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'''दत्तोपन्त ठेंगडी''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Dattopant Thengadi'', जन्म: [[10 नवम्बर]], [[1920]] मृत्यु: [[14 अक्टूबर]], [[2004]]) भारत के राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता एवं [[भारतीय मज़दूर संघ]] के संस्थापक थे। [[भारत]] के ज्येष्ठ स्वतंत्रता सेनानी, उज्ज्वल राष्ट्रनिर्माण की अभिलाषा रखकर उसके लिए सदैव प्रयत्नरत रहने वाले कुशल संघटक, राष्ट्रप्रेमी संगठनों के शिल्पकार, द्रष्टा विचारवंत, लेखक, संतों के समान त्यागी और संयमित जीवन जीने वाले आदरणीय दत्तोपन्त ठेंगडी ने भारतीय किसानों को सन्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर देने के साथ, राष्ट्र के उत्थान प्रक्रिया में सहयोगी बनने की प्रेरणा देने के मूल विचार से भारतीय किसान संघ की स्थापना की। दत्तोपंत ठेंगडी जी भारतीय किसान संघ के कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्थान हैं।
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'''दत्तोपन्त ठेंगडी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Dattopant Thengadi'', जन्म: [[10 नवम्बर]], [[1920]]; मृत्यु: [[14 अक्टूबर]], [[2004]]) [[भारत]] के राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता एवं [[भारतीय मज़दूर संघ]] के संस्थापक थे। [[भारत]] के ज्येष्ठ स्वतंत्रता सेनानी, उज्ज्वल राष्ट्रनिर्माण की अभिलाषा रखकर उसके लिए सदैव प्रयत्नरत रहने वाले कुशल संघटक, राष्ट्रप्रेमी संगठनों के शिल्पकार, द्रष्टा विचारवंत, लेखक, संतों के समान त्यागी और संयमित जीवन जीने वाले आदरणीय दत्तोपन्त ठेंगडी ने भारतीय किसानों को सन्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर देने के साथ, राष्ट्र के उत्थान प्रक्रिया में सहयोगी बनने की प्रेरणा देने के मूल विचार से भारतीय किसान संघ की स्थापना की। दत्तोपंत ठेंगडी जी 'भारतीय किसान संघ' के कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्थान हैं।
 
