इब्सन हेनरिक

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इब्सन, हेनरिक जब नार्वे में नाटक का प्रचलन प्राय: नहीं के बराबर था, इब्सन (1828-1906) ने अपने नाटकों द्वारा अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की और शॉ जैसे महान्‌ नाटककारों तक को प्रभावित किया। पिता के दिवालिया हो जाने के कारण आपका प्रारंभिक जीवन गरीबी में बीता। शुरू से ही आप बड़े हठी और विद्रोही स्वभाव के थे। अपने युग के संकीर्ण विचारों का आपने आजीवन विरोध किया।

आपका पहला नाटक 'कैटीलाइन' 1850 में ओसलों में प्रकाशित हुआ जहाँ आप डाक्टरी पढ़ने गए हुए थे। कुछ समय बाद ही आपकी रुचि डाक्टरी से हटकर दर्शन और साहित्य की ओर हो गई। अगले 11 वर्षों तक रंगमंच से आपका घनिष्ठ संपर्क, पहले प्रबंधक और फिर निर्देशक के रूप में रहा। इस संपर्क के कारण आगे चलकर आपको नाट्यरचना में विशेष सहायता मिली।

अपने देश के प्रतिकूल साहित्यिक वातावरण से खिन्न होकर आप 1864 में रोम चले गए जहाँ दो वर्ष पश्चात्‌ आपने 'ब्रैड' की रचना की जिसमें तत्कालीन समाज की आत्मसंतोष की भावना एवं आध्यात्मिक शून्यता पर प्रहार किया गया है। यह नाटक अत्यंत लोक्रपिय हुआ। परंतु आपका अगला नाटक 'पिचर गिंट' (1867), जो चरित्रचित्रण तथा कवित्वपूर्ण कल्पना की दृष्टि से अत्यंत उत्कृष्ट है, इससे भी अधिक सफल रहा।

इसके बाद के यथार्थवादी नाटकों में आपने पद्य का बहिष्कार करके एक नई शैली को अपनाया। इन नाटकों में पात्रों के अंतर्द्वंद्व तथा बाह्म क्रियाकलाप दोनों का बोलचाल की भाषा में अत्यंत वास्तविक चित्रण किया गया है। 'पिलर्स ऑव सोसाइटी' (1877) में आपके आगामी अधिकांश नाटकों की विषयवस्तु का सूत्रपात हुआ। प्राय: सभी नाटकों में आपका उद्देश्य यह दिखलाना रहा है कि अधुनिक समाज मूलत: झूठा है और कुछ असत्य परंपराओं पर ही उसका जीवन निर्भर है। जिन बातों से उसका यह झूठ प्रकट होने का भय होता है उन्हें दबाने की वह सदैव चेष्टा किया करता है। 'ए डॉल्स हाऊस' (1879) और 'गोस्ट्स' (1881) ने समाज में बड़ी हलचल मचा दी। 'ए डॉल्स हाउस' में, जिसका प्रभाव शॉ के 'कैंडिडा में स्पष्ट है ,इब्सन ने नारीस्वातंत््रय तथा जागृति का समर्थन किया। गोस्ट्स' में आपने यौन रोगों को अपना विषय बनाया। इन नाटकों की सर्वत्र निंदा हुई । इन आलोचनाओं के प्रत्युत्तर में 'एनिमीज़ ऑव द पीपुल' (1882) की रचना हुई जिसमें विचारशून्य 'संगठित बहुमत' ('कपैक्ट मेजारिटी') की कड़ी आलोचना की गई है। 'द वाइल्ड डक' (1884) एक लाक्षणिक काव्यनाटिका है जिसमें आपने मानव भ्रांतियों एवं आदर्शो का विश्लेषण करके यह प्रतिपादित किया है कि सत्यवादिता साधारणतया मानव जाति के सौख्य की विधायक होती है। 'रोमरशाम' (1886) तथा 'हेडा गैब्लर' (1890) में आपने नारीस्वातंत््रय का पुन: प्रतिपादन किया। हेडा का चरित्रचित्रण इब्सन के नाटकों में सर्वश्रेष्ठ है। 'द मास्टर बिल्डर' (1892) और 'ह्वेन वी डेड अवेकेन' (1899) आपके अंतिम नाटक हैं। लाक्षणिकता तथा आत्मचारित्रिक वस्तु के अत्यधिक प्रयोग के कारण इनका पूरा आनंद उठाना कठिन हो जाता है।

इब्सन की विशेषता हे पुरानी रूढ़ियों का परित्याग ओर नई परंपराओं का विकास। आपने अपने नाटकों में ऐसे प्रश्नों पर विचार किया जिन्हें पहले कभी नाट्य साहित्य में स्थान नहीं प्राप्त हुआ था। अनंतकालीन तथा विश्वजनीन समस्याओं, अर्थात्‌ व्यक्ति ओर समाज, तथ्य और भ्रम तथा सत्य और असत्य आदर्श की परस्पर विरोधी भावनाओं पर व्यक्त किए गए विचार ही विश्वसाहित्य को इब्सन की महानतम देन हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 533-34 |

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