अल्लम प्रभु

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अल्लम प्रभु कर्नाटक के वीरशैव मत के प्रतिष्ठापक बसव के गुरु थे। उनका समय 12वीं शताब्दी का मध्य काल माना जाता है। अल्पकालिक वैवाहिक जीवन के बाद ही पत्नी का निधन हो जाने पर वह विरक्त हो गए और वन में जाकर तपस्या करने लगे थे।[1]

  • मान्यता है कि पार्वती द्वारा अल्लम प्रभु के वैराग्य की परीक्षा के बाद वह शैव मत के प्रचारक बन गए। थोड़े ही दिनों में उनकी प्रतिष्ठा कर्नाटक के वीरशैव संप्रदाय के महान साधक के रूप में हो गई।
  • अल्लम प्रभु अपनी शिष्य मंडली के साथ भारत की यात्रा पर निकल पड़े। इस यात्रा में उन्होंने बसव को दीक्षा दी थी।
  • बाहरी कर्मकांडों का खंडन अल्लम प्रभु ने किया। वे जीव और जगत के चरम सत्य का साक्षात्कार करने पर बल देते थे। वे हिंसा के कट्टर विरोधी थे। यहां तक कि भूमि के अंदर के कीटों की हत्या के भय के कारण उन्होंने भूमि को जोतने, खोदने तक का निषेध किया।
  • विद्वान अल्लम प्रभु के और शंकराचार्य के विचारों में दार्शनिक स्तर पर समानता बताते हैं। इनके अनुसार परम सत्य एक है, जो माया और अविद्या के कारण अनेक रूपों में प्रतीत होता है। वह अध्ययन आदि पर अधिक जोर न देकर शिवाद्वैत की प्राप्ति पर जोर देते थे।
  • एक मान्यता के अनुसार अल्लम प्रभु की गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) से भेंट हुई थी और दोनों ने अपने-अपने चमत्कारों का प्रदर्शन किया था। बाद में गोरखनाथ ने भी इनसे दीक्षा ली।
  • अल्लम प्रभु ने निम्न ग्रंथों की रचना की थी-
  1. ‘पटस्थल ज्ञान’
  2. ‘चारिम्य’
  3. ‘शून्य संपादन’
  4. ‘मंत्र गोप्य’
  5. 'सृष्टि वचन’


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 53-54 |

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