किसलिए आऊं तुम्हारे द्वार? -गोपालदास नीरज

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किसलिए आऊं तुम्हारे द्वार? -गोपालदास नीरज
गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
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गोपालदास नीरज की रचनाएँ
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जब तुम्हारी ही हृदय में याद हर दम,
लोचनों में जब सदा बैठे स्वयं तुम,
फिर अरे! क्या देव, दानव क्या, मनुज क्या?
मैं जिसे पूजूं जहां भी तुम वहीं साकार!
किसलिए आऊं तुम्हारे द्वार?

क्या कहा- 'सपना वहां साकार होगा,
मुक्ति औ अमरत्व पर अधिकार होगा,
किन्तु मैं तो देव! अब उस लोक में हूं,
है जहां करती अमरता मृत्यु का श्रृंगार।
क्या करूं आकर तुम्हारे द्वार ?

तृप्ति-घट दिखला मुझे मत दो प्रलोभन,
मत डुबाओ हास में ये अश्रु के कण,
क्योंकि ढल-ढल अश्रु मुझ से कह गए हैं,
'प्यास मेरी जीत, मेरी तृप्ति ही है हार!'
मत कहो- आओ हमारे द्वार।

आज मुझमें तुम, तुम्हीं में मैं हुआ लय,
अब न अपने बीच कोई भेद-संशय,
क्योंकि तिल-तिलकर गला दी प्राण! मैंने
थी खड़ी जो बीच अपने चाह की दीवार।
व्यर्थ फिर आना तुम्हारे द्वार॥

दूर कितने भी रहो तुम पास प्रतिपल,
क्योंकि मेरी साधना ने पल-निमिष चल,
कर दिए केन्द्रित सदा को ताप-बल से,
विश्व में तुम और तुम में विश्व भर का प्यार।
हर जगह ही अब तुम्हारा द्वार॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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