महाभारत युद्ध पहला दिन

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महाभारत युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व ही अर्जुन अपने प्रियजनों को देखकर मोह से ग्रस्त हो गए, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें 'कर्मयोग' का उपदेश दिया, जो 'श्रीमद्भागवद् गीता' के रूप में प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा कि- "होनी पहले हो चुकी है, तुम्हें तो केवल क्षत्रिय धर्म के अनुसार चलना है। धर्म पालन के लिए युद्ध करना ही चाहिए।" श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाते हुए कहा कि- "अधर्म के कारण कौरवों का नाश हो चुका है।" अर्जुन ने देखा कि समस्त कौरव श्रीकृष्ण के मुख में समा रहे हैं। अर्जुन का मोह दूर हो गया तथा वे युद्ध करने के लिए तैयार हो गए।

  • युद्ध से पूर्व युधिष्ठिर रथ से उतरकर पैदल ही पितामह भीष्म के पास गए तथा उनके चरणस्पर्श करके उन्हें प्रणाम किया। भीष्म ने युधिष्ठिर को विजय का आर्शीवाद दिया। इसी प्रकार युधिष्ठिर ने कृपाचार्य और द्रोणाचार्य को भी प्रणाम किया तथा विजय का आर्शीवाद प्राप्त किया। युधिष्ठिर की धर्म-नीति को देखकर धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु इतना प्रभावित हुआ कि कौरव सेना को छोड़कर पांडवों से जा मिला।[1]
  • अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाकर युद्ध प्रारंभ किया। देखते-ही-देखते घमासान युद्ध छिड़ गया। भीष्म के सामने पांडव सेना थर्रा उठी। अभिमन्यु ने भीष्म को रोका तथा उनकी ध्वजा को काट दिया। भीष्म पितामह अभिमन्यु के रण-कौशल को देखकर चकित थे। इस दिन युद्ध में विराट के पुत्र उत्तर कुमार और श्वेत क्रमश: शल्य तथा भीष्म द्वारा वीरगति को प्राप्त हुए। संध्या होते ही युद्ध समाप्ति की घोषणा की गई।
  • पहले दिन के युद्ध से दुर्योधन बहुत प्रसन्न था। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि- "आज के युद्ध से पितामह की अजेयता सिद्ध हो गई है।" श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को धैर्य बँधाया। इस दिन पांडव किसी भी मुख्य कौरव वीर को नहीं मार पाये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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