छोटूराम के सामाजिक कार्य

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छोटूराम के सामाजिक कार्य
छोटूराम
पूरा नाम राय रिछपाल (मूल नाम)
जन्म 24 नवम्बर, 1881
जन्म भूमि रोहतक
मृत्यु 9 जनवरी, 1945
मृत्यु स्थान लाहौर
अभिभावक पिता- सुखीराम
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी तथा राजनीतिज्ञ
पार्टी यूनियनिस्ट पार्टी
विशेष चौधरी छोटूराम की लेखनी आग उगलती थी। 'ठग बाजार की सैर' और 'बेचारा किसान' के लेखों में से 17 लेख 'जाट गजट' में छपे थे।
अन्य जानकारी अगस्त, 1920 में छोटूराम ने कांग्रेस छोड़ दी थी, क्योंकि वे गांधी जी के असहयोग आंदोलन से सहमत नहीं थे। उनका विचार था कि इस आंदोलन से किसानों का हित नहीं होगा। उनका मत था कि आज़ादी की लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़ी जाये।
छोटूराम विषय सूची

सन 1905 में छोटूराम जी ने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं सन 1907 तक अंग्रेज़ी के 'हिन्दुस्तान' समाचार पत्र का संपादन किया। यहां से छोटूराम आगरा में वकालत की डिग्री करने आ गए। झज्जर ज़िले में जन्मा यह जुझारू युवा छात्र सन 1911 में आगरा के जाट छात्रावास का अधीक्षक बना। 1911 में उन्होंने लॉ की डिग्री प्राप्ते की। यहां रहकर छोटूराम ने मेरठ और आगरा डिवीजन की सामाजिक दशा का गहन अध्ययन किया। 1912 में आपने चौधरी लालचंद के साथ वकालत आरंभ कर दी और उसी साल जाट सभा का गठन किया।

सामाजिक कार्य

प्रथम विश्वयुद्ध के समय में सर छोटूराम ने रोहतक से 22,144 जाट सैनिक भर्ती करवाये, जो सारे अन्य सैनिकों का आधा भाग था। अब तो सर छोटूराम एक महान क्रांतिकारी समाज सुधारक के रूप में अपना स्थान बना चुके थे। उन्होंने अनेक शिक्षण संस्थानों की स्थापना की, जिसमें जाट आर्य-वैदिक संस्कृत हाई स्कूल, रोहतक प्रमुख है। 1 जनवरी, 1913 को जाट आर्य-समाज ने रोहतक में एक विशाल सभा की, जिसमें जाट स्कूल की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया, जिसके फलस्वरूप 7 सितम्बर, 1913 में जाट स्कूल की स्थापना हुई।

जाट गजट

वकालत जैसे व्यवसाय में भी चौधरी साहब ने नए ऐतिहासिक आयाम जोड़े। उन्होंने झूठे मुकदमे न लेना, छल-कपट से दूर रहना, ग़रीबों को निःशुल्क कानूनी सलाह देना, मुव्वकिलों के साथ सद व्यवहार करना, अपने वकालती जीवन का आदर्श बनाया। इन्हीं सिद्धान्तों का पालन करके केवल पेशे में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में चौधरी साहब बहुत ऊंचे उठ गये थे। इन्हीं दिनों 1915 में चौधरी छोटूराम ने 'जाट गजट' नाम का क्रांतिकारी समाचार पत्र शुरू किया, जो हरियाणा का सबसे पुराना अखबार है। इसके माध्यम से छोटूराम जी ने ग्रामीण जनजीवन का उत्थान और साहूकारों द्वारा ग़रीब किसानों के शोषण पर एक सारगर्भित दर्शन दिया था, जिस पर शोध की जा सकती है।

किसानों के मसीहा

चौधरी छोटूराम ने किसानों को सही जीवन जीने का मूलमंत्र दिया। जाटों का सोनीपत की जुडिशियल बैंच में कोई प्रतिनिधि न होना, बहियों का विरोध, जिनके जरिये ग़रीब किसानों की जमीनों को गिरवी रखा जाता था, राज के साथ जुड़ी हुई साहूकार कोमों का विरोध जो किसानों की दुर्दशा के जिम्मेवार थे, के संदर्भ में किसान के शोषण के विरुद्ध उन्होंने डटकर प्रचार किया। उनके स्वयं के शब्दों में- "किसान कुंभकर्ण की नींद सो रहा है, मैं जगाने की कौशिश कर रहा हूं। कभी तलवे में गुदगुदी करता हूं, कभी मुंह पर ठंडे पानी के छींटे मारता हूं। वह आँखेंं खोलता है, करवट लेता है, अंगड़ाई लेता है और फिर जम्हाई लेकर सो जाता है। बात यह है कि किसान से फायदा उठाने वाली जमात एक ऐसी गैस अपने पास रखती है, जिससे तुरंत बेहोशी पैदा हो जाती है और किसान फिर सो जाता है।"


चौधरी साहब आगे लिखते हैं- "किसान को लोग अन्नदाता तो कहते हैं, लेकिन यह कोई नहीं देखता कि वह अन्न खाता भी है या नहीं। जो कमाता है, वह भूखा रहे यह दुनिया का सबसे बड़ा आश्चवर्य है। मैं राजा-नवाबों और हिन्दुस्तान की सभी प्रकार की सरकारों को कहता हूं कि वह किसान को इस कद्र तंग न करें कि वह उठ खड़ा हो। इस भोलानाथ को इतना तंग न करो कि वह तांडव नृत्य कर बैठे। दूसरे लोग जब सरकार से नाराज होते हैं तो कानून तोड़ते हैं, किसान जब नाराज होगा तो कानून ही नहीं तोड़ेगा, सरकार की पीठ भी तोड़ेगा।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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