कविता और शुद्ध कविता -रामधारी सिंह दिनकर

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कविता और शुद्ध कविता -रामधारी सिंह दिनकर
'कविता और शुद्ध कविता' रचना का आवरण पृष्ठ
लेखक रामधारी सिंह दिनकर
मूल शीर्षक कविता और शुद्ध कविता
प्रकाशक लोकभारती प्रकाशन
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 2008
ISBN 978-81-8031-325
देश भारत
भाषा हिंदी
प्रकार निबंध संग्रह
मुखपृष्ठ रचना सजिल्द
टिप्पणी हिन्दी के जो लेखक, कवि और पाठक अंग्रेजी अथवा किसी अन्य विदेशी भाषा के द्वारा पाश्चात्य साहित्य के सीधे सम्पर्क में नहीं हैं, इस पुस्तक का उद्देश्य विशेषत: उन्हीं के साथ वार्तालाप करना है।

कविता और शुद्ध कविता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के साहित्यिक निबन्धों का ही संग्रह नहीं है बल्कि इसके सभी निबन्ध एक ही ग्रन्थ के विभिन्न अध्याय हैं और वे विभिन्न दिशाओं से एक ही विषय पर प्रकाश डालते हैं। पुस्तक हमें बताती है कि कविता की चर्चा केवल कविता की चर्चा नहीं है, वह समस्त जीवन की चर्चा है। ईश्वर, कविता और क्रान्ति-इन्हें जीवन के समुच्चय में प्रवेश किए बिना नहीं समझा जा सकता। कविता अगर यह व्रत ले ले कि वह केवल शुद्ध होकर जिएगी, तो उस व्रत का प्रभाव कविता के अर्थ पर भी पड़ेगा, कवि की सामाजिक स्थिति पर भी पड़ेगा, साहित्य के प्रयोजन पर भी पड़ेगा।

भूमिका

नई कविता का आन्दोलन यूरोप में लगभग सौ वर्षों से चल रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि वह अब भी पुराना नहीं पड़ा है। उसके भीतर से बराबर नए आयाम प्रकट होते जा रहे हैं, बराबर नई चिनगारियाँ छिटकती जा रही हैं। रोमांटिक युग तक कविता किसी निश्चित चौखटे में जड़ी देखी जा सकती थी; किन्तु उसके बाद से वह दिनों-दिन हर प्रकार के चौखटे से घृणा करती आई है। आज अन्तर्राष्ट्रीय काव्य जहाँ खड़ा है, वहाँ केवल आसमान ही आसमान है, कहीं कोई क्षितिज नहीं देता। इसीलिए पुराने आलोचकों को नई कविता को छूने में अप्रियता और कुछ संकोच का भी अनुभव होता है। नए कलेवर में प्रस्तुत यह पुस्तक सभी कविता-प्रेमियों के लिए सुखद अनुभव लेकर आएगी, ऐसा लेखक का विश्वास है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कविता और शुद्ध कविता (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 28 सितम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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