भाग्यऋक्ष द्वादशी

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के साथ द्वादशी पर हरिहर प्रतिमा की पूजा की जाती है।
  • प्रतिमा एक आधा हर (शिव) एवं दूसरा आधा हरि का सूचक होता है।
  • तिथि द्वादशी हो या फिर सप्तमी हो और नक्षत्र पूर्वा फाल्गुनी, रेवती या धनिष्ठा हो, फल एक ही होता है।
  • कर्ता को पुत्र, राज्य आदि प्राप्त होते हैं।[1]
  • पूर्वा फाल्गुनी को 'भाग्य' कहा जाता है, क्योंकि 'भग' अधिष्ठाता देवता हैं; 'ऋक्ष' का अर्थ है 'नक्षत्र'।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृत्यकल्पतरु (व्रत0 353-354); हेमाद्रि (व्रत0 1, 1175-76, देवीपुराण से उद्धरण);

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