"छन्द" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(5 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 20 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
छंद शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्याय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख '[[ऋग्वेद]]' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक [[व्याकरण (व्यावहारिक)|व्याकरण]] है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
+
'''छंद''' शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख '[[ऋग्वेद]]' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक [[व्याकरण (व्यावहारिक)|व्याकरण]] है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
 
==छंद के अंग==
 
==छंद के अंग==
 
छंद के अंग निम्नलिखित हैं?
 
छंद के अंग निम्नलिखित हैं?
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
*छंद के प्रायः 4 भाग होते हैं। इनमें से प्रत्येक को 'चरण' कहते हैं। दूसरे शब्दों में छंद के चतुर्थांश (चतुर्थ भाग) को चरण कहते हैं।
 
*छंद के प्रायः 4 भाग होते हैं। इनमें से प्रत्येक को 'चरण' कहते हैं। दूसरे शब्दों में छंद के चतुर्थांश (चतुर्थ भाग) को चरण कहते हैं।
 
*कुछ छंदों में चरण तो चार होते हैं लेकिन वे लिखे दो ही पंक्तियों में जाते हैं, जैसे- दोहा, सोरठ आदि। ऐसे छंद की प्रत्येक पंक्ति को 'दल' कहते हैं।
 
*कुछ छंदों में चरण तो चार होते हैं लेकिन वे लिखे दो ही पंक्तियों में जाते हैं, जैसे- दोहा, सोरठ आदि। ऐसे छंद की प्रत्येक पंक्ति को 'दल' कहते हैं।
*[[हिन्दी]] में कुछ छंद छः- छः पंक्तियों (दलों) में लिखे जाते हैं, ऐसे छंद दो छंद के योग से बनते हैं, जैसे- कुण्डलिया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + उल्लाला) आदि।
+
*[[हिन्दी]] में कुछ छंद छः- छः पंक्तियों (दलों) में लिखे जाते हैं, ऐसे छंद दो छंद के योग से बनते हैं, जैसे- [[कुण्डलिया]] ([[दोहा]] + [[रोला]]), [[छप्पय]] ([[रोला]] + उल्लाला) आदि।
 
*चरण 2 प्रकार के होते हैं- सम चरण और विषम चरण। प्रथम व तृतीय चरण को विषम चरण तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण को सम चरण कहते हैं।
 
*चरण 2 प्रकार के होते हैं- सम चरण और विषम चरण। प्रथम व तृतीय चरण को विषम चरण तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण को सम चरण कहते हैं।
  
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
*वर्ण को ही अक्षर कहते हैं।
 
*वर्ण को ही अक्षर कहते हैं।
 
*वर्ण 2 प्रकार के होते हैं-
 
*वर्ण 2 प्रकार के होते हैं-
#ह्रस्व स्वर वाले वर्ण (ह्रस्व वर्ण): अ, इ, उ, ऋ; क, कि, कु, कृ   
+
#ह्रस्व स्वर वाले वर्ण (ह्रस्व वर्ण): अ, इ, उ, ऋ, क, कि, कु, कृ   
#दीर्घ स्वर वाले वर्ण (दीर्घ वर्ण): आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ; का, की, कू, के, कै, को, कौ
+
#दीर्घ स्वर वाले वर्ण (दीर्घ वर्ण): आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ
 
'''<u>मात्रा</u>'''
 
'''<u>मात्रा</u>'''
  
पंक्ति 29: पंक्ति 29:
 
*ह्रस्व वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे एक मात्रा तथा दीर्घ वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे दो मात्रा माना जाता है।
 
*ह्रस्व वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे एक मात्रा तथा दीर्घ वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे दो मात्रा माना जाता है।
 
*इस प्रकार मात्रा दो प्रकार के होते हैं-
 
*इस प्रकार मात्रा दो प्रकार के होते हैं-
#ह्रस्व : अ, इ, उ, ऋ
+
#ह्रस्व- अ, इ, उ, ऋ
#दीर्घ : आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
+
#दीर्घ- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
  
 
;<u>वर्ण और मात्रा की गणना</u>
 
;<u>वर्ण और मात्रा की गणना</u>
 
'''<u>वर्ण की गणना</u>'''
 
'''<u>वर्ण की गणना</u>'''
  
