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− | '''रूपनारायण पांडेय''' (जन्म- [[1884]], लखनऊ; मृत्यू- [[12 जून]], [[1958]]) | + | '''रूपनारायण पांडेय''' (जन्म- [[1884]], [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यू- [[12 जून]], [[1958]]) उच्च कोटि के [[कवि]] होने के साथ-साथ [[साहित्यकार]] और पत्रकार थे। वे [[हिंदी]], [[बांग्ला भाषा|बांगला]] और [[अंग्रेजी]] आदि [[भाषा|भाषाओं]] के अच्छे जानकार थे। |
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− | [[हिंदी]] के कवि संपादक, साहित्यकार, | + | [[हिंदी]] के कवि, संपादक, [[साहित्यकार]], ग्रन्थकार और बांग्ला भाषा से अनुवाद करके हिंदी को समृद्ध करने वाले रूपनारायण पांडेय का जन्म [[1884]] को लखनऊ में हुआ था। उन्होंने [[संस्कृत]] की शिक्षा के साथ-साथ बांग्ला ,अंग्रेजी आदि भाषाएं अपने अध्यवसाय से सीखीं। उन्होंने बांग्ला भाषा से अनुवाद करके हिंदी भाषा को समृद्ध किया है। उन्होंने 17 वर्ष की उम्र में 'शुकोक्ति सुधासागर' नाम से [[श्रीमद्भागवत]] का हिंदी में अनुवाद कर दिया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=751|url=}}</ref> |
==सम्पादक एवं अनुवादक== | ==सम्पादक एवं अनुवादक== | ||
− | रूपनारायण पांडेय हिंदी के | + | रूपनारायण पांडेय हिंदी के उच्च कोटि के कवि, संपादक और अनुवादक थे। उन्होंने पत्रकार के रूप में 'निगमागम चंद्रिका', 'नागरी प्रचारक',और 'इंदु' का संपादन किया और लखनऊ की प्रसिद्ध पत्रिका 'माधुरी' के संपादक तो वे आरंभ से लेकर अंत तक रहे। उन्होंने बांग्ला भाषा से द्विजेंद्रलाल राय, [[बंकिम चंद्र चटर्जी]], [[शरतचंद्र चट्टोपध्याय|शरत चंद्र चटर्जी]] और [[रवींद्रनाथ ठाकुर]] के [[नाटक|नाटकों]], [[उपन्यास|उपन्यासों]] और [[कहानी|कहानियों]] का हिंदी अनुवाद किया। यह अनुदित साहित्य अत्यंत लोकप्रिय हुआ। उनके द्वारा किए गए शरत के उपन्यासों के अनुवाद को पढ़ने के लिए अनेक व्यक्तियों ने [[देवनागरी वर्णमाला|नागरी वर्णमाला]] सीखी थी। |
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10:05, 17 जून 2018 का अवतरण
रूपनारायण पांडेय (जन्म- 1884, लखनऊ, उत्तर प्रदेश; मृत्यू- 12 जून, 1958) उच्च कोटि के कवि होने के साथ-साथ साहित्यकार और पत्रकार थे। वे हिंदी, बांगला और अंग्रेजी आदि भाषाओं के अच्छे जानकार थे।
परिचय
हिंदी के कवि, संपादक, साहित्यकार, ग्रन्थकार और बांग्ला भाषा से अनुवाद करके हिंदी को समृद्ध करने वाले रूपनारायण पांडेय का जन्म 1884 को लखनऊ में हुआ था। उन्होंने संस्कृत की शिक्षा के साथ-साथ बांग्ला ,अंग्रेजी आदि भाषाएं अपने अध्यवसाय से सीखीं। उन्होंने बांग्ला भाषा से अनुवाद करके हिंदी भाषा को समृद्ध किया है। उन्होंने 17 वर्ष की उम्र में 'शुकोक्ति सुधासागर' नाम से श्रीमद्भागवत का हिंदी में अनुवाद कर दिया था।[1]