 
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
दत्तोपन्त ठेंगडी का जन्म 10 नवंबर 1920 को [[भारत]] के [[महाराष्ट्र]] राज्य में, [[वर्धा ज़िला|वर्धा ज़िले]] के आर्वी शहर में हुआ। इस गांव के एक प्रतिष्ठित नागरिक एवं प्रसिद्ध वकील बाबुराव दाजीबा ठेंगडी के वे ज्येष्ठ सुपुत्र थे। बचपन से ही उनके कुशाग्र बुद्धि, और सामाजिक कार्य के संदर्भ में सच्ची लगन की झलक दिखने लगी थी। विद्यार्थी दशा में ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भारत माता के प्रति अपनी वचनबद्धता का परिचय दिया। केवल 15 वर्ष की आयु में ही वे आर्वी तालुका नगरपालिका हाईस्कूल के अध्यक्ष चुने गए। बतौर अध्यक्ष, उन्होंने इन स्कूलों में पढ़ने वाले जरूरतमंद छात्रों को आर्थिक मदद करने के लिए एक निधी के निर्माण की पहल की। [[1935]] में ही उन्हें [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के ‘वानर सेना’ इस युवा संगठन के आर्वी शहर शाखा का प्रमुख पद सौंपा गया। झुग्गी-झोपडियों में रहने वाले युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में सहभागी होने के लिए, उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना निर्माण करने का कार्य भी युवा दत्तोपंत ने किया। इसी कारण उन्हें [[1936]] में ‘आर्वी गोवनी झुग्गी-झोपडी मंडल’ का प्रमुख पद भी सौंपा गया। इसी बीच, 1936 से 1938 तक वे ‘हिंदुस्थान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी, नागपुर’ में भी सक्रिय रहे।<ref name="BMS"/>
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दत्तोपन्त ठेंगडी का जन्म 10 नवंबर, 1920 को [[भारत]] के [[महाराष्ट्र]] राज्य में, [[वर्धा ज़िला|वर्धा ज़िले]] के आर्वी शहर में हुआ। इस [[गांव]] के एक प्रतिष्ठित नागरिक एवं प्रसिद्ध वकील बाबुराव दाजीबा ठेंगडी के वे ज्येष्ठ सुपुत्र थे। बचपन से ही उनके कुशाग्र बुद्धि, और सामाजिक कार्य के संदर्भ में सच्ची लगन की झलक दिखने लगी थी। विद्यार्थी दशा में ही उन्होंने [[स्वतंत्रता संग्राम]] में भाग लेकर भारत माता के प्रति अपनी वचनबद्धता का परिचय दिया। केवल 15 वर्ष की आयु में ही वे आर्वी तालुका नगरपालिका हाईस्कूल के अध्यक्ष चुने गए। बतौर अध्यक्ष, उन्होंने इन स्कूलों में पढ़ने वाले जरूरतमंद छात्रों को आर्थिक मदद करने के लिए एक निधी के निर्माण की पहल की। [[1935]] में ही उन्हें [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के ‘वानर सेना’ इस युवा संगठन के आर्वी शहर शाखा का प्रमुख पद सौंपा गया। झुग्गी-झोपडियों में रहने वाले युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में सहभागी होने के लिए, उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना निर्माण करने का कार्य भी युवा दत्तोपंत ने किया। इसी कारण उन्हें [[1936]] में ‘आर्वी गोवनी झुग्गी-झोपडी मंडल’ का प्रमुख पद भी सौंपा गया। इसी बीच, 1936 से [[1938]] तक वे ‘हिंदुस्थान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी, नागपुर’ में भी सक्रिय रहे।<ref name="BMS"/>
 
==शिक्षा==
 
==शिक्षा==
 
इस प्रकार सामाजिक और राष्ट्रीय कार्य में सक्रिय होने के साथ ही दत्तोपंत जी ने [[नागपुर]] के तत्कालीन मॉरिस कॉलेज (विद्यमान- वसंतराव नाईक समाज विज्ञान संस्थान) से मास्टर ऑफ आर्टस् (एम.ए.) और लॉ कॉलेज (विद्यमान - डॉ. बाबासाहाब आंबेडकर विधि महाविद्यालय) से वकालत की पदवी (एल. एल. बी.) प्राप्त की। विद्यार्थी दशा में ही, [[1942]] में वे [[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] से बतौर स्वयंसेवक के रूप में जुडे और आगे चलकर वहीं उनके सारे जीवन कार्य का मूल प्रेरणास्रोत बना।  
 
इस प्रकार सामाजिक और राष्ट्रीय कार्य में सक्रिय होने के साथ ही दत्तोपंत जी ने [[नागपुर]] के तत्कालीन मॉरिस कॉलेज (विद्यमान- वसंतराव नाईक समाज विज्ञान संस्थान) से मास्टर ऑफ आर्टस् (एम.ए.) और लॉ कॉलेज (विद्यमान - डॉ. बाबासाहाब आंबेडकर विधि महाविद्यालय) से वकालत की पदवी (एल. एल. बी.) प्राप्त की। विद्यार्थी दशा में ही, [[1942]] में वे [[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] से बतौर स्वयंसेवक के रूप में जुडे और आगे चलकर वहीं उनके सारे जीवन कार्य का मूल प्रेरणास्रोत बना।  
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प्रखर बुद्धिमत्ता के धनी दत्तोपन्त ठेंगडी जी का संपूर्ण जीवन - सादी जीवनशैली, अखंड कार्यमग्नता, अपने कार्य से संबंधित विषय का गहरा अध्ययन, सुस्पष्ट विचार और ध्येयनिष्ठा - से परिपूर्ण था। उन्होंने 26 [[हिंदी]], 12 [[अंग्रेज़ी]] और 2 [[मराठी]] पुस्तकों का लेखन किया। उनकी ये पुस्तकें उनके राष्ट्र कार्य की मनोगाथा हैं। उनकी ‘राष्ट्र’ और ‘ध्येयपथ पर किसान’ ये दो पुस्तकें तो कार्यकर्ताओं के लिए [[गीता]] के समान पथ-प्रदीपक मानी जाती हैं।
 