#ह्रस्व स्वर वाले वर्ण (ह्रस्व वर्ण): अ, इ, उ, ऋ; क, कि, कु, कृ   
+
#ह्रस्व स्वर वाले वर्ण (ह्रस्व वर्ण)- अ, इ, उ, ऋ, क, कि, कु, कृ   
#दीर्घ स्वर वाले वर्ण (दीर्घ वर्ण): आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ; का, की, कू, के, कै, को, कौ
+
#दीर्घ स्वर वाले वर्ण (दीर्घ वर्ण)- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ
 
'''<u>मात्रा की गणना</u>'''
 
'''<u>मात्रा की गणना</u>'''
#ह्रस्व स्वर- एकमात्रिक - अ, इ, उ, ऋ
+
#ह्रस्व स्वर- एकमात्रिक- अ, इ, उ, ऋ
#दीर्घ वर्ण- द्विमात्रिक - आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
+
#दीर्घ वर्ण- द्विमात्रिक- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
*वर्णों में मात्राओं की गिनती में स्थूल भेद यही है कि वर्ण 'सस्वर अक्षय' को और मात्रा 'सिर्फ स्वर' को कहते हैं।
+
*वर्णों में मात्राओं की गिनती में स्थूल भेद यही है कि वर्ण 'स्वर अक्षर' को और मात्रा 'सिर्फ़ स्वर' को कहते हैं।
 
;<u>लघु व गुरु वर्ण</u>
 
;<u>लघु व गुरु वर्ण</u>
 
*छंदशास्त्री ह्रस्व स्वर तथा ह्रस्व स्वर वाले [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] वर्ण को लघु कहते हैं। लघु के लिए प्रयुक्त चिह्न- एक पाई रेखा।
 
*छंदशास्त्री ह्रस्व स्वर तथा ह्रस्व स्वर वाले [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] वर्ण को लघु कहते हैं। लघु के लिए प्रयुक्त चिह्न- एक पाई रेखा।
*इसी प्रकार, दीर्घ स्वर तथा दीर्घ स्वल वाले व्यंजन वर्ण को गुरु कहते हैं। गुरु के लिए प्रयुक्त चिह्न - एक वर्तुल रेखा- ऽ
+
*इसी प्रकार, दीर्घ स्वर तथा दीर्घ स्वर वाले व्यंजन वर्ण को गुरु कहते हैं। गुरु के लिए प्रयुक्त चिह्न- एक वर्तुल रेखा- ऽ
 
*लघु वर्ण के अंतर्गत शामिल किये जाते हैं-
 
*लघु वर्ण के अंतर्गत शामिल किये जाते हैं-
- अ, इ, उ, ऋ
+
<poem>
- क, कि, कु, कृ   
+
अ, इ, उ, ऋ
- अँ, हँ (चन्द्र बिन्दु वाले वर्ण)
+
क, कि, कु, कृ   
:(अँसुवर) (हँसी)
+
अँ, हँ (चन्द्र बिन्दु वाले वर्ण)
- त्य (संयुक्त व्यंजन वाले वर्ण)
+
(अँसुवर) (हँसी)
(नित्य)
+
त्य (संयुक्त व्यंजन वाले वर्ण)
 +
(नित्य)</poem>
 
*गुरु वर्ण के अंतर्गत शामिल किये जाते हैं-
 
*गुरु वर्ण के अंतर्गत शामिल किये जाते हैं-
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
+
<poem>
का, की, कू, के, कै, को, कौ
+
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
इं, विं, तः, धः (अनुस्वार व विसर्ग वाले वर्ण)
+
का, की, कू, के, कै, को, कौ
:(इंदु)  (बिंदु)  (अतः)  (अधः)
+
इं, विं, तः, धः (अनुस्वार व विसर्ग वाले वर्ण)
अग्र का अ, वक्र का व (संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती वर्ण)
+
(इंदु)  (बिंदु)  (अतः)  (अधः)
राजन् का ज (हलन् वर्ण के पहले का वर्ण)
+
अग्र का अ, वक्र का व (संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती वर्ण)
 +
राजन् का ज (हलन् वर्ण के पहले का वर्ण)</poem>
  
 
====3.<u>संख्या और क्रम</u>====
 
====3.<u>संख्या और क्रम</u>====
पंक्ति 70: पंक्ति 72:
 
*अतः गण की परिभाषा होगी 'लघु-गुरु के नियत क्रम से 3 वर्णों के समूह को गण कहा जाता है'।
 
