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हाल ही के कुछ प्रमुख राष्ट्रीय समाचार निम्नलिखित हैं-

सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 डी-1 का सफल प्रक्षेपण

5 जून, 2017, सोमवार

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भारी भरकम सैटलाइट लॉन्च वीइकल जीएलएलवी मार्क-3 डी1 को प्रक्षेपित कर एक और बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। भारत के सबसे वजनी रॉकेट को सोमवार को शाम 5:28 बजे श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया। 16 मिनट बाद सैटलाइट को अंतरिक्ष की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। रॉकेट करीब 200 हाथियों जितना भारी है। जीएसएलवी मार्क-3 अन्य देशों के चार टन श्रेणी के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की दिशा में भारत के लिए अवसर खोलेगा। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सफलता के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी है। मोदी ने ट्वीट के जरिए कहा, 'जीएसएलवी एमके-3 डी1/जीएसएटी-19 मिशन ने भारत को नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च वीइकल और उपग्रह क्षमता के नजदीक पहुंचाया है। देश को गर्व है।' यह रॉकेट अपने साथ 3,136 किलोग्राम वजन का संचार उपग्रह जीसैट-19 लेकर गया है। अब तक 2,300 किलो से ज्यादा वजन वाले संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो को विदेशी प्रक्षेपकों पर निर्भर रहना पड़ता था। जीएसएलवी एमके3-डी1 भूस्थैतिक कक्षा में 4000 किलो तक के पेलोड ले जाने की क्षमता रखता है। इसरो के अध्यक्ष ए एस किरण कुमार ने कहा था कि यह अभियान अहम है क्योंकि "देश से प्रक्षेपित किया जाने वाला यह अब तक का सबसे भारी रॉकेट और उपग्रह है।" इससे पहले इसरो ने 3,404 किलो के संचार उपग्रह जीसैट-18 को फ्रेंच गुयाना स्थित एरियाने से प्रक्षेपित किया था। जीएसएलवी मार्क-3 लॉन्च करने के लिए उच्च गति वाले क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया है। बता दें कि करीब 30 साल की रिसर्च के बाद इसरो ने यह इंजन बनाया था। यह अभियान भारत के संचार संसाधनों को बढ़ावा देगा क्योंकि अकेला एक जीसैट-19 उपग्रह पुरानी किस्म के 6-7 संचार उपग्रहों के बराबर होगा। जीएसएलवी मिशन के डायरेक्टर जी अय्यप्पन ने कहा, 'यह जीएसएलवी मार्क-5 लॉन्च 'मेक इन इंडिया' स्पेस प्रॉजेक्ट की सफलता के साथ-साथ सामग्री, डिजाइन और प्रौद्योगिकी के मामले में भी पूरी तरह से स्वदेशी है।' उन्होंने बताया कि इसकी खासियतों में दोहरा अतिरेक, स्वास्थ्य निगरानी और दोष का पता लगाकर उसे ठीक करना शामिल है। इस प्रोजेक्ट से जुड़े एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि यह इसरो का स्मार्ट और सबसे "आज्ञाकारी लड़का" है। आज की सफलता से भारत ने जटिल क्रायोजेनिक तकनीक में महारत हासिल कर ली है और उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है, जिनके पास यह तकनीक है।

क्रायोजेनिक तकनीक

क्रायोजेनिक इंजन में इस्तेमाल होने वाली पेचीदा तकनीक है। क्रायोजेनिक इंजन शून्य से बहुत नीचे यानी क्रायोजेनिक तापमान पर काम करते हैं। माइनस 238 डिग्री फॉरेनहाइट (-238'F) को क्रायोजेनिक तापमान कहा जाता है। इस तापमान पर क्रायोजेनिक इंजन का ईंधन ऑक्सीजन और हाइड्रोजन गैसें तरल यानी लिक्विड बन जाती हैं। लिक्विड ऑक्सीजन और लिक्विड हाइड्रोजन को क्रायोजेनिक इंजन में जलाया जाता है। लिक्विड ईंधन जलने से इतनी ऊर्जा पैदा होती है जिससे क्रायोजेनिक इंजन को 4.4 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार मिल जाती है।

जीएसएलवी एमके III-डी1

4 टन के उपग्रहों को भूतुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा (जीटीओ) में प्रमोचन करने के लिए जीएसएलवी-एमके III सक्षम है। यह दो ठोस मोटर स्ट्रैप-ऑन (एस 200), एक द्रव नोदक कोर चरण (एल -110) और एक क्रायोजेनिक चरण (सी 25) वाला तीन चरण वाला वाहन है। जीएसएलवी-एमके।।।-डी 1 की यह पहली विकासात्मक उड़ान है, जो 3136 किलो जीसैट-19 उपग्रह को भू-तुल्यकाली स्थानान्तरण कक्षा (जीटीओ) के लिए वहन करेगा। वायुगतिकी मजबूती प्रदान करने के लिए वाहन को 5 एम ओगिव पेलोड फेयरिंग और त्रियक स्ट्रैप-ऑन नासिका कोन के साथ संरूपित किया गया है।

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इसरो ने सफलता पूर्वक लॉन्‍च किया साउथ एशिया सैटेलाइट

