प्रेम चतुर्दशी

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर रात्रि से ही व्रतारम्भ हो जाता है, यदि साथ ही मंगल एवं चित्रा नक्षत्र हो तो सोने पे सुहागा, पुण्य बढ़ जाता है।
  • देवता, शिव का पूजन किया जाता है।
  • यदि 14 विद्धा हो तो वह दिन जब 14वीं तिथि रात्रि तक रहती है, श्रेष्ठ गिनी जाती है।
  • 14वीं को उपवास; शिव पूजन; शिव भक्तों को भोजन एवं दान; इस तिथि पर गंगा स्नान से पाप मुक्ति मिलती है।
  • सिर पर अपामार्ग की टहनी घुमानी चाहिए और यम के 14 नामों को लेकर यम तर्पण करना चाहिए।
  • नदी, ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के मन्दिरों, घरों एवं चौराहों पर दीप मालाएँ जलानी चाहिए।
  • अपने कुटुम्ब की 21 पीढ़ियों के साथ कर्ता शिवलोक चला जाता है।
  • इस तिथि पर कुटुम्ब के उन मृत व्यक्तियों के लिए, जो या तो युद्ध में मारे गये रहते हैं या अमावास्या में मरे रहते हैं, मशाल जलाये जाते हैं।
  • कर्ता प्रेतोपाख्यान नामक गाथा सुनता है जो 'सम्वत्सरप्रदीप'[1] में संग्रहीत है और जिसमें उन पाँच प्रेतों की कथाएँ हैं, जिनकी एक ब्राह्मण से भेंट हुई थी।
  • यह गाथा भीष्म ने युधिष्ठिर को सुनायी थी।
  • भीष्म ने यह बताया है कि किन कर्मों से व्यक्ति प्रेत हो जाता है और किन कर्मों से प्रेत की योनि से मुक्ति पाता है।
  • कर्ता को 'कृत्यचिन्तामणि' में वर्णित 14 शाकों (तरकारियों) का सेवन करना चाहिए।[2]; [3]; [4]; [5], [6]; [7]; [8]
  • यह सम्भवतः इसीलिए 'प्रेत चतुर्दशी' कहलाती है, क्योंकि इस अवसर पर प्रेतोपाख्यान सुनाया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वर्षक्रियाकौमुदी 461-467
  2. राजमार्तण्ड (1338-1345
  3. वर्ष क्रियाकौमुदी (459-467
  4. कृत्यतत्त्व (474
  5. समयमयूख (100
  6. स्मृतिकौस्तुभ (371
  7. पुरुषार्थचिन्तामणि (242-243
  8. तिथितत्त्व (124

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