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दरिया साहेब (मारवाड़ वाले)

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दरिया साहेब एक प्रसिद्ध संत, जिनका जन्म मारवाड़ प्रदेश के 'जैतारन' नामक ग्राम में संवत 1733 में हुआ था। इनके समसामयिक एक अन्य संत दरिया भी थे, जो 'दरिया साहेब बिहार वाले' के नाम से प्रसिद्ध थे।[1]

  • पिता का निधन हो जाने के बाद दरिया साहेब परगना मेड़ता के रैनगांव में अपने मामा के रहाँ आकर रहने लगे थे।
  • इन्होंने संवत 1769 में बीकानेर के खियानसर गांव के संत प्रेम जी से दीक्षा ग्रहण की थी।
  • संत दरिया साहेब के अनुयायी इन्हें संत दादू दयाल का अवतार मानते हैं। इनकी वाणियों की संख्या एक हज़ार कही जाती है।
  • दरिया साहेब की रचनाओं का एक छोटा-सा संग्रह प्रकाशित हुआ है, जिससे इनकी विशेषताओं का कुछ पता चलता है।
  • इनके द्वारा रचे गए पदों एवं साखियों के अंतर्गत इनकी साधना संबंधी गहरे अनुभवों के अनेक उदाहरण मिलते हैं।
  • अपने पदों में अनेक स्थानों पर इन्होंने स्त्रियों की महत्ता व्यक्त की है। दरिया साहेब की भाषा पर इनके प्रांत की बोलियों का अधिक प्रभाव नहीं है।
  • संत दरिया साहेब मारवाड़ वाले का एक पद निम्नलिखित है-

संतों क्या गृहस्थ क्या त्यागी।
जेहि देखूं तेहि बाहर भीतर, घट-घट माया लागी।
माटी की भीत पवन का खंबा, गुन अवगुन से छाया।
पांच तत्त आकार मिलाकर, सहजैं गिरह बनाया।
मन भयो पिता मनस भइ माई, सुख-दुख दोनों भाई।
आसा तृस्ना बहनें मिलकर, गृह की सौज बनाई।
मोह भयो पुरुष कुबुद्धि भइ धरनी, पांचो लड़का जाया।
प्रकृति अनंत कुटुंबी मिलकर, कलहल बहुत मचाया।
लड़कों के संग लड़की जाई, ताका नाम अधीरी।
बन में बैठी घर घर डोलै, स्वारथ संग खपी री।
पाप पुण्य दोउ पार पड़ोसी, अनंत बासना नाती।
राग द्वेष का बंधन लागा, गिरह बना उतपाती।
कोइ गृह मांड़ि गिरह में बैठा, बैरागी बन बासा।
जन दरिया इक राम भजन बिन, घट घट में घर बासा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संत दरिया साहेब (हिन्दी) शाश्वत शिल्प। अभिगमन तिथि: 21 जुलाई, 2014।

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