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डूरण्ड रेखा

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डूरण्ड रेखा (अंग्रेज़ी: Durand Line) 1893 ई. में हिन्दुकुश में स्थापित सीमा रेखा, जो अफ़ग़ानिस्तान और ब्रिटिश भारत के जनजातीय क्षेत्रों से उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों को रेखांकित करती हुई गुज़रती थी। आधुनिक काल में यह रेखा अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा है।[1]

  • इस रेखा का नाम सर मॉर्टिमेर डूरंड, जिन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के अमीर अब्दुर रहमान ख़ां को इसे सीमा रेखा मानने पर राज़ी किया था, के नाम पर पड़ा था। संभवत: इसे भारत-अफ़ग़ान सीमा समस्या का, शेष ब्रिटिश काल के लिए समाधान कहा जा सकता है।
  • वर्ष 1849 में पंजाब पर क़ब्ज़ा कर लेने के बाद ब्रिटिश सेना ने बेतरतीबी से निर्धारित सिक्ख सीमा को सिंधु नदी के पश्चिम की तरफ़ खिसका दिया, जिससे उनके और अफ़ग़ानों के बीच एक ऐसे क्षेत्र की पट्टी रह गई, जिसमें विभिन्न पश्तो (पख़्तून) क़बीले रहते थे। प्रशासन और रक्षा के सवाल पर यह क्षेत्र हमेशा एक समस्या बना रहा। कुछ ब्रिटिश, जो टिककर रहने में यक़ीन रखते थे, सिंधु घाटी में बस जाना चाहते थे। कुछ आधुनिक विचारों वाले लोग क़ाबुल से ग़ज़नी के रास्ते कंधार चले जाना चाहते थे।
  • दूसरे भारत-अफ़ग़ान युद्ध (1878-1880 ई.) से आधुनिक सोच वालों का पलड़ा हल्का हो गया और जनजातीय क्षेत्र में विभिन्न वर्गों का प्रभाव लगभग बराबर सा हो गया। ब्रिटेन ने अनेक जनजातीय युद्ध झेलकर डूरण्ड रेखा तक अप्रत्यक्ष शासन द्वारा अपना अधिकार फैला लिया। अफ़ग़ानों ने अपनी तरफ़ के क्षेत्रों में कोई बदलाव नहीं किया।
  • 20वीं शताब्दी के मध्य में रेखा के दोनों ओर के इलाक़ों में पख़्तूनों का स्वाधीनता आंदोलन छिड़ गया और स्वतंत्र पख़्तूनिस्तान की स्थापना हो गई।
  • वर्ष 1980 में डूरण्ड रेखा के आसपास के इलाक़ों में लगभग 75 लाख पख़्तून रह रहे थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 324 |

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