*अतः गण की परिभाषा होगी 'लघु-गुरु के नियत क्रम से 3 वर्णों के समूह को गण कहा जाता है'।
 
;गणों की संख्या 8 है-
 
;गणों की संख्या 8 है-
यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण
+
यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण
 
*गणों को याद रखने के लिए सूत्र-
 
*गणों को याद रखने के लिए सूत्र-
  
 
'''यमाताराजभानसलगा'''
 
'''यमाताराजभानसलगा'''
  
इसमें पहले आठ वर्ण गणों के सूचक हैं और अन्तिम दो वर्ण लघु (ल) व गुरु (गा) के।
+
इसमें पहले आठ वर्ण गणों के सूचक हैं और अन्तिम दो वर्ण लघु (ल) व गुरु () के।
 
*सूत्र से गण प्राप्त करने का तरीका-
 
*सूत्र से गण प्राप्त करने का तरीका-
  
 
बोधक वर्ण से आरंभ कर आगे के दो वर्णों को ले लें। गण अपने-आप निकल आएगा।
 
बोधक वर्ण से आरंभ कर आगे के दो वर्णों को ले लें। गण अपने-आप निकल आएगा।
;उदाहरण : यगण किसे कहते हैं
+
;उदाहरण- यगण किसे कहते हैं
 +
 
 
यमाता
 
यमाता
 
:| ऽ ऽ
 
:| ऽ ऽ
  
 
अतः यगण का रूप हुआ-आदि लघु (| ऽ ऽ)
 
अतः यगण का रूप हुआ-आदि लघु (| ऽ ऽ)
 +
 
====5.<u>गति</u>====
 
====5.<u>गति</u>====
 
*छंद के पढ़ने के प्रवाह या लय को गति कहते हैं।
 
*छंद के पढ़ने के प्रवाह या लय को गति कहते हैं।
*गति का महत्व वर्णिक छंदों की अपेक्षा मात्रिक छंदों में अधिक है। बात यह है कि वर्णिक छंदों में तो लघु-गुरु का स्थान निश्चित रहता है किन्तु मात्रिक छंदों में लघु-गुरु का स्थान निश्चित नहीं रहता, पूरे चरण की मात्राओं का निर्देश नहीं रहता है।
+
*गति का महत्त्व वर्णिक छंदों की अपेक्षा मात्रिक छंदों में अधिक है। बात यह है कि वर्णिक छंदों में तो लघु-गुरु का स्थान निश्चित रहता है किन्तु मात्रिक छंदों में लघु-गुरु का स्थान निश्चित नहीं रहता, पूरे चरण की मात्राओं का निर्देश नहीं रहता है।
 
*मात्राओं की संख्या ठीक रहने पर भी चरण की गति (प्रवाह) में बाधा पड़ सकती है।
 
*मात्राओं की संख्या ठीक रहने पर भी चरण की गति (प्रवाह) में बाधा पड़ सकती है।
 
*जैसे-
 
*जैसे-
पंक्ति 94: पंक्ति 98:
 
#गति का परिज्ञान भाषा की प्रकृति, नाद के परिज्ञान एवं अभ्यास पर निर्भर करता है।
 
#गति का परिज्ञान भाषा की प्रकृति, नाद के परिज्ञान एवं अभ्यास पर निर्भर करता है।
 
====6.<u>यति/ विरोम</u>====
 
====6.<u>यति/ विरोम</u>====
*छंद में नियमित वर्ण या मात्रा पर साँस लेने के लिए रूकना पड़ता है, इसी रूकने के स्थान को यति या विरोम कहते हैं।
+
*छंद में नियमित वर्ण या मात्रा पर साँस लेने के लिए रुकना पड़ता है, इसी रूकने के स्थान को यति या विरोम कहते हैं।
 
*छोटे छंदों में साधारणतः यति चरण के अन्त में होती है; पर बड़े छंदों में एक ही चरण में एक से अधिक यति या विराम होते हैं।
 
*छोटे छंदों में साधारणतः यति चरण के अन्त में होती है; पर बड़े छंदों में एक ही चरण में एक से अधिक यति या विराम होते हैं।
 
*यति का निर्देश प्रायः छंद के लक्षण (परिभाषा) में ही कर दिया जाता है। जैसे मालिनी छंद में पहली यति 8 वर्णों के बाद तथा दूसरी यति 7 वर्णों के बाद पड़ती है।  
 
