तारक

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ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर 'वारांगी' और 'वज्रांग' के एक वीर, उत्पाती पुत्र का जन्म हुआ। उसके जन्म लेते ही संसार भूकम्प इत्यादि प्राकृतिक प्रकोपों से ग्रस्त हो गया। देवता अकुलाने लगे। माता-पिता के दु:ख को दूर करने वाला वह पुत्र तारक नाम से प्रसिद्ध हुआ। तारक ने शिव से वरदान प्राप्त कर देवताओं को भी पराजित कर दिया और उनके राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। देवताओं के आग्रह पर शिव के वीर्य से उत्पन्न 'स्कन्द' (कार्तिकेय) ने तारक का वध किया।

शिव से वरदान की प्राप्ति

तारक ने शिव को प्रसन्न करने के लिए आसुरी तप किया था, जिसमें वह अपने शरीर को काट-काटकर होम करने लगा था। तीनों लोकों में अग्नि प्रज्वलित हो उठी। देवता त्रस्त हो उठे। विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके उसे रिझाने का असफल प्रयास किया। सब लोग शिव की शरण में गये। शिव ने तारक से तप छोड़कर वर माँगने के लिए कहा। तारक ने वर माँगा कि वह शिव के हाथों से ही मारा जाये तथा उससे पूर्व करोड़ों वर्ष तक लोक में राज्य करे।

देवताओं से युद्ध

भगवान शिव से वरदान प्राप्त करके तारक ने असुरों का नायक बनकर देवताओं पर चढ़ाई की तथा उन्हें परास्त करके उनका राज्य हस्तगत कर लिया। यमराज, इंद्र, कुबेर आदि के स्थान दैत्यों ने ग्रहण कर लिये तथा समस्त देवताओं को बंदी बना लिया गया। शक्ति में अपने से अधिक जानकर विष्णु ने सबको नर के रूप में नृत्यादि से तारक को रिझाने की सलाह दी। इस उपनय से तारक को प्रसन्न कर उन्होंने पुन: अपने स्थान प्राप्त कर लिये। किन्तु पूर्व पराजय उनका मन सालती रही। देवताओं के पूछने पर ब्रह्मा ने कहा कि शिव के वीर्य से उत्पन्न बालक ही तारक को मारने में समर्थ हो सकता है।

कामदेव का भस्म होना

ब्रह्मा जी के मुख से इस प्रकार का उपाय जानकर देवताओं ने कामदेव से कहा कि वह शिव को विमुग्ध करे। शिव उन दिनों हिमालय पर थे। कामदेव ने अपने बाणों का प्रयोग किया तो शिव ने उसे अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया तथा हिमालय का परित्याग करके वे कैलाश पर्वत पर चले गये। पूर्वकाल में कामदेव ने ब्रह्मा के मन में सरस्वती (संध्या) के प्रति वासना उत्पन्न की थी, तब ब्रह्मा ने उसे शिव के द्वारा भस्म होने का शाप दिया था। गिरिजा और रति शिव तथा कामदेव के विरह में दुखी हो उठी। देवताओं की आराधना के फलस्वरूप शिव ने कहा, "काम अतन' नाम से विख्यात होगा। वह केवल मन में उपजा करेगा। विष्णु के अवतार कृष्ण का पुत्र होकर जन्म होगा। तब तक वह कैलास पर रहेगा। रति इंद्र के पास रहेगी।"

शिव-गिरिजा विवाह

नारद ने गिरिजा को शिव प्राप्ति के लिस तपस्या करने को कहा। कामदेव को भस्म जानकर देवतागण शिव के पास गये और उनसे इच्छा प्रकट की कि वे गिरिजा से विवाह करें तथा बारात में सब देवताओं को ले चलें। शिव ने विवाह के विरोधी होते हुए भी उनका आग्रह मान लिया। गिरिजा तपस्या कर रही थी। शिव ने 'सप्तऋषि' को उनके प्रेम की परीक्षा लेने के लिए भेजा। अनेक प्रकार से समझाने पर भी गिरिजा शिव से विवाह करने की हठ पर दृढ़ रही। उसकी माँ मैना शिव औधड़ रूप से घबरा गई। अंत में शिव ने अपने सुरूप के दर्शन दिये। 'नाद' गोत्रवाले शिव से गिरिजा का विवाह हुआ। विवाह के समय कपड़े से बाहर निकले गिरिजा के अंगूठे को देखकर ब्रह्मा से 'काम' पृथ्वी पर गिरा। उससे असंख्य 'बटुकों' का जन्म हुआ। शिव ने उन्हें सूर्य को सौंप दिया।

तारक का अन्त

शिव के विवाह पर सभी लोग बड़े प्रसन्न थे। सुअवसर देखकर रति ने अपने पति काम को माँगा। शिव ने काम को पुन: शरीर प्रदान किया। समस्त देवता यह प्रार्थना लेकर शिव के पास पहुँचे कि वे 'तारक' वध के निमित्त किसी को जन्म दें। शिव-पार्वती अंत:पुर में थे। शिव उनके बुलाने पर तुरन्त ही बाहर निकल आये। देवताओं के आने का कारण पूछने से पूर्व उन्होंने कहा, "मेरा वीर्यपात हो रहा है, जो सशक्त हो ग्रहण करे।" विष्णु के संकेत पर कपोत रूपधारी अग्नि उसका पालन करके उड़ गया। शिव के लौटने में विलम्ब देखकर पार्वती बाहर निकली और सब देवताओं से रुष्ट होकर शाप दिया कि उनकी पत्नियाँ बाँझ रहें। शिव के पुत्र 'स्कन्द' (कार्तिकेय) ने देवताओं को साथ लेकर तारक पर आक्रमण किया। वीरभद्र और तारक का युद्ध हुआ। अंत में तारक 'षडानन' (स्कन्द) की सांगी से मारा गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

विद्यावाचस्पति, डॉ. उषा पुरी भारतीय मिथक कोश, द्वितीय संस्करण - 1986 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 119।

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