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वृद्धकन्या महर्षि कुणिगर्ग की पुत्री थी, जो बाल ब्रह्मचारिणी थीं। इसने घोर तपस्या की थी।
- नारद जी के कहने से इसने श्रृंगवान को आधा पुण्य प्रदान करने की प्रतिज्ञा कर उनके साथ विवाह किया।
- महर्षि श्रृंगवान के साथ एक रात रहकर और उन्हें अपनी तपस्या का आधा पुण्य प्रदान कर यह स्वर्ग चली गयीं, जाते समय अपने स्थान को इसने तीर्थ घोषित किया और उसका फल यों बतलाया-
"जो अपने चित्त को एकाग्र कर इस तीर्थ में स्नान, देव-पितृ तर्पण करेगा, उसे अट्ठावन वर्षों तक विधिपूर्वक ब्रह्मचर्य पालन का फल प्राप्त होगा।"[1]।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 475 |
- ↑ महाभारत शल्य पर्व 52.5-22
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