*यति का निर्देश प्रायः छंद के लक्षण (परिभाषा) में ही कर दिया जाता है। जैसे मालिनी छंद में पहली यति 8 वर्णों के बाद तथा दूसरी यति 7 वर्णों के बाद पड़ती है।  
 
====7.<u>तुक</u>====
 
====7.<u>तुक</u>====
 
*छंद के चरणान्त की अक्षर-मैत्री (समान स्वर-व्यंजन की स्थापना) को तुक कहते हैं।
 
*छंद के चरणान्त की अक्षर-मैत्री (समान स्वर-व्यंजन की स्थापना) को तुक कहते हैं।
*जिस छंद के अंत में तुक हो उसे तुकान्त छंद और जिसके अन्त में तुक न हो उसे अतुकान्त छंद कहते है। अतुकान्त छंद को अंग्रेज़ी में ब्लैंक वर्स कहते हैं।
+
*जिस छंद के अंत में तुक हो उसे तुकान्त छंद और जिसके अन्त में तुक न हो उसे अतुकान्त छंद कहते हैं। अतुकान्त छंद को अंग्रेज़ी में ब्लैंक वर्स कहते हैं।
 
#वर्णिक छंद (या वृत) - जिस छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान हो।
 
#वर्णिक छंद (या वृत) - जिस छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान हो।
 
#मात्रिक छंद (या जाति) - जिस छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान हो।
 
#मात्रिक छंद (या जाति) - जिस छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान हो।
#मुक्त छंद - जिस छंद में वर्णिक या मात्रिक प्रतिबंध न हो।
+
#मुक्त छंद - जिस [[छंद]] में वर्णिक या मात्रिक प्रतिबंध न हो।
 
=====<u>वर्णिक छंद</u>=====
 
=====<u>वर्णिक छंद</u>=====
 
*वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान रहती है और लघु-गुरु का क्रम समान रहता है।
 
*वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान रहती है और लघु-गुरु का क्रम समान रहता है।
पंक्ति 109: पंक्ति 113:
 
*मात्रिक छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या तो समान रहती है लेकिन लघु-गुरु के क्रम पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
 
*मात्रिक छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या तो समान रहती है लेकिन लघु-गुरु के क्रम पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
 
*प्रमुख मात्रिक छंद
 
*प्रमुख मात्रिक छंद
#सम मात्रिक छंद : अहीर (11 मात्रा), तोमर (12 मात्रा), मानव (14 मात्रा); अरिल्ल, पद्धरि/ पद्धटिका, चौपाई (सभी 16 मात्रा); पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों 19 मात्रा), राधिका (22 मात्रा), रोला, दिक्पाल, रूपमाला (सभी 24 मात्रा), गीतिका (26 मात्रा), सरसी (27 मात्रा), सार (28 मात्रा), हरिगीतिका (28 मात्रा), तांटक (30 मात्रा), वीर या आल्हा (31 मात्रा)।
+
#सम मात्रिक छंद : अहीर (11 मात्रा), तोमर (12 मात्रा), मानव (14 मात्रा); अरिल्ल, पद्धरि/ पद्धटिका, [[चौपाई]] (सभी 16 मात्रा); पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों 19 मात्रा), राधिका (22 मात्रा), [[रोला]], दिक्पाल, रूपमाला (सभी 24 मात्रा), गीतिका (26 मात्रा), [[सरसी छन्द|सरसी]] (27 मात्रा), सार (28 मात्रा), [[हरिगीतिका]] (28 मात्रा), तांटक (30 मात्रा), वीर या आल्हा (31 मात्रा)।
#अर्द्धसम मात्रिक छंद : बरवै (विषम चरण में - 12 मात्रा, सम चरण में - 7 मात्रा), दोहा (विषम - 13, सम - 11), सोरठा (दोहा का उल्टा), उल्लाला (विषम - 15, सम - 13)।
+
#अर्द्धसम मात्रिक छंद : बरवै (विषम चरण में - 12 मात्रा, सम चरण में - 7 मात्रा), [[दोहा]] (विषम - 13, सम - 11), [[सोरठा]] (दोहा का उल्टा), [[उल्लाला छन्द|उल्लाला]] (विषम - 15, सम - 13)।
#विषम मात्रिक छंद : कुण्डलिया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + अल्लाला)।
+
#विषम मात्रिक छंद : [[कुण्डलिया]] ([[दोहा]] + [[रोला]]), [[छप्पय]] ([[रोला]] + [[उल्लाला छन्द|उल्लाला]])।
 
