तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली अनुवाक-7

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
  • भृगु ऋषि ने कहा कि अन्न की कभी निन्दा नहीं करनी चाहिए।
  • 'प्राण' ही अन्न है। शरीर में प्राण है और यह शरीर प्राण के आश्रय में है।
  • अन्न में ही अन्न की प्रतिष्ठा है।
  • जो साधक इस मर्म को समझ जाता है, वह अन्न-पाचन की शक्ति, प्रजा, पशु, ब्रह्मवर्चस का ज्ञाता होकर महान् यश को प्राप्त करता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9

तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9 | अनुवाक-10

तैत्तिरीयोपनिषद शिक्षावल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9 | अनुवाक-10 | अनुवाक-11 | अनुवाक-12