प्रखर बुद्धिमत्ता के धनी दत्तोपन्त ठेंगडी जी का संपूर्ण जीवन - सादी जीवनशैली, अखंड कार्यमग्नता, अपने कार्य से संबंधित विषय का गहरा अध्ययन, सुस्पष्ट विचार और ध्येयनिष्ठा - से परिपूर्ण था। उन्होंने 26 [[हिंदी]], 12 [[अंग्रेज़ी]] और 2 [[मराठी]] पुस्तकों का लेखन किया। उनकी ये पुस्तकें उनके राष्ट्र कार्य की मनोगाथा हैं। उनकी ‘राष्ट्र’ और ‘ध्येयपथ पर किसान’ ये दो पुस्तकें तो कार्यकर्ताओं के लिए [[गीता]] के समान पथ-प्रदीपक मानी जाती हैं।
 
==विदेश यात्रा==
 
==विदेश यात्रा==
दत्तोपन्त ठेंगडी जी भारतीय [[संसद]] के वरिष्ठ सभागृह [[राज्यसभा]] के एक बार सदस्य भी रह चुके थे। वे [[1969]] में संसदीय शिष्टमंडल के साथ तत्कालीन सोवियत रशिया और हंगरी गये थे। [[1977]] में स्व्ज़्टिरलैंड में आयोजित आंतरराष्ट्रीय मज़दूर संघटनाओं के परिषद में, और जिनेवा में हुए द्वितीय अंतरराष्ट्रीय वर्णभेद विरोधी परिषद में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया। 1979 में उन्हें, युगोस्लाविया में, वहाँ के मज़दूर संगठन ने, उनके देश के रोजगार नीति के संदर्भ में अभ्यास करने के लिए आमंत्रित किया था। [[अमेरिका]] ने भी दत्तोपंत जी को, अमेरिकी मज़दूर संगठनों के आंदोलनों का अभ्यास करने के लिए आमंत्रित किया था। उसी वर्ष उन्हें कनाडा और ब्रिटेन में भी आमंत्रित किया गया था। [[1985]] में ये ऑल चाइना फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स के आमंत्रण पर [[चीन]] गये और भारतीय मज़दूर संघ के प्रतिनिधियों का नेतृत्व भी किया था। जकार्ता (इंडोनेशिया) में हुए आंतरराष्ट्रीय मज़दूर संगठन के दसवें क्षेत्रीय परिषद में भी वे उपस्थित थे। इसी वर्ष वे [[बांगला देश]], ब्रह्मदेश ([[म्यांमार]]), थायलँड, [[मलेशिया]], [[सिंगापुर]], केन्या, युगांडा, टांझानिया आदि देशों में भी गये थे। जर्मनी के फ्रँकफर्ट में अगस्त 1992 में हुए पाँचवें यूरोपियन हिंदू परिषद में, और अमेरिका में आयोजित वर्ल्ड विज़न 200 परिषद में भी वे शामिल हुए थे।<ref name="BMS">{{cite web |url=http://bms.org.in/pages/ThengadijiLife.aspx |title= श्री दत्तोपंत जी ठेंगडी|accessmonthday= 17 जून|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय मज़दूर संघ |language=हिंदी}}</ref>
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दत्तोपन्त ठेंगडी जी भारतीय [[संसद]] के वरिष्ठ सभागृह [[राज्यसभा]] के एक बार सदस्य भी रह चुके थे। वे [[1969]] में संसदीय शिष्टमंडल के साथ तत्कालीन सोवियत रशिया और हंगरी गये थे। [[1977]] में स्व्ज़्टिरलैंड में आयोजित आंतरराष्ट्रीय मज़दूर संघटनाओं के परिषद में, और जिनेवा में हुए द्वितीय अंतरराष्ट्रीय वर्णभेद विरोधी परिषद में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया। [[1979]] में उन्हें, युगोस्लाविया में, वहाँ के मज़दूर संगठन ने, उनके देश के रोजगार नीति के संदर्भ में अभ्यास करने के लिए आमंत्रित किया था। [[अमेरिका]] ने भी दत्तोपंत जी को, अमेरिकी मज़दूर संगठनों के आंदोलनों का अभ्यास करने के लिए आमंत्रित किया था। उसी वर्ष उन्हें कनाडा और ब्रिटेन में भी आमंत्रित किया गया था। [[1985]] में ये ऑल चाइना फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स के आमंत्रण पर [[चीन]] गये और भारतीय मज़दूर संघ के प्रतिनिधियों का नेतृत्व भी किया था। जकार्ता (इंडोनेशिया) में हुए आंतरराष्ट्रीय मज़दूर संगठन के दसवें क्षेत्रीय परिषद में भी वे उपस्थित थे। इसी वर्ष वे [[बांगला देश]], ब्रह्मदेश ([[म्यांमार]]), थायलँड, [[मलेशिया]], [[सिंगापुर]], केन्या, युगांडा, टांझानिया आदि देशों में भी गये थे। जर्मनी के फ्रँकफर्ट में [[अगस्त]], [[1992]] में हुए पाँचवें यूरोपियन हिंदू परिषद में, और अमेरिका में आयोजित वर्ल्ड विज़न 200 परिषद में भी वे शामिल हुए थे।<ref name="BMS">{{cite web |url=http://bms.org.in/pages/ThengadijiLife.aspx |title= श्री दत्तोपंत जी ठेंगडी|accessmonthday= 17 जून|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय मज़दूर संघ |language=हिंदी}}</ref>
 
