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शरद यादव जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके थे। छात्र राजनीति से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में पहचान बनाने वाले शरद यादव ने बिहार की राजनीति में भी बड़ा मुकाम हासिल किया था। शरद यादव ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और फिर बिहार में अपना राजनीतिक परचम लहराया था। नीतीश कुमार से हुए विवाद के बाद उन्होंने जदयू का साथ छोड़ दिया था। वो बिहार की मधेपुरा सीट से कई बार सांसद रह चुके थे।

परिचय

शरद यादव का जन्म 1 जुलाई 1947 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के बंदाई गांव में किसान परिवार में हुआ था। किसान के घर जन्मे शरद पढ़ने लिखने में काफी तेज थे।

शिक्षा

प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्‍होंने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। वे इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में गोल्‍ड मेडलिस्‍ट हैं, साथ ही उन्‍होंने रॉबर्ट्सन मॉडल साइंस कॉलेज से स्‍नातक की डिग्री भी प्राप्‍त की है। वे बचपन से ही पढ़ाई में बहुत होनहार रहे। 

परिवार

शरद यादव के परिवार में पत्‍नी डॉ. रेखा यादव, एक पुत्र और एक पुत्री है। 

राजनीति

शरद यादव ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एचडी देवगौड़ा, गुरुदास दासगुप्‍ता, मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव के साथ की। वे डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से बहुत प्रेरित थे। उन्हीं से प्रेरणा पाकर शरद यादव ने कई आंदोलनों में हिस्सा लिया था। इतना ही नहीं, वे MISA के तहत 1969-70, 1972 और 1975 में जेल भी गए। उन्‍होंने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने वाले कार्य में अहम भूमिका निभाई। पहली बार 1974 में वे मध्य प्रदेश की जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। यह जेपी आंदोलन का समय था और वे हल्दर किसान के रूप में जेपी द्वारा चुने गए पहले उम्मीदवार थे। सक्रिय राजनीति में शरद यादव ने साल 1974 में कदम रखा था तब वे वे पहली बार जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद बने। वे कुल सात बार यूपी एमपी और बिहार से चुनकर लोकसभा पहुंचे थे। उनके राजनीतिक कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे कई सरकारों में केंद्रीय मंत्री भी रहे। मध्य प्रदेश में जन्में शरद यादव खुद कभी किंग नहीं बने, लेकिन बिहार के संदर्भ में देखें तो वे किंग मेकर की भूमिका में कई बार रहे। राजनीतिक जोड़-तोड़ के माहिर खिलाड़ी शरद यादव को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक गुरु माना जाता है। लालू यादव का राजनीतिक करियर बनाने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई। लालू यादव, मुलायम सिंह यादव के साथ उनकी दोस्ती और फिर दूरी के किस्से बिहार से लेकर लेकर केंद्र तक की राजनीतिक गलियारों में मशहूर है।

बिहार के अतिरिक्त मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय समाजवादी नेताओं में अग्रणी थे। कॉलेज के दिनों से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे। शरद समाजवादी राजनीति के पुरोधा नेताओं में शामिल रहे हैं। उन्होंने पांच दशक से भी ज्यादा समय तक बेबाक और सक्रिय रहकर केंद्रीय राजनीति की। खासकर बिहार की राजनीति में उनकी विशिष्ट पहचान थी और जनता के बीच लोकप्रिय भी थे। शरद मुलायम सिंह यादव और जॉर्ज फर्नांडीस जैसे समाजवादी नेताओं के समानांतर समाजवादी खेमे के एक प्रमुख नेता थे।

  • 1977 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुकाबला करने के लिए भारत के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय हुआ और एक नए दल जनता पार्टी का गठन किया गया। 1977 में कांग्रेस पार्टी को हराकर जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई। हालांकि, आंतरिक मतभेदों के कारण जनता पार्टी 1980 में टूट गई और चौधरी चरण सिंह उससे अलग हो गए। इसके बाद उन्होंने अलग पार्टी बनाई उसका नाम 'लोकदल' था। एक समय में नीतीश कुमार, बीजू पटनायक, शरद यादव और स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव भी इसी लोक दल के नेता होते थे।
  • 1980 में आम चुनाव में शरद यादव के हाथ से जबलपुर सीट निकल गई। इसके बाद मुलायम सिंह यादव के साथ उनके संबंध घनिष्ठ हो गए। मुलायम सिंह की मदद से शरद यादव की एंट्री उत्तर प्रदेश की राजनीति में हुई। 1986 में शरद यादव लोक दल के राज्यसभा सदस्य बने और फिर 1989 के लोकसभा चुनाव में यूपी के बदायूं सीट से सांसद बने। हालांकि, दोनों नेताओं की दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चली और जल्द ही शरद यादव ने उनसे भी दूरी बना ली। साल 1988 में शरद यादव ने वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल नाम से नई पार्टी शुरू की। इसके बाद वीपी सिंह 1989-90 के बीच अल्प समय के लिए प्रधानमंत्री बने, तो शरद यादव कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के प्रमुख के तौर पर केंद्रीय मंत्री बने।
  • आगे चलकर बिहार में समाजवादी राजनीति दो धाराओं में बंट गई। एक का नेतृत्व शरद यादव के हाथ रहा तो दूसरे धड़े का नेतृत्व लालू ने किया। इस दौरान शरद ने नीतीश कुमार और जार्ज फर्नांडिस को साथ लेकर कई अवसरों पर देश की राजनीति को गहरे रूप से प्रभावित किया। 1991 के लोकसभा चुनावों के दौरान लालू यादव ने शरद यादव को मधेपुरा से जनता दल के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा। बिहार और खासकर मधेपुरा ने उन्हें सिर आंखों पर बिठाया। यही वजह रही कि 1991 से 2019 तक हुए लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक चार बार वे मधेपुरा से जीतकर आए। सबसे रोचक चुनाव 1999 में हुआ। तब मधेपुरा में शरद यादव और लालू प्रसाद यादव आमने-सामने थे। शरद यादव ने अपने राजनीतिक कौशल से इस चुनाव में लालू प्रसाद यादव को पराजित कर दिया था।
  • 1996 में चारा घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव को सजा हो गई थी। इसके बाद उन्होंने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। लालू प्रसाद तब जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे। पार्टी में उनका विरोध भी हुआ था। अगले वर्ष पार्टी का चुनाव होना था। इस चुनाव में शरद यादव ने पार्टी के अध्यक्ष पद की दावेदारी की थी। लालू प्रसाद इससे सहमत नहीं थे, लेकिन तब जनता दल में रहे एचडी