अरण्यदेवी

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अरण्यदेवी की प्रतिमा आरा (शाहाबाद) के निकट है, जो सम्भवत: देवी पार्वती की प्रतिमा है।[1] इस प्रतिमा से जुड़ी कथा इस प्रकार बताई गई है-

यह कहा जाता है कि लंका का राजा रावण एक समय कैलाश से लौटते समय आरा में, जो उस समय जगंल था, ठहर गया। वहाँ उसने भगवान शिव और पार्वती की पूजा की थी। शिवलिंग तो लुप्त हो गया, किंतु देवी पार्वती की मूर्ति अब भी विद्यमान है, जिसे "अरण्यदेवी" कहा जाता है। कहते हैं कि इसी देवी के वरदान से राजा मोरध्वज, जो इस जंगल का राजा था, के एक पुत्र हुआ। देवी की आज्ञा से राजा ने पत्नी सहित इकलौते पुत्र को देवी के सामने आरा से बलि हेतु चीरा। देवी प्रसन्न हो गयी और लड़का भी जीवित हो गया। आरा से चीरने के कारण ही इस स्थान का 'आरा' नामकरण हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 29 |

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