=====<u>मुक्त छंद</u>=====
 
=====<u>मुक्त छंद</u>=====
*जिस विषय छंद में वर्णित या मात्रिक प्रतिबंध न हो, न प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या और क्रम समान  हो और मात्राओं की कोई निश्चित व्यवस्था हो तथा जिसमें नाद और ताल के आधार पर पंक्तियों में लय लाकर उन्हें गतिशील करने का आग्रह हो, वह मुक्त छंद है।
+
*जिस विषय छंद में वर्णित या मात्रिक प्रतिबंध न हो, न प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या और क्रम समान  हो और मात्राओं की कोई निश्चित व्यवस्था हो तथा जिसमें नाद और ताल के आधार पर पंक्तियों में लय लाकर उन्हें गतिशील करने का आग्रह हो, वह [[मुक्त छंद]] है।
*उदाहरण : निराला की कविता 'जूही की कली' इत्यादि।  
+
 
+
उदाहरण : निराला की कविता 'जूही की कली' इत्यादि।
{{लेख प्रगति
 
|आधार=
 
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
 
|माध्यमिक=
 
|पूर्णता=
 
|शोध=
 
}}
 
  
 +
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{व्याकरण}}
+
{{छन्द}}{{साहित्य की विधाएँ}}
[[Category:व्याकरण]][[Category:हिन्दी भाषा]]
+
[[Category:व्याकरण]][[Category:हिन्दी भाषा]][[Category:भाषा कोश]][[Category:छन्द]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

08:34, 18 मई 2016 का अवतरण

छंद शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।

छंद के अंग

छंद के अंग निम्नलिखित हैं?

  1. चरण/ पद/ पाद
  2. वर्ण और मात्रा
  3. संख्या और क्रम
  4. गण
  5. गति
  6. यति/ विराम
  7. तुक

1.चरण/ पद/ पाद

  • छंद के प्रायः 4 भाग होते हैं। इनमें से प्रत्येक को 'चरण' कहते हैं। दूसरे शब्दों में छंद के चतुर्थांश (चतुर्थ भाग) को चरण कहते हैं।
  • कुछ छंदों में चरण तो चार होते हैं लेकिन वे लिखे दो ही पंक्तियों में जाते हैं, जैसे- दोहा, सोरठ आदि। ऐसे छंद की प्रत्येक पंक्ति को 'दल' कहते हैं।
  • हिन्दी में कुछ छंद छः- छः पंक्तियों (दलों) में लिखे जाते हैं, ऐसे छंद दो छंद के योग से बनते हैं, जैसे- कुण्डलिया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + उल्लाला) आदि।
  • चरण 2 प्रकार के होते हैं- सम चरण और विषम चरण। प्रथम व तृतीय चरण को विषम चरण तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण को सम चरण कहते हैं।

2.वर्ण और मात्रा

वर्ण/ अक्षर

  • एक स्वर वाली ध्वनि को वर्ण कहते हैं, चाहे वह स्वर ह्रस्व हो या दीर्घ।
  • जिस ध्वनि में स्वर नहीं हो (जैसे हलन्त शब्द राजन् का 'न्', संयुक्ताक्षर का पहला अक्षर - कृष्ण का 'ष्') उसे वर्ण नहीं माना जाता।
  • वर्ण को ही अक्षर कहते हैं।
  • वर्ण 2 प्रकार के होते हैं-
  1. ह्रस्व स्वर वाले वर्ण (ह्रस्व वर्ण): अ, इ, उ, ऋ, क, कि, कु, कृ
  2. दीर्घ स्वर वाले वर्ण (दीर्घ वर्ण): आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ

मात्रा

  • किसी वर्ण या ध्वनि के उच्चारण-काल को मात्रा कहते हैं।
  • ह्रस्व वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे एक मात्रा तथा दीर्घ वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे दो मात्रा माना जाता है।
  • इस प्रकार मात्रा दो प्रकार के होते हैं-
  1. ह्रस्व- अ, इ, उ, ऋ
  2. दीर्घ- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
वर्ण और मात्रा की गणना

