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* [[बिहार]] के दरभंगा ज़िले के अमता गाँव में जन्मे '''पंडित राम चतुर मल्लिक''' (जन्म- [[5 अक्टूबर]], [[1902]] - मृत्यु [[11 जनवरी]], [[1990]]) ने [[ध्रुपद]]-[[धमार]] शैली के गायन में देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी [[भारत]] का नाम रोशन किया है।
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*पिता पंडित राजित राम (दरभंगा महाराज के दरबार में संगीतज्ञ थे) और चाचा क्षितिजपाल मल्लिक से और बाद में [[सितार]] वादक रामेश्वर पाठक से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली।
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*फ्राँस के कुछ संगीत प्रेमी इनकी वीडियों रिकार्डिंग ले गये। जिस पर उन्होंने एक टैलीफिल्म तैयार की। फ्राँस, जर्मनी तथा कालम्बिया ने इनके दो रिकार्ड भी जारी किए।
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'''पंडित राम चतुर मल्लिक''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ram Chatur Mallik'',  जन्म- [[5 अक्टूबर]], [[1902]], [[बिहार]]; मृत्यु- [[11 जनवरी]], [[1990]]) '[[भारतीय शास्त्रीय संगीत]]' की [[ध्रुपद]]-[[धमार]] शैली के प्रसिद्ध गायक थे। इन्होंने ध्रुपद-धमार गायन शैली में सिर्फ़ [[भारत]] में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी ख्याति प्राप्त की थी और देश का नाम रोशन किया। मल्लिक जी ध्रुपद, [[खयाल]], [[ठुमरी]] और मैथिली लोकगीतों के अनुपम गायक थे।
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राम चतुर मल्लिक का जन्म 5 अक्टूबर, 1902 को [[बिहार]] के [[दरभंगा ज़िला|दरभंगा ज़िले]] के चमथा गाँव में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम 'पंडित राजित राम' था, जो कि दरभंगा महाराज के दरबार में प्रसिद्ध [[संगीतज्ञ]] थे। यह माना जाता है कि पंडित राम चतुर मल्लिक के पूर्वज [[राजस्थान]] से [[बिहार]] आ गये थे और [[संगीत]] में 'दरभंगा घराने' की नींव रखी थी।
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====शिक्षा====
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राम चतुर मल्लिक ने अपने चाचा 'क्षितिजपाल मल्लिक' से और बाद में [[सितार वादक]] 'रामेश्वर पाठक' से अपनी प्रारम्भिक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण की थी। दरभंगा के महाराज ने सन [[1924]] में इन्हें राज दरबारी नियुक्त किया। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के अनुज विश्वेश्वर सिंह के साथ [[1937]] में ये [[इंग्लैंण्ड]] और [[फ्राँस]] गए और वहाँ अपने शास्त्रीय संगीत से श्रोताओं को मुग्ध किया। वे मोनिया परम्परा और गौंडवानी के प्रतिनिधि गायक थे। उन्हें [[ठुमरी]] गायन में [[बनारस]] और [[गया]] की गायकी में समान दक्षता प्राप्त थी।
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==पुरस्कार व सम्मान==
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एक शास्त्रीय गायक कलाकार के रूप में पंडित राम चतुर मल्लिक ने कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त किए हैं-
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*[[1949]] में उन्हें [[आकाशवाणी]] के प्रथम श्रेणी के विशिष्ट कलाकार के रूप में सम्मानित किया गया था।
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*[[1953]] में [[राजेन्द्र प्रसाद|डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] ने इन्हें 'बिहार संगीत नाटक अकादमी' की फेलोशिप प्रदान की थी।
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*[[1957]] में [[बम्बई]] की 'सुर-श्रृंगार संसद' द्वारा इन्हें मानपत्र और ताम्रपत्र प्रदान किया गया।
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*[[1964]] में [[बिहार]] के [[राज्यपाल]] ए. एस. आयंगार ने ताम्रपत्र की उपाधि से विभूषित किया और उसी वर्ष '[[संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]]' से भी उन्हें सम्मानित किया गया।
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*[[1976]] में फ्राँस सरकार ने राम चतुर मल्लिक के ध्रुपद-धमार रिकार्ड को यूनेस्को प्रसारण के लिए चुना था।
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*[[मध्य प्रदेश]] सरकार ने इन्हें 'तानसेन' की उपाधि, बिहार सरकार ने 'महामहोपाध्याय' की उपाधि और खेरागढ़ (मध्य प्रदेश) ने इन्हें 'डी. लिट्' की उपाधि से सम्मानित किया।
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*[[फ्राँस]] के कुछ संगीत प्रेमी इनकी वीडियों रिकार्डिंग ले गये, जिस पर उन्होंने एक टैलीफ़िल्म तैयार की। फ्राँस, जर्मनी तथा कोलम्बिया ने इनके दो रिकार्ड भी जारी किए थे।  
  