सम्पादक एवं अनुवादक
रूपनारायण पांडेय हिंदी के उच्च कोटि के कवि, संपादक और अनुवादक थे। उन्होंने पत्रकार के रूप में 'निगमागम चंद्रिका', 'नागरी प्रचारक',और 'इंदु' का संपादन किया और लखनऊ की प्रसिद्ध पत्रिका 'माधुरी' के संपादक तो वे आरंभ से लेकर अंत तक रहे। उन्होंने बांग्ला भाषा से द्विजेंद्रलाल राय, बंकिम चंद्र चटर्जी, शरत चंद्र चटर्जी और रवींद्रनाथ ठाकुर के नाटकों, उपन्यासों और कहानियों का हिंदी अनुवाद किया। यह अनुदित साहित्य अत्यंत लोकप्रिय हुआ। उनके द्वारा किए गए शरत के उपन्यासों के अनुवाद को पढ़ने के लिए अनेक व्यक्तियों ने नागरी वर्णमाला सीखी थी।
रचनाएं
रूपनारायण पांडेय अच्छे कवि और उच्च कोटि के संपादक थे। 'पराग', 'वन वैभव, 'आश्वासन', 'दलित कुसुम' और 'वन विहंमम' उनके काव्य ग्रंथ हैं। वे द्विवेदी युग के ऐसे प्रसिद्ध साहित्यकार थे, जिन्होंने 60 से अधिक ग्रंथों का अनुवाद किया और लगभग 15 मौलिक ग्रंथों की रचना की। उन्होंने बाल साहित्य को भी समृद्ध बनाया।
मृत्यु
रूपनारायण पांडेय का 12 जून, 1958 को स्वर्गवास हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 751 |
संबंधित लेख
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हिंदी के कवि संपादक ग्रन्थाकार और बांग्ला भाषा से अनुवाद करके हिंदी को समृद्ध करने वाले रूपनारायण पांडेय का जन्म 1884 में लखनऊ में हुआ था। उनकी संस्कृत की शिक्षा घर पर हुई। बंगला ,अंग्रेजी आदि भाषाएं उन्होंने अपने अध्यवसाय इसे सीखीं। साहित्य रचना की ओर उनका ध्यान बचपन में ही चला गया था। उन्होंने 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने 'शुकोक्ति सुधासागर' नाम से श्रीमद्भागवत का हिंदी में अनुवाद कर डाला था।
रूप नारायण पांडे अच्छी कवि और उच्च कोटि के संपादक थे 'पराग',' वन वैभव, 'आश्वासन', 'दलित कुसुम' और 'वन विहंमम' उनके काव्य ग्रंथ हैं।उन्होंने बांग्ला से द्विजेंद्रलाल राय, बंकिम चटर्जी, शरत चंद्र चटर्जी और रवींद्रनाथ ठाकुर के नाटकों, उपन्यासों और कहानियों का हिंदी अनुवाद किया यह अनुदित साहित्य अत्यंत लोकप्रिय हुआ। शरत के उपन्यासों के उनके द्वारा किए गए अनुवाद पढ़ने के लिए अनेक व्यक्तियों ने नागरी वर्णमाला सीखी थी। पत्रकार के रूप में उन्होंने 'निगमागम चंद्रिका', 'नागरी प्रचारक',और 'इंदु' का संपादन तो किया ही बीच के कुछ वर्षों को छोड़ कर लखनऊ की प्रसिद्ध पत्रिका 'माधुरी' के संपादक वे आरंभ से अंत तक रहे। द्विवेदी-युग ऐसे प्रसिद्ध साहित्यकार थे, जिन्होंने 60 से अधिक ग्रंथों का अनुवाद किया और लगभग 15 मौलिक ग्रंथ रचे। उन्होंने बाल साहित्य को भी समृद्ध किया 12 जून 1958 उनका निधन हो गया। भारतीय चरित कोश 751