प्रद्युम्न

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प्रद्युम्न कामदेव के अवतार माने जाते हैं। ये भगवान श्रीकृष्ण की प्रमुख पत्नी रुक्मिणीजी के पुत्र थे। इनका जीवन-चरित्र अत्यन्त विचित्र है।

कथा

कामदेव को जब भगवान शंकर ने भस्म कर दिया, तब उसकी पत्नी रति भगवान शिव के पास जाकर करुण विलाप करने लगी। आशुतोष भगवान शिव ने उस पर दया करके उसे वरदान दिया कि द्वापर में जब सच्चिदानन्द भगवान श्रीकृष्ण का अवतार होगा, तब तुम्हारा पति उनके पुत्र के रूप में उत्पन्न होगा।


पति से मिलने की आशा में रति भगवान श्रीकृष्ण के अवतार की उत्कण्ठा के साथ प्रतीक्षा करने लगी। उसी समय शम्बरासुर नाम का एक बलवान दैत्य हुआ। उसने रति को अपने घर में रख लिया। वह शम्बरासुर के अधीन रहकर अत्यन्त दु:खी रहती थी। कालान्तर में रुक्मिणी जी के गर्भ से प्रद्युम्न का जन्म हुआ। शम्बरासुर को यह ज्ञात था कि रुक्मिणी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले भगवान श्रीकृष्ण के प्रथम पुत्र के हाथों उसकी मृत्यु होगी। इसीलिये जन्म के बाद छठी के दिन उसने अपनी माया से प्रद्युम्न का अपहरण कर लिया और उसे मृतक समझकर लवण सागर में डाल दिया। प्रद्युम्न को एक मत्स्य ने निगल लिया। मछुओं ने जाल डालकर उस मत्स्य को पकड़ लिया और उसे शम्बरासुर को भेंट कर दिया। शम्बरासुर ने उसे पकाने के लिये अपने रसोइयों को दिया। रसोइयों ने जब मत्स्य का पेट चीरा तो उससे एक अत्यन्त सुन्दर जीवित बालक निकला। उन रसोइयों की स्वामिनी रति थी, जिसका नाम उस समय मायावती था। वह पाककला में अत्यन्त निपुण थी। रसोइयों ने बालक को लाकर मायावती को दिया। मायावती उस अद्वितीय बालक को देखकर मुग्ध हो गयी। उसी समय देवर्षि नारद ने आकर मायावती को प्रद्युम्न के जन्म के रहस्य से परिचित कराया और सावधानीपूर्वक उनका पालन करने का निर्देश दिया। मायावती यत्नपूर्वक प्रद्युम्न का लालन-पालन करने लगी। थोड़े ही दिनों में प्रद्युम्न जी युवा हो गये। मायावती के व्यवहार में मातृत्व के स्थान पर पत्नीत्व का भाव था। प्रद्युम्न के कारण पूछने पर उसने बताया कि आप मेरे जन्म-जन्मान्तर के पति हैं। इस दुष्ट शम्बरासुर को मारकर आप मुझे शीघ्र द्वारकापुरी ले चलिये।


मायावती की सहायता से प्रद्युम्न जी ने शम्बरासुर का वध कर डाला। उसकी मृत्यु पर देवताओं ने प्रद्युम्न पर आकाश से पुष्पवर्षा की तथा उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। तदनन्तर मायावती के साथ विमान पर चढ़कर प्रद्युम्न जी द्वारकापुरी पहुँचे। वे आकार-प्रकार में श्रीकृष्ण की ही प्रतिमूर्ति थे। उन्हें देखकर रुक्मिणी जी का मातृस्नेह उमड़ आया, उनके स्तनों से स्वयं दुग्ध बहने लगा। रुक्मिणी जी सोच रही थीं कि यदि मेरा पुत्र कहीं जीवित हो तो इतना ही बड़ा होगा। इतने में ही वहाँ अपनी वीणा की मधुर ध्वनि पर भगवन्नामों का संकीर्तन करते हुए देवर्षि नारद पधारे। उन्होंने प्रद्युम्न का वृत्तान्त बताते हुए कहा- 'देवि! यह तुम्हारा ही पुत्र है। यह अपने अपहरणकर्ता शम्बरासुर का वध करके यहाँ आया है और यह स्त्री इसके पूर्वजन्म की पत्नी रति है।' देवर्षि नारद की बात का अनुमोदन भगवान श्रीकृष्ण ने भी किया। रुक्मिणी जी ने अपने चिरकाल से बिछड़े हुए पुत्र को हृदय से लगा लिया। प्रद्युम्न जी भगवान के चतुर्व्युह में द्वितीय स्थान पर परिगणित हैं।


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