प्रावाहण जैवलि

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प्रावाहण जैवलि पांचाल देश का ब्रह्मवेत्ता राजा था। कांपिल्य इसकी राजधानी थी। प्रावाहण जैवलि ने आरुण उद्दालक के पुत्र श्वेतकेतु से कई प्रश्न किये थे, जिनका उत्तर वह नहीं दे पाया। तब प्रावाहण जैवलि ने श्वेतकेतु को आरण्यक विद्या लोक में प्रचार करने हेतु प्रदान की।

जब आरुण उद्दालक का पुत्र श्वेतकेतु वेदाध्ययन कर पांचाल देश की राजसभा में गया, तो प्रावाहण जैवलि ने पूछा कि, 'क्या तुझे पिता और गुरु से शिक्षा मिली हैं।' श्वेतकेतु ने स्वीकृति में सिर हिलाया। तब प्रावाहण ने प्रश्न किया कि प्रजाजनों के लिए राजा और ब्राह्मण का क्या कर्तव्य है, जीवन-मृत्यु, पंचाग्नि तथा हवन की पंचाहुति क्या है? श्वेतकेतु जीवन और जगत् से जुड़े साधारण प्रश्नों के जवाब नहीं दे पाया। तब प्रावाहण जैवलि ने यह आरण्यक विद्या जो क्षत्रियों और राजर्षियों तक सीमित थी, उसे लोक में प्रचारार्थ हेतु श्वेतकेतु को बतायी। ब्रह्मज्ञान और आध्यात्मिक विचार जो उपनिषदों में समाहित थे, वे क्षत्रियों ने अरण्य में ऋषियों से प्राप्त किये थे। 'श्वेत केतुर्हवा आरुणेय: पांचालानां परिषदमाजगाम। स आजगाम जैवलि प्रावाहणं परिचारयमाणम्’, का यही अर्थ था।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 519 |

  1. बृहदा.उप, अध्याय 6/2, छां. उप, अध्याय 5/3-10

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