पुकारती है ख़ामोशी मेरी फ़ुगां की तरह निगाहें कहती हैं सब राज़-ए-दिल ज़ुबां की तरह। जला के दाग़-ए-मुहब्बत ने दिल को ख़ाक किया बहार आई मेरे बाग में ख़िज़ां की तरह। तलाश-ए-यार में छोड़ी न सर-ज़मीं कोई हमारे पाँव में चक्कर हैं आसमाँ की तरह। अदा-ए-मत्लब-ए-दिल हमसे सीख जाए कोई उन्हें सुना ही दिया हाल दास्ताँ की तरह।