केकय

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केकय रामायण तथा परवर्ती काल में पंजाब का एक जनपद था। इसे 'कैकेय', 'कैकस' या 'कैकेयस' के नाम से भी जाना जाता था। केकय देश का उल्लेख रामायण में भी आता है। राजा दशरथ की सबसे छोटी रानी कैकेयी और उसकी दासी मंथरा केकय देश की ही थी। केकय गंधार और विपाशा या बियास नदी के बीच का प्रदेश था। 'वाल्मीकि रामायण' से विदित होता है कि केकय जनपद की राजधानी 'राजगृह' या 'गिरिव्रज' में थी।

पुराण उल्लेख

  • राजा दशरथ की रानी कैकेयी, केकयराज की पुत्री थी और राम के राज्याभिषेक के पहले भरत और शत्रुघ्न राजगृह या गिरिव्रज में ही थे-

‘उभयौभरतशत्रुघ्नौ केकयेषु परंतपौ, पुरे राजगृहे रम्येमातामहनिवेशने’[1] तथा ‘गिरिव्रजपुरवरं शोघ्रमासेदुरंजसा’[2]

  • अयोध्या के दूतों की केकय देश की यात्रा के वर्णन में उनके द्वारा विपाशा नदी को पार करके पश्चिम की ओर जाने का उल्लेख है-

‘विष्णो: पदं प्रेक्षमाणा विपाशां चापि शाल्मलीम्... ’[3]

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

कनिंघम ने गिरिव्रज का अभिज्ञान झेलम नदी (पाकिस्तान) के तट पर बसे 'गिरिजाक' नामक स्थान (वर्तमान जलालाबाद, प्राचीन 'नगरहार') से किया है। अलक्षेंद्र के भारत पर आक्रमण के समय 'पुरु' या 'पौरस' केकय देश का ही राजा था। उस समय उसकी पूर्वी सीमा रामायण काल के केकय जनपद की अपेक्षा संकुचित थी और इसका विस्तार झेलम और गुजरात के ज़िलों तक ही था। जैन लेखकों के अनुसार केकय देश का आधा भाग आर्य था[4] परवर्ती काल में केकय के लोग शायद बिहार में जाकर बसे होंगे और वहाँ के प्रसिद्ध बौद्ध कालीन नगर गिरिव्रज या राजगृह का नामकरण उन्होंने अपने देश की राजधानी के नाम पर ही किया होगा।

केकय राजवंश की एक शाखा मैसूर में जाकर बस गई थी [5] पुराणों में केकय लोगों को अनु का वंशज बताया है। ऋग्वेद[6] में अनु के वंश का निवास परुष्णी नदी (रावी) के निकट या मध्य पंजाब में बताया गया है। जैन ग्रंथों में केकय के ‘सेयविया’ नामक नगर का उल्लेख है।[7] रामायण से ज्ञात होता है कि कैकयी के पिता का नाम 'अश्वपति' और भाई का नाम 'युधाजित्' था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 221 - 222 |

  1. अयोध्या कांड 67, 7
  2. अयोध्या कांड 68, 21.
  3. अयोध्या कांड 68, 19.
  4. इंडियन ऐंटिक्वेरी 1891, पृ. 375.
  5. एंशेंट हिस्ट्री अॉफ दकन, पृ. 88, 101.
  6. ऋग्वेद 1,108, 8; 7, 18, 14; 8, 10, 5
  7. इंडियन ऐंटिक्वेरी 1891, पृ. 375.

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