==सक्रिय रूप से जुड़े संगठन==
 
==सक्रिय रूप से जुड़े संगठन==
 
दत्तोपन्त ठेंगडी कई संगठनों से सक्रिय रूप से जुड़े थे, उनमें से कुछ इस प्रकार है:-
 
दत्तोपन्त ठेंगडी कई संगठनों से सक्रिय रूप से जुड़े थे, उनमें से कुछ इस प्रकार है:-
* 1950-1951 –  इंटुक, मध्य प्रदेश के संगठन मंत्री
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* 1950-1951 –  इंटुक, [[मध्य प्रदेश]] के संगठन मंत्री
* 1951-1953 – [[भारतीय जनसंघ]] (मध्यप्रदेश) के संगठन मंत्री
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* 1951-1953 – [[भारतीय जनसंघ]] (मध्य प्रदेश) के संगठन मंत्री
 
* 1955 – भारतीय मज़दूर संघ की स्थापना
 
* 1955 – भारतीय मज़दूर संघ की स्थापना
 
* 1956-1957 – भारतीय जनसंघ के दक्षिण मंडल के संगठन मंत्री
 
* 1956-1957 – भारतीय जनसंघ के दक्षिण मंडल के संगठन मंत्री
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* 1974 –  मज़दूर संगठनों के राष्ट्रीय परिषद की अध्यक्षता
 
* 1974 –  मज़दूर संगठनों के राष्ट्रीय परिषद की अध्यक्षता
 
* 1975 – राष्ट्रीय मज़दूर संघर्ष समिती के समन्वयक
 
* 1975 – राष्ट्रीय मज़दूर संघर्ष समिती के समन्वयक
* 1976 – (आपात्काल के दौरान) राष्ट्रीय मज़दूर जन संघर्ष समिती के समन्वयक
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* 1976 – ([[आपात काल]] के दौरान) राष्ट्रीय मज़दूर जन संघर्ष समिती के समन्वयक
 
