग 58% नलकूपों एवं अन्य कुओं द्वारा, 32% नहरों द्वारा, 5% तालाबों द्वारा तथा शेष 5% अन्य स्रोतों द्वारा सिंचित है। जल संरक्षण के लिए, गन्ने के अधीन कुएं से सभी सिंचित क्षेत्र को द्रप्स (ड्रिप) सिंचाई के अधीन लाने की आवश्यकता है। द्रप्स सिंचाई से उत्पादन में वृद्धि करने तथा उर्वरकों एवं अन्य पोषक तत्वों के अनुकूलतम उपयोग में मदद मिलेगी।
  • पारिस्थिति की में कीट के बारे में पर्याप्त जानकारी की कमी तथा प्रौद्योगिकियों में इस स्थिति से निपटने के लिए तैयारी के बारे में जानकारी की कमी प्रभावी प्रबंधन कार्यों का सुझाव देने में प्रमुख चिंता का विषय रही है। अधिकांशतः उष्णकटिबंधीय एशियाई क्षेत्र में, ठंडे एवं मेघाच्छित मौसम (19-35 डिग्री सेल्सियस) के साथ-साथ उच्च सापेक्ष आर्द्रता (85%) में जंतुबाधा तेज़ीसे होती है। अतः कीट की जैव पारिस्थितिकीय को ध्यान में रखते हुए इसके प्रसार एवं बुरे प्रभाव को कम करने के लिए कुछ कृषि वैज्ञानिक पद्धतियों का विकास किया जाना आवश्यक है। वसंतदादा शुगर इंस्टीटयूट ने प्राकृतिक प्रतिरोधकों यथा ट्रिचग्रामा, क्राइसोपेरा, इनकार्सिया, आइसो-टोमिया, डायफा आदि का विकास करना तथा मुहैया कराकर रोगों पर नियंत्रण रखने के लिए अपनी सेवा दी हैं।

वैकल्पिक उपयोग

  • निर्वात पात्र चीनी फैक्ट्रियां केवल प्लांटेशन व्हाइट शुगर का ही उत्पादन करने के लिए बाध्य हैं। समिति के समक्ष प्रस्तुत किए गए कुछ अभ्यावेदनों में यह सुझाव दिया गया कि इस प्रतिबंध को हटाया जा सकता है तथा चीनी फैक्ट्रियों को उनकी इच्छानुसार गुड़ तथा खंडसारी जैसे अन्य मीठाकारकों के उत्पादन की छूट दी जा सकती है।
  • समिति ने चीनी मिलों को चीनी के अलावा अन्य मीठाकारकों के विनिर्माण, यदि आवश्यक हों, के लिए अनुमति देने के विचार पर भी चर्चा की। समिति ने नोट किया कि व्हाइट शुगर के अलावा अन्य उत्पादों के विनिर्माण के लिए गन्ने के उपयोग की वाणिज्यिक तथा वैधानिक रुप से जांच की जानी चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गुड़ और खंडसारी

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