जीएसएलवी-एफ09
5 मई, 2017 शुक्रवार

करीब 450 करोड़ की लागत से बने उपग्रह (जीसैट-9) को 5 मई, 2017 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने लॉन्च किया। इससे उपग्रह से सार्क देशों के बीच संपर्क को बढ़ावा मिलेगा लेकिन पाकिस्तान इससे बाहर है। इसका उपग्रह को चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, दक्षिण एशियाई उपग्रह का सफल प्रक्षेपण ऐतिहासिक क्षण, इससे संबंधों के नए आयाम की शुरुआत होगी। जीसैट-9 को भारत की ओर से उसके दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के लिए उपहार माना जा रहा है। इस उपग्रह को इसरो का रॉकेट जीएसएलवी-एफ09 लेकर जाएगा। इसरो के अध्यक्ष ए.एस किरण कुमार ने गुरुवार को बताया था कि इससे आठ सार्क देशों में से सात भारत, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव परियोजना का हिस्सा हैं। पाकिस्तान ने यह कहते हुए इससे बाहर रहने का फैसला किया कि उसका अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम है। बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने कहा, ' इस लॉन्च से हमारे आपसी रिश्ते मजबूत होंगे। इससे लोगों को आपस में जोड़ा जा सकेगा। लैंड, वॉटर और स्पेस में हमारा आपसी सहयोग बढ़ेगा।' भूटान के पीएम शेरिंग तोबगे ने कहा, 'दक्षिण एशिया उपग्रह लॉन्च ऐतिहासिक पल है। यह दुनिया के इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि है। भारत को इसके लिए बधाई। आपसी सहयोग के लिए यह बड़ा कदम है। सैटलाइट बेस्ट संचार अब जरूरी हो गया है। हमारे क्षेत्र के लिए यह बेहतर होगा। यह भूटान जैसे देश के लिए काफी अहम होगा।' मालदीव के राष्ट्रपति यमीन अब्दुल गयूम ने कहा, 'दक्षिण एशिया में यह 'सबका साथ सबका विकास' है। यह सैटलाइट इस क्षेत्र के लिए काफी अहम होगा। यह पीएम मोदी का शानदार विजन है। इससे क्षेत्र के जनता के बीच सहयोग बढ़ेगा।' नेपाल के पीएम पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने इस शानदार लॉन्चिंग के लिए भारत को बधाई दी। उन्होंने कहा, 'यह क्षेत्र के विकास और टेलिमेडिसिन और आपदा प्रबंधन के लिए बेहतर होगा। संचार सेवा के लिए भी यह उपग्रह बेहतरीन होगा।' श्रीलंका के राष्ट्रपति एम. सिरीसेना ने भी कहा, 'यह लॉन्च सभी सार्क देशों के लिए फायदेमंद होगा। शिक्षा, पर्यावरण, मौसम अनुमान के लिए लाभदायक होगा। यह क्षेत्र के लोगों को अच्छा जीवन देगा।'

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इसरो ने एक साथ रिकार्ड 104 सैटेलाइट लॉन्च करके इतिहास रचा

15 फ़रवरी, 2017 बुधवार

अंतरिक्ष में भारत ने 15 फ़रवरी, 2017 बुधवार को एक बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रक्षेपण यान पीएसएलवी ने श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केन्द्र से एक एकल मिशन में रिकार्ड 104 उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। यहां से क़रीब 125 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा से एक ही प्रक्षेपास्त्र के जरिये रिकॉर्ड 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण सफलतापूर्वक किया गया। भारत ने एक रॉकेट से 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजकर इस तरह का इतिहास रचने वाला पहला देश बन गया है। प्रक्षेपण के कुछ देर बाद पीएसएलवी-सी37 ने भारत के काटरेसैट-2 श्रृंखला के पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह और दो अन्य उपग्रहों तथा 103 नैनो उपग्रहों को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सफल अभियान को लेकर इसरो को बधाई दी है। उन्‍होंने कहा कि पूरे देश के लिए यह गौरव का क्षण है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के प्रमुख एएस किरण कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण पर इसरो दल को बधाई दी। प्रधानमंत्री ने एक ही रॉकेट के जरिए 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण के लिए वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए कहा कि इस अहम उपलब्धि ने भारत को गौरवांवित किया है।

104 में 3 स्वदेशी एवं 101 विदेशी उपग्रह

प्रक्षेपण के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में रॉकेट से उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। रूसी अंतरिक्ष एजेंसी की ओर से एक बार में 37 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण की तुलना में भारत एक बार में 104 उपग्रह प्रक्षेपित करने में सफलता हासिल कर इतिहास रचने वाला पहला देश बन गया है। भारत ने इससे पहले जून 2015 में एक बार में 23 उपग्रहों को प्रक्षेपण किया था। यह उसका दूसरा सफल प्रयास है। पीएसएलवी पहले 714 किलोग्राम वजनी काटरेसेट-2 श्रृंखला के उपग्रह का पृथ्वी पर निगरानी के लिए प्रक्षेपण करेगा और उसके बाद 103 सहयोगी उपग्रहों को पृथ्वी से करीब 520 किलोमीटर दूर ध्रुवीय सन सिंक्रोनस ऑर्बिट में प्रविष्ट कराएगा जिनका अंतरिक्ष में कुल वजन 664 किलोग्राम है। इन 104 उपग्रहों में भारत के तीन और विदेशों के 101 सैटेलाइट शामिल है। इसरो के वैज्ञानिकों ने एक्सएल वैरियंट का इस्तेमाल किया है जो सबसे शक्तिशाली रॉकेट है और इसका इस्तेमाल महत्वाकांक्षी चंद्रयान में और मंगल मिशन में किया जा चुका है। इनमें 96 उपग्रह अमेरिका के, पांच क्रमश: इसरो के अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों- इजरायल, कजाकिस्तान, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात के हैं।

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