* 1979 – [[4 मार्च]] को [[भारतीय किसान संघ]] की स्थापना
 
* 1979 – [[4 मार्च]] को [[भारतीय किसान संघ]] की स्थापना
 
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* 1991 – स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना<ref name="BMS"/>

05:51, 14 अक्टूबर 2017 का अवतरण

दत्तोपन्त ठेंगडी
दत्तोपन्त ठेंगडी
पूरा नाम दत्तोपन्त ठेंगडी
जन्म 10 नवम्बर, 1920
जन्म भूमि आर्वी, वर्धा ज़िला, महाराष्ट्र
मृत्यु 14 अक्टूबर, 2004
मृत्यु स्थान पुणे, महाराष्ट्र
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र समाज-सुधार
भाषा हिंदी, अंग्रेज़ी, मराठी
शिक्षा एम. ए., एल.एल.बी
विशेष योगदान भारतीय मज़दूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच जैसे कई प्रभावशाली संगठनों की स्थापना की।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी दत्तोपन्त ठेंगडी ने 26 हिंदी, 12 अंग्रेज़ी और 2 मराठी पुस्तकों का लेखन किया है। उनकी ये पुस्तकें उनके राष्ट्र कार्य की मनोगाथा हैं।

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दत्तोपन्त ठेंगडी (अंग्रेज़ी: Dattopant Thengadi, जन्म: 10 नवम्बर, 1920; मृत्यु: 14 अक्टूबर, 2004) भारत के राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता एवं भारतीय मज़दूर संघ के संस्थापक थे। भारत के ज्येष्ठ स्वतंत्रता सेनानी, उज्ज्वल राष्ट्रनिर्माण की अभिलाषा रखकर उसके लिए सदैव प्रयत्नरत रहने वाले कुशल संघटक, राष्ट्रप्रेमी संगठनों के शिल्पकार, द्रष्टा विचारवंत, लेखक, संतों के समान त्यागी और संयमित जीवन जीने वाले आदरणीय दत्तोपन्त ठेंगडी ने भारतीय किसानों को सन्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर देने के साथ, राष्ट्र के उत्थान प्रक्रिया में सहयोगी बनने की प्रेरणा देने के मूल विचार से भारतीय किसान संघ की स्थापना की। दत्तोपंत ठेंगडी जी 'भारतीय किसान संघ' के कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्थान हैं।

जीवन परिचय

दत्तोपन्त ठेंगडी का जन्म 10 नवंबर, 1920 को भारत के महाराष्ट्र राज्य में, वर्धा ज़िले के आर्वी शहर में हुआ। इस गांव के एक प्रतिष्ठित नागरिक एवं प्रसिद्ध वकील बाबुराव दाजीबा ठेंगडी के वे ज्येष्ठ सुपुत्र थे। बचपन से ही उनके कुशाग्र बुद्धि, और सामाजिक कार्य के संदर्भ में सच्ची लगन की झलक दिखने लगी थी। विद्यार्थी दशा में ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भारत माता के प्रति अपनी वचनबद्धता का परिचय दिया। केवल 15 वर्ष की आयु में ही वे आर्वी तालुका नगरपालिका हाईस्कूल के अध्यक्ष चुने गए। बतौर अध्यक्ष, उन्होंने इन स्कूलों में पढ़ने वाले जरूरतमंद छात्रों को आर्थिक मदद करने के लिए एक निधी के निर्माण की पहल की। 1935 में ही उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ‘वानर सेना’ इस युवा संगठन के आर्वी शहर शाखा का प्रमुख पद सौंपा गया। झुग्गी-झोपडियों में रहने वाले युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में सहभागी होने के लिए, उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना निर्माण करने का कार्य भी युवा दत्तोपंत ने किया। इसी कारण उन्हें 1936 में ‘आर्वी गोवनी झुग्गी-झोपडी मंडल’ का प्रमुख पद भी सौंपा गया। इसी बीच, 1936 से 1938 तक वे ‘हिंदुस्थान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी, नागपुर’ में भी सक्रिय रहे।[1]