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राम चतुर मल्लिक
राम चतुर मल्लिक
पूरा नाम पंडित राम चतुर मल्लिक
जन्म 5 अक्टूबर, 1902
जन्म भूमि दरभंगा ज़िला, बिहार
मृत्यु 11 जनवरी, 1990
अभिभावक पंडित राजित राम
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र 'भारतीय शास्त्रीय संगीत'
पुरस्कार-उपाधि 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार', 'तानसेन उपाधि' (मध्य प्रदेश), डी. लिट्
प्रसिद्धि शास्त्रीय गायक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 1976 में फ्राँस सरकार ने राम चतुर मल्लिक के ध्रुपद-धमार के रिकार्ड को यूनेस्को प्रसारण के लिए चुना था।

पंडित राम चतुर मल्लिक (अंग्रेज़ी: Ram Chatur Mallik, जन्म- 5 अक्टूबर, 1902, बिहार; मृत्यु- 11 जनवरी, 1990) 'भारतीय शास्त्रीय संगीत' की ध्रुपद-धमार शैली के प्रसिद्ध गायक थे। इन्होंने ध्रुपद-धमार गायन शैली में सिर्फ़ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी ख्याति प्राप्त की थी और देश का नाम रोशन किया। मल्लिक जी ध्रुपद, खयाल, ठुमरी और मैथिली लोकगीतों के अनुपम गायक थे।

जन्म

राम चतुर मल्लिक का जन्म 5 अक्टूबर, 1902 को बिहार के दरभंगा ज़िले के चमथा गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम 'पंडित राजित राम' था, जो कि दरभंगा महाराज के दरबार में प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे। यह माना जाता है कि पंडित राम चतुर मल्लिक के पूर्वज राजस्थान से बिहार आ गये थे और संगीत में 'दरभंगा घराने' की नींव रखी थी।

शिक्षा

राम चतुर मल्लिक ने अपने चाचा 'क्षितिजपाल मल्लिक' से और बाद में सितार वादक 'रामेश्वर पाठक' से अपनी प्रारम्भिक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण की थी। दरभंगा के महाराज ने सन 1924 में इन्हें राज दरबारी नियुक्त किया। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के अनुज विश्वेश्वर सिंह के साथ 1937 में ये इंग्लैंण्ड और फ्राँस गए और वहाँ अपने शास्त्रीय संगीत से श्रोताओं को मुग्ध किया। वे मोनिया परम्परा और गौंडवानी के प्रतिनिधि गायक थे। उन्हें ठुमरी गायन में बनारस और गया की गायकी में समान दक्षता प्राप्त थी।

पुरस्कार व सम्मान

एक शास्त्रीय गायक कलाकार के रूप में पंडित राम चतुर मल्लिक ने कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त किए हैं-

  • 1949 में उन्हें आकाशवाणी के प्रथम श्रेणी के विशिष्ट कलाकार के रूप में सम्मानित किया गया था।
  • 1953 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इन्हें 'बिहार संगीत नाटक अकादमी' की फेलोशिप प्रदान की थी।
  • 1957 में बम्बई की 'सुर-श्रृंगार संसद' द्वारा इन्हें मानपत्र और ताम्रपत्र प्रदान किया गया।
  • 1964 में बिहार के राज्यपाल ए. एस. आयंगार ने ताम्रपत्र की उपाधि से विभूषित किया और उसी वर्ष 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' से भी उन्हें सम्मानित किया गया।
  • 1976 में फ्राँस सरकार ने राम चतुर मल्लिक के ध्रुपद-धमार रिकार्ड को यूनेस्को प्रसारण के लिए चुना था।
  • मध्य प्रदेश सरकार ने इन्हें 'तानसेन' की उपाधि, बिहार सरकार ने 'महामहोपाध्याय' की उपाधि और खेरागढ़ (मध्य प्रदेश) ने इन्हें 'डी. लिट्' की उपाधि से सम्मानित किया।
  • फ्राँस के कुछ संगीत प्रेमी इनकी वीडियों रिकार्डिंग ले गये, जिस पर उन्होंने एक टैलीफ़िल्म तैयार की। फ्राँस, जर्मनी तथा कोलम्बिया ने इनके दो रिकार्ड भी जारी किए थे।


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