पितृ व्रत

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।

(1) एक वर्ष के प्रत्येक अमावास्या पर यह व्रत कि्या जाता है।

  • कर्ता केवल दूध पर ही रहता है, वर्ष के अन्त में श्राद्ध करता है तथा 5 गायें या वस्त्र जलपूर्ण पात्रों के साथ दान करता है।
  • 100 पूर्वजों की रक्षा करता है (तारता है) और विष्णु लोक को जाता है।[1]

(2) चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से यह व्रत आरम्भ होता है।

  • अग्निष्वात्त, बर्हिषद आदि सात पितृ दलों की सात दिनों तक पूजा की जाती है।
  • एक या बारह वर्षों तक किया जाता है।[2]

(3) विष्णुधर्मोत्तरपुराण[3] में इसका उल्लेख है। (4) चैत्र कृष्ण 30 से प्रारम्भ होता है।

  • पितरों के सात दलों का श्राद्ध एवं उपवास किया जाता है।
  • यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है।[4]

(5) अमावास्या पर पितरों को तिल एवं जल जिसमें कुश रखे रहते हैं, उस दिन उपवास रखा जाता है।[5] (6) पिण्डों से पितृ पूजा की जाती है।

  • घृत की धारा, समिघा, दही, दूध, भोजन आदि से होम किया जाता है।
  • पितर लोग संतति प्रदान करते हैं, धन, दीर्घायु आदि देते हैं।[6]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृत्यकल्पतरु (443, 16वाँ षष्टी व्रत, मत्स्य पुराण 101|29-30 से);
  2. हेमाद्रि (व्रत0 2, 505-506, विष्णुधर्मोत्तरपुराण 3|157|1-7 से, सप्तमूर्तिव्रत कहा गया है);
  3. विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|189|1-5);
  4. हेमाद्रि (व्रत 2|255, विष्णु पुराण से);
  5. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2|253, वराह पुराण से उद्धरण);
  6. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 254, भविष्य पुराण से उद्धरण)।

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