शिक्षा

इस प्रकार सामाजिक और राष्ट्रीय कार्य में सक्रिय होने के साथ ही दत्तोपंत जी ने नागपुर के तत्कालीन मॉरिस कॉलेज (विद्यमान- वसंतराव नाईक समाज विज्ञान संस्थान) से मास्टर ऑफ आर्टस् (एम.ए.) और लॉ कॉलेज (विद्यमान - डॉ. बाबासाहाब आंबेडकर विधि महाविद्यालय) से वकालत की पदवी (एल. एल. बी.) प्राप्त की। विद्यार्थी दशा में ही, 1942 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बतौर स्वयंसेवक के रूप में जुडे और आगे चलकर वहीं उनके सारे जीवन कार्य का मूल प्रेरणास्रोत बना।

भारतीय मज़दूर संघ की स्थापना

1942 से 1944 के दौरान उन्होंने श्री वागमल नंदा सोसायटी, कालिकत, आर्य समाज, कालिकत, हिंदू महासभा, ब्रिटिश मलबार पूअर होम, कालिकत आदि संस्थाओं का कार्यविस्तार बढाने के लिए बहुमोल कार्य किया। 1955 में दत्तोपंत जी ने ‘भारतीय मज़दूर संघ’ (बी.एम.एस.) की स्थापना की। एक छोटे संगठन के रूप में शुरू हुए इस मज़दूर संगठन को आज न केवल विशाल रूप मिला है, बल्कि आज वह देश का प्रथम क्रमांक का मज़दूर संगठन (यूनियन) बना है।

सामाजिक और राष्ट्रीय उत्थान कार्य

50 वर्ष से अधिक समय तक दत्तोपंत जी सामाजिक और राष्ट्रीय उत्थान के कार्य में सक्रिय रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सृजनात्मक कार्यो के लिए एक विस्तृत पृष्ठभूमि तैयार करते हुए उन्होंने भारतीय किसान संघ, सामाजिक समरसता मंच, सर्व पंथ समादर मंच, स्वदेशी जागरण मंच आदि कई प्रभावशाली संगठनों की स्थापना की, और उनके समृद्ध मार्गदर्शन से इन सभी संगठनों का निरंतर कार्यविस्तार होता रहा। उनके ही प्रयासों से संस्कार भारती, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद, भारतीय विचार केंद्र, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत आदि संगठनों का निर्माण हुआ। देश का शायद ही कोई ऐसा मज़दूर संगठन होगा जिसे दत्तोपंत जी का मार्गदर्शन न मिला हो। दलित संघ, रेलवे कर्मचारी संघ, उसी प्रकार कृषि, शैक्षणिक, साहित्यिक आदि विविध क्षेत्रों के संगठनों को उनके सक्रिय और वैचारिक मार्गदर्शन का लाभ मिला।[1]

रचनाएँ

प्रखर बुद्धिमत्ता के धनी दत्तोपन्त ठेंगडी जी का संपूर्ण जीवन - सादी जीवनशैली, अखंड कार्यमग्नता, अपने कार्य से संबंधित विषय का गहरा अध्ययन, सुस्पष्ट विचार और ध्येयनिष्ठा - से परिपूर्ण था। उन्होंने 26 हिंदी, 12 अंग्रेज़ी और 2 मराठी पुस्तकों का लेखन किया। उनकी ये पुस्तकें उनके राष्ट्र कार्य की मनोगाथा हैं। उनकी ‘राष्ट्र’ और ‘ध्येयपथ पर किसान’ ये दो पुस्तकें तो कार्यकर्ताओं के लिए गीता के समान पथ-प्रदीपक मानी जाती हैं।

