अंधा युग -धर्मवीर भारती

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अंधा युग -धर्मवीर भारती
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लेखक धर्मवीर भारती
मूल शीर्षक 'अंधा युग'
कथानक महाभारत युद्ध
ISBN 8122501028
देश भारत
भाषा हिन्दी
विषय साहित्य नाटक
प्रकार दृश्य काव्य
विशेष 'अंधा युग' काव्य नाटक भारतीय रंगमंच का एक महत्त्वपूर्ण नाटक है।

'अंधा युग' धर्मवीर भारती की नाट्य विधा में लिखी गयी रचना है। 'गुनाहों का देवता' और 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' के बाद उनकी यह तीसरी रचना थी जिसे कहा जा सकता है कि यह रचना तीनों रचनाओं में विविध है। जैसा कि पहले भी इस बात पर ध्यान दिया गया है कि भारती जी अपनी रचनाओं की जो भूमिका या प्रस्तावना लिखते हैं वह भी अपने आप में बहुत रुचिपूर्ण होती है। अब 'अंधा युग' की बात कर लिजिए। भारती जी ने उसमें अपनी असहाय स्थिति को बयान किया है और क्या बखूबी बयान किया है - "पर एक नशा होता है - अंधकार के गरजते महासागर की चुनौती को स्वीकार करने का, पर्वताकार लहरों से खाली हाथ जूझने का, अनमापी गहराइयों में उतरते जाने का और फिर अपने को सारे खतरों में डालकर आस्था के, प्रकाश के, सत्य के, मर्यादा के कुछ क्षणों को बटोर कर, बचा कर, धरातल तक ले जाने का - इस नशे में इतनी गहरी वेदना और इतना तीखा सुख घुला-मिला रहता है की उसके आस्वादन के लिए मन बेबस हो उठता है। उसी की उपलब्धि के लिए यह कृति लिखी गयी।"[1]

दृश्य काव्य

'अंधा युग' एक दृश्य काव्य है, यह नाट्य विधा में लिखी गयी रचना है जिसके संवाद और नेपथ्य से उद्घोषणाएं काव्यात्मक हैं। ज्यादातर संवाद मुक्त-छंद और तुकांत कविता का मिश्रण हैं। शायद काव्यात्मक संवाद का चुनाव इसलिए किया गया क्योंकि सामान्य जनमानस के लिए पद्य समझना और कंठस्थ करना, गद्य की तुलना में कहीं आसान होता है। यह कारण हो सकता है कि ज्यादातर प्राचीन रचनायेें जो लिखावट के अविष्कार या सामान्य प्रचलन के पहले से ज़िंदा हैं, वह काव्य हैं। और जब गद्य और पद्य की चर्चा छिड़ी है तो 'अज्ञेय' जी की एक बात याद आ जाती है जो उन्होंने 'अरे यायावर रहेगा याद?' में कही थी - 'हमारी कविता बानी नहीं रही, लिखतम हो गई है; ह्रदय तक नहीं जाती वरन् एक मष्तिष्क की शिक्षा-दीक्षा के संस्कारों की नली से होकर कागद पर ढाली जाती है जहाँ से दूसरा मष्तिष्क उसे संस्कारों की नली से उसे फिर खींचता है।'[1]

महाभारत कथानक

'अंधा युग' का कथानक महाभारत युद्ध के समाप्ति काल से शुरू होता है। वैसे तो अब तक महाभारत काल की घटनाओं पर काफी साहित्य लिखा जा चुका है - जिनमें कर्ण पर लिखे गए 'रश्मिरथी' और 'सूतपुत्र' प्रमुख हैं, लेकिन 'अंधा युग' इनसे थोड़ा अलग है क्योंकि यह समाज में सच मान ली गई या सच प्रचारित की गई चीजों से अलग है। इसमें युद्ध के औचित्य को चुनौती दी गई है, कृष्ण भगवान द्वारा कहे गए शब्दों को विवाद में खींचा गया है, महाभारत में - जिसमें ऐसा कहा गया था कि धर्मयुद्ध का पालन किया गया है - कुटिल योजनाओं की झलक दिखलाई गई है। ऐसा कहा जा सकता है कि पात्रों के चारों ओर से आभा हटाकर उन्हें एक सामान्य मनुष्य की तरह चित्रित किया गया है। 'अंधा युग' में मनुष्य की भावनाओं का सजीव चित्रण किया गया है। कृष्णा ने अर्जुन को भले ही गीता में सत्य के लिए युद्ध करने का सन्देश दिया हो लेकिन युद्ध में भयानक विध्वंस देखकर सभी का मन खिन्न हो गया था। ऐसा लग रहा था कि जिन आदर्शों के लिए पूरा युद्ध लड़ा गया, वो सारे आदर्श झूठे थे। धृतराष्ट्र और गांधारी यह जानते हुए भी कि उनके पुत्र धर्म की तरफ से युद्ध नहीं कर रहे हैं, अपने पुत्रों की जीत की आस लगा रखे थे। यह उनकी ममता थी। अश्वत्थामा प्रायश्चित और बदले की भावना में जल रहा था। पूरे हस्तिनापुर में एक निराशा का वातावरण था। युद्ध के वीभत्स चेहरे को भारती जी ने बहुत अच्छे से चित्रित किया है।[1]

प्रस्तुत दृश्यकाव्य में भारती जी ने पहरेदारों के माध्यम से किसी घटना को दूर से देखने वालों के मानसिक द्वंद्व का चित्रण किया है। पहरेदारों ने युद्ध में भाग नहीं लिया था लेकिन फिर भी राज्य की अव्यवस्था के कारण उनका मन उदास था। उन्होंने पहले राज्य का वैभव देखा था, अब राज्य का पराभव देख रहे थे। उनके माध्यम से भारती जी ने संभ्रांत वर्ग के निर्णयों का वंचितों पर पड़ने वाले प्रभावों को दिखाया है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 yayawar यायावर (हिन्दी) www.yayawar.in। अभिगमन तिथि: 22 जुलाई, 2017।

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