कटक

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उड़ीसा उच्च न्यायालय, कटक

कटक भारत के वर्तमान उड़ीसा राज्य की मध्ययुगीन राजधानी था, जिसे 'पद्मावती' भी कहते थे। यह नगर महानदी व उसकी सहायक नदी काठजूड़ी के मिलन स्थल पर बसा है। अपनी 'ताराकाशी कला' के लिए कटक बहुत प्रसिद्ध है। यह उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से 30 किलोमीटर की दूरी पर हावड़ा रेलमार्ग पर स्थित है प्राचीनता एवं आधुनिकता का एक विशेष मिश्रण यहाँ पर देखा जा सकता है।

इतिहास

उड़ीसा की प्राचीन राजधानी कटक का इतिहास लगभग हज़ार वर्षों से भी पुराना बताया जाता है। कटक की स्थापना केशरी वंशीय राजा नृपति केशरी द्वारा 941 ई. में की गई थी। कटक के पास ही विरुपा नदी बहती है, जो अपने प्राचीन बाँध के कारण जानी जाती है। यहाँ एक प्राचीन दुर्ग भी है, लेकिन अब इसके केवल ध्वंसावशेष ही शेष रह गये हैं। गंग वंश के शासक अनंग भीमदेव द्वारा निर्मित 'बाराबती' नामक क़िले के खण्डहर यहाँ से एक मील दूर काठजूड़ी के तट पर हैं। भीमदेव ने 1180 ई. में यह क़िला बनवाया था। कहा जाता है कि वर्तमान पुरी के जगन्नाथ मन्दिर का निर्माण भी उसी ने करवाया था। कटक मुग़लों के पतन के बाद मराठों के अधिकार में आ गया था।

समय के साथ-साथ मराठों का राज्य कटक में फैलता गया। अंग्रेज़ों के साथ व्यापार के दौरान मराठा शासकों ने राज्य में कई आकर्षक मंदिरों का निर्माण भी करवाया था। अंग्रेज़ों ने जब उड़ीसा पर अपना राज्य स्थापित किया, तब कटक को उड़ीसा की राजधानी घोषित कर दिया गया था। परंतु किसी कारण से अंग्रेज़ कटक से अपनी राजधानी भुवनेश्वर ले गए। पहले कटक में 'जुआंग' जनजाति के लोग रहा करते थे। [1]

हस्तशिल्प

कटक अपनी सुंदर हस्तशिल्प कला के लिए प्रसिद्ध है। पिपली गाँव में विभिन्न प्रकार की कलाकृति देखी जा सकती हैं। कला के ये रूप 'सरकार एंपोरियम'[2] में देखे जा सकते हैं।

पर्यटन स्थल

कटक कलेक्टोरेट

कटक अपने ऐतिहासिक स्थानों के लिये बहुत प्रसिद्ध रहा है। यहाँ पर कई स्थान हैं, जो कि पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं-

बाराबती क़िला

'बाराबाटी क़िले के बारे में बताया जाता है कि 12वीं शताब्दी के पूर्व गंग राज्य के समय में इसका निर्माण करवाया गया था। सन 1560 से 1568 के बीच राजा मुकुंददेव ने इस क़िले के परिसर में अतिरिक्त निर्माण करवाकर इसे विशाल रूप प्रदान किया था। एक लम्बे समय तक यह क़िला अफ़ग़ानियों, मुग़लों और मराठा राजाओं के अधीन रहा था। सन 1803 ई. में अंग्रेज़ों ने इस क़िले कों मराठों से छीन लिया। इसके पश्चात् अंग्रेज़ भुवनेश्वर चले गए और यह क़िला उपेक्षा का शिकार होता रहा। आज भी क़िले के खँडहर इस बात कि गवाही देते हैं कि कभी यह इमारत बुलंद रही थी।

कटक में ही नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने जन्म लिया था, जिनका घर वर्तमान समय में स्मारक के रूप में पर्यटकों के लिये खुला रहता है। यह भी मान्यता है कि सिक्खों के पहले गुरु गुरुनानक देव जगन्नाथपुरी जाते समय कुछ समय के लिये यहाँ ठहरे थे। उन्होंने जो दातून प्रयोग करने के बाद यहाँ फेंक दी थी, उससे वहाँ पर एक पेड़ उग आया था। उस जगह गुरुद्वारा बनवाया गया था। वर्तमान में यह 'गुरुद्वारा दातून साहेब' के नाम से प्रसिद्ध है। गुरुद्वारे को 'कालियाबोड़ा गुरुद्वारा' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 125-126 |
  2. मंडी
  3. श्रीवास्तव, प्रदीप। आधुनिक कटक शहर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 22 मई, 2012।

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