पुरोचन

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पुरोचन हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन का मित्र तथा मंत्री था। इसे पांडवों को लाक्षागृह में जलाकर भस्म कर देने का कार्य सौंपा गया था। भीमसेन माता कुन्ती सहित वन चले गए और पुरोचन के घर में आग लगा दी, जिससे वह स्वयं ही जलकर भस्म हो गया।

महाभारत में ऐसा उल्लेख मिलता है कि एक बार पांडव अपनी माता कुन्ती के साथ वारणावत नगर में महादेव का मेला देखने गये। दुर्योधन ने इसकी पूर्व सूचना प्राप्त करके अपने एक मन्त्री पुरोचन को वहाँ भेजकर एक लाक्षागृह तैयार कराया। पुरोचन पांडवों को जलाने की प्रतीक्षा करने लगा। योजना के अनुसार पांडव लाक्षागृह में रहने लगे। घर को देखने से तथा विदुर के कुछ संकेतों से पांडवों को घर का रहस्य ज्ञात हो गया। विदुर के एक व्यक्ति ने उसमें गुप्त सुरंग बनायी, जिसके द्वारा आग लगने की स्थिति में निकल सकना सम्भव था।

जिस दिन पुरोचन ने आग प्रज्जवलित करने की योजना की थी, उसी दिन पांडवों ने नगर के ब्राह्मणों को भोज के लिए आमन्त्रित किया। साथ में अनेक निर्धन भी खाने आये। सब लोग खा-पीकर चले गये। रात में पुरोचन के सोने पर भीम ने उसके कमरे में आग लगा दी। धीरे-धीरे आग चारों ओर लग गयी। पुरोचन भी उसी में जल मरा। विदुर द्वारा भेजे गए व्यक्ति ने जिस सुरंग का निर्माण किया था, उसी से सभी पांडव अपनी माता कुन्ती सहित वहाँ से जीवित बच निकलने में सफल रहे। सम्पूर्ण लाक्षागृह के जलकर राख हो जाने पर दुर्योधन यह सोचकर बहुत प्रसन्न हुआ कि सभी पांडव भी जलकर भस्म हो गए। किन्तु यथार्थता का ज्ञान होने पर उसे बहुत दु:ख हुआ। लाक्षागृह इलाहाबाद से पूरब गंगा तट पर है। सन 1922 ई. तक उसकी कुछ कोठरियाँ विद्यमान थी, पर अब वे गंगा की धारा से कट कर गिर गयीं। कुछ अंश अभी भी शेष हैं। उसकी मिट्टी भी विचित्र तरह की लाख की-सी ही है।


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