विदेश यात्रा

दत्तोपन्त ठेंगडी जी भारतीय संसद के वरिष्ठ सभागृह राज्यसभा के एक बार सदस्य भी रह चुके थे। वे 1969 में संसदीय शिष्टमंडल के साथ तत्कालीन सोवियत रशिया और हंगरी गये थे। 1977 में स्व्ज़्टिरलैंड में आयोजित आंतरराष्ट्रीय मज़दूर संघटनाओं के परिषद में, और जिनेवा में हुए द्वितीय अंतरराष्ट्रीय वर्णभेद विरोधी परिषद में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया। 1979 में उन्हें, युगोस्लाविया में, वहाँ के मज़दूर संगठन ने, उनके देश के रोजगार नीति के संदर्भ में अभ्यास करने के लिए आमंत्रित किया था। अमेरिका ने भी दत्तोपंत जी को, अमेरिकी मज़दूर संगठनों के आंदोलनों का अभ्यास करने के लिए आमंत्रित किया था। उसी वर्ष उन्हें कनाडा और ब्रिटेन में भी आमंत्रित किया गया था। 1985 में ये ऑल चाइना फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स के आमंत्रण पर चीन गये और भारतीय मज़दूर संघ के प्रतिनिधियों का नेतृत्व भी किया था। जकार्ता (इंडोनेशिया) में हुए आंतरराष्ट्रीय मज़दूर संगठन के दसवें क्षेत्रीय परिषद में भी वे उपस्थित थे। इसी वर्ष वे बांगला देश, ब्रह्मदेश (म्यांमार), थायलँड, मलेशिया, सिंगापुर, केन्या, युगांडा, टांझानिया आदि देशों में भी गये थे। जर्मनी के फ्रँकफर्ट में अगस्त, 1992 में हुए पाँचवें यूरोपियन हिंदू परिषद में, और अमेरिका में आयोजित वर्ल्ड विज़न 200 परिषद में भी वे शामिल हुए थे।[1]

सक्रिय रूप से जुड़े संगठन

दत्तोपन्त ठेंगडी कई संगठनों से सक्रिय रूप से जुड़े थे, उनमें से कुछ इस प्रकार है:-

  • 1950-1951 – इंटुक, मध्य प्रदेश के संगठन मंत्री
  • 1951-1953 – भारतीय जनसंघ (मध्य प्रदेश) के संगठन मंत्री
  • 1955 – भारतीय मज़दूर संघ की स्थापना
  • 1956-1957 – भारतीय जनसंघ के दक्षिण मंडल के संगठन मंत्री
  • 1964-1970 – राज्यसभा की सदस्यता
  • 1965-1966 – हाऊस कमिटी सदस्य
  • 1965-1970 – राज्यसभा के उपाध्यक्ष बोर्ड एवं सार्वजनिक उद्योग समिती के सदस्य
  • 1968-1969 – केंद्रीय मज़दूर संगठनों के राष्ट्रीय समन्वय समिती के आमंत्रक
  • 1970-1976 – राज्यसभा के सदस्य
  • 1974 – मज़दूर संगठनों के राष्ट्रीय परिषद की अध्यक्षता
  • 1975 – राष्ट्रीय मज़दूर संघर्ष समिती के समन्वयक
  • 1976 – (आपात काल के दौरान) राष्ट्रीय मज़दूर जन संघर्ष समिती के समन्वयक
  • 1979 – 4 मार्च को भारतीय किसान संघ की स्थापना
  • 1991 – स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना[1]

निधन

दत्तोपन्त ठेंगडी जी का निधन 14 अक्टूबर, 2004 को महाराष्ट्र के पुणे नगर में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 श्री दत्तोपंत जी ठेंगडी (हिंदी) भारतीय मज़दूर संघ। अभिगमन तिथि: 17 जून, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख