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कलावती

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Disamb2.jpg कलावती एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कलावती (बहुविकल्पी)

कलावती कान्यकुब्ज के राजा भनन्दन की पुत्री थीं। ये यज्ञकुंड की अग्नि से प्रकट हुई थीं। कलावती अयोनिजा, पूर्व जन्म की बातों को याद रखने वाली महासाध्वी, सुन्दरी एवं कमला की कला थी। इनका विवाह ब्रज के वृषभानु के साथ सम्पन्न हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण की प्रेयसी राधा इन्हीं की पुत्री थी।

जन्म

कलावती कान्यकुब्ज देश में उत्पन्न हुई थी। वह अयोनिजा, पूर्व जन्म की बातों को याद रखने वाली महासाध्वी, सुन्दरी थी। कान्यकुब्ज देश में महापराक्रमी नृपश्रेष्ठ भनन्दन राज्य करते थे। उन्होंने यज्ञ के अंत में यज्ञकुंड से प्रकट हुई दूध पीती नंगी बालिका के रूप में उसे पाया था। वह सुन्दरी बालिका उस कुंड से हँसती हुई निकली थी। उसकी अंग कान्ति तपाये हुए सुवर्ण के समान थी। वह तेज से उद्भासित हो रही थी। राजेन्द्र भनन्दन ने उसे गोद में लेकर अपनी प्यारी रानी मालावती को प्रसन्नतापूर्वक दे दिया।

नामकरण

कन्या को पाकर मालावती के हर्ष की सीमा न रही। वह उस बालिका को अपने स्तन पिलाकर पालने लगी। उसके अन्नप्राशन और नामकरण के दिन शुभ बेला में जब राजा सत्पुरुषों के बीच बैठे हुए थे, आकाशवाणी हुई- 'नरेश्वर! इस कन्या का नाम कलावती रखो।' यह सुनकर राजा ने वही नाम रख दिया। उन्होंने ब्राह्मणों, याचकों और वन्दीजनों को प्रचुर धन दान किया। सबको भोजन कराया और बड़ा भारी उत्सव मनाया।

युवावस्था

समयानुसार रूपवती कलावती ने युवावस्था में प्रवेश किया। सोलह वर्ष की अवस्था में वह अत्यन्त सुन्दरी दिखाई देने लगी। वह राजकन्या मुनियों के मन को भी मोह लेने में समर्थ थी। मनोहर चम्पा के समान उसकी अंग कान्ति थी तथा मुख शरत्काल के पूर्ण चन्द्र की भांति परम मनोहर था।

नन्द द्वारा विवाह प्रस्ताव

एक दिन गजराज की सी मन्दगति से चलने वाली राजकुमारी राजमार्ग से कहीं जा रही थी। नन्दजी ने उसे मार्ग में देखा। देखकर वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने उस मार्ग से आने जाने वाले लोगों से आदरपूर्वक पूछा- 'यह किसकी कन्या जा रही है।' लोगों ने बताया- 'यह महाराज भनन्दन की कन्या है। उसका नाम कलावती है। यह धन्या बाला लक्ष्मीजी के अंश से राजमन्दिर में प्रकट हुई है और कौतुकवश खेलने के लिए अपनी सहेली के घर जा रही है। ब्रजराज! आप ब्रज को पधारिये।' ऐसा उत्तर देकर लोग चले गये। नन्द के मन में बड़ा हर्ष हुआ।

वे राजभवन को गये। रथ से उतर कर उन्होंने तत्काल ही राजसभा में प्रवेश किया। राजा उठकर खड़े हो गये। उन्होंने नन्दरायजी से बातचीत की और उन्हें बैठने के लिए सोने का सिंहासन दिया। उन दोनों में परस्पर बहुत प्रेमालाप हुआ। फिर नन्द ने विनीत होकर राजा से कलावती के सम्बन्ध की बात चलायी। नन्द ने कहा- "ब्रज में सुरभानु के पुत्र श्रीमान वृषभानु निवास करते हैं, जो ब्रज के राजा हैं। वे भगवान नारायण के अंश से उत्पन्न हुए हैं और उत्तम गुणों के भण्डार, सुन्दर, सुविद्वान, सुस्थिर यौवन से युक्त, योगी, पूर्वजन्म की बातों को स्मरण करने वाले और नवयुवक हैं। आपकी कन्या भी यज्ञकुण्ड से उत्पन्न हुई है; अत: अयोनिजा है। त्रिभुवनमोहिनी कन्या कलावती भगवती कमला की अंश है और स्वभावत: शांत जान पड़ती है। वृषभानु आपकी पुत्री के योग्य हैं तथा आपकी पुत्री भी उन्हीं के योग्य है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ब्रह्मवैवर्तपुराण |प्रकाशक: गीताप्रेस गोरखपुर, गोविन्दभवन कार्यालय, कोलकाता का संस्थान |पृष्ठ संख्या: 481-482 |


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