वर्ण की गणना

  1. ह्रस्व स्वर वाले वर्ण (ह्रस्व वर्ण)- अ, इ, उ, ऋ, क, कि, कु, कृ
  2. दीर्घ स्वर वाले वर्ण (दीर्घ वर्ण)- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ

मात्रा की गणना

  1. ह्रस्व स्वर- एकमात्रिक- अ, इ, उ, ऋ
  2. दीर्घ वर्ण- द्विमात्रिक- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
  • वर्णों में मात्राओं की गिनती में स्थूल भेद यही है कि वर्ण 'स्वर अक्षर' को और मात्रा 'सिर्फ़ स्वर' को कहते हैं।
लघु व गुरु वर्ण
  • छंदशास्त्री ह्रस्व स्वर तथा ह्रस्व स्वर वाले व्यंजन वर्ण को लघु कहते हैं। लघु के लिए प्रयुक्त चिह्न- एक पाई रेखा।
  • इसी प्रकार, दीर्घ स्वर तथा दीर्घ स्वर वाले व्यंजन वर्ण को गुरु कहते हैं। गुरु के लिए प्रयुक्त चिह्न- एक वर्तुल रेखा- ऽ
  • लघु वर्ण के अंतर्गत शामिल किये जाते हैं-

अ, इ, उ, ऋ
क, कि, कु, कृ
अँ, हँ (चन्द्र बिन्दु वाले वर्ण)
(अँसुवर) (हँसी)
त्य (संयुक्त व्यंजन वाले वर्ण)
(नित्य)

  • गुरु वर्ण के अंतर्गत शामिल किये जाते हैं-

आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
का, की, कू, के, कै, को, कौ
इं, विं, तः, धः (अनुस्वार व विसर्ग वाले वर्ण)
(इंदु) (बिंदु) (अतः) (अधः)
अग्र का अ, वक्र का व (संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती वर्ण)
राजन् का ज (हलन् वर्ण के पहले का वर्ण)

3.संख्या और क्रम

  • वर्णों और मात्राओं की गणना को संख्या कहते हैं।
  • लघु-गुरु के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं।
  • वर्णिक छंदों के सभी चरणों में संख्या (वर्णों की) और क्रम (लघु-गुरु का) दोनों समान होते हैं।

जबकि मात्रिक छंदों के सभी चरणों में संख्या (मात्राओं की) तो समान होती है लेकिन क्रम (लघु-गुरु का) समान नहीं होते हैं।

4.गण (केवल वर्णिक छंदों के मामले में लागू)

  • गण का अर्थ है 'समूह'।
  • यह समूह तीन वर्णों का होता है। गण में 3 ही वर्ण होते हैं, न अधिक न कम।
  • अतः गण की परिभाषा होगी 'लघु-गुरु के नियत क्रम से 3 वर्णों के समूह को गण कहा जाता है'।
गणों की संख्या 8 है-

यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण

  • गणों को याद रखने के लिए सूत्र-

यमाताराजभानसलगा

इसमें पहले आठ वर्ण गणों के सूचक हैं और अन्तिम दो वर्ण लघु (ल) व गुरु (ग) के।

  • सूत्र से गण प्राप्त करने का तरीका-

बोधक वर्ण से आरंभ कर आगे के दो वर्णों को ले लें। गण अपने-आप निकल आएगा।

उदाहरण- यगण किसे कहते हैं

यमाता

| ऽ ऽ

अतः यगण का रूप हुआ-आदि लघु (| ऽ ऽ)

5.गति

  • छंद के पढ़ने के प्रवाह या लय को गति कहते हैं।
  • गति का महत्त्व वर्णिक छंदों की अपेक्षा मात्रिक छंदों में अधिक है। बात यह है कि वर्णिक छंदों में तो लघु-गुरु का स्थान निश्चित रहता है किन्तु मात्रिक छंदों में लघु-गुरु का स्थान निश्चित नहीं रहता, पूरे चरण की मात्राओं का निर्देश नहीं रहता है।
  • मात्राओं की संख्या ठीक रहने पर भी चरण की गति (प्रवाह) में बाधा पड़ सकती है।
  • जैसे-
  1. 'दिवस का अवसान था समीप' में गति नहीं है जबकि 'दिवस का अवसान समीप था' में गति है।
  2. चौपाई, अरिल्ल व पद्धरि - इन तीनों छंदों के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं पर गति भेद से ये छंद परस्पर भिन्न हो जाते हैं।
  3. अतएव, मात्रिक छंदों के निर्दोष प्रयोग के लिए गति का परिज्ञान अत्यन्त आवश्यक है।
  4. गति का परिज्ञान भाषा की प्रकृति, नाद के परिज्ञान एवं अभ्यास पर निर्भर करता है।

6.यति/ विरोम

  • छंद में नियमित वर्ण या मात्रा पर साँस लेने के लिए रुकना पड़ता है, इसी रूकने के स्थान को यति या विरोम कहते हैं।
  • छोटे छंदों में साधारणतः यति चरण के अन्त में होती है; पर बड़े छंदों में एक ही चरण में एक से अधिक यति या विराम होते हैं।
  • यति का निर्देश प्रायः छंद के लक्षण (परिभाषा) में ही कर दिया जाता है। जैसे मालिनी छंद में पहली यति 8 वर्णों के बाद तथा दूसरी यति 7 वर्णों के बाद पड़ती है।

7.तुक

  • छंद के चरणान्त की अक्षर-मैत्री (समान स्वर-व्यंजन की स्थापना) को तुक कहते हैं।
  • जिस छंद के अंत में तुक हो उसे तुकान्त छंद और जिसके अन्त में तुक न हो उसे अतुकान्त छंद कहते हैं। अतुकान्त छंद को अंग्रेज़ी में ब्लैंक वर्स कहते हैं।
  1. वर्णिक छंद (या वृत) - जिस छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान हो।
  2. मात्रिक छंद (या जाति) - जिस छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान हो।
  3. मुक्त छंद - जिस छंद में वर्णिक या मात्रिक प्रतिबंध न हो।
वर्णिक छंद
  • वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान रहती है और लघु-गुरु का क्रम समान रहता है।
  • प्रमुख वर्णिक छंद : प्रमाणिका (8 वर्ण); स्वागता, भुजंगी, शालिनी, इन्द्रवज्रा, दोधक (सभी 11 वर्ण); वंशस्थ, भुजंगप्रयाग, द्रुतविलम्बित, तोटक (सभी 12 वर्ण); वसंततिलका (14 वर्ण); मालिनी (15 वर्ण); पंचचामर, चंचला (सभी 16 वर्ण); मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी (सभी 17 वर्ण), शार्दूल विक्रीडित (19 वर्ण), स्त्रग्धरा (21 वर्ण), सवैया (22 से 26 वर्ण), घनाक्षरी (31 वर्ण) रूपघनाक्षरी (32 वर्ण), देवघनाक्षरी (33 वर्ण), कवित्त / मनहरण (31-33 वर्ण)।
मात्रिक छंद
  • मात्रिक छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या तो समान रहती है लेकिन लघु-गुरु के क्रम पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
  • प्रमुख मात्रिक छंद
  1. सम मात्रिक छंद : अहीर (11 मात्रा), तोमर (12 मात्रा), मानव (14 मात्रा); अरिल्ल, पद्धरि/ पद्धटिका, चौपाई (सभी 16 मात्रा); पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों 19 मात्रा), राधिका (22 मात्रा), रोला, दिक्पाल, रूपमाला (सभी 24 मात्रा), गीतिका (26 मात्रा), सरसी (27 मात्रा), सार (28 मात्रा), हरिगीतिका (28 मात्रा), तांटक (30 मात्रा), वीर या आल्हा (31 मात्रा)।
  2. अर्द्धसम मात्रिक छंद : बरवै (विषम चरण में - 12 मात्रा, सम चरण में - 7 मात्रा), दोहा (विषम - 13, सम - 11), सोरठा (दोहा का उल्टा), उल्लाला (विषम - 15, सम - 13)।
  3. विषम मात्रिक छंद : कुण्डलिया (दोहा + रोला), छप्पय (रोला + उल्लाला)।
मुक्त छंद
  • जिस विषय छंद में वर्णित या मात्रिक प्रतिबंध न हो, न प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या और क्रम समान हो और मात्राओं की कोई निश्चित व्यवस्था हो तथा जिसमें नाद और ताल के आधार पर पंक्तियों में लय लाकर उन्हें गतिशील करने का आग्रह हो, वह मुक्त छंद है।

उदाहरण : निराला की कविता 'जूही की कली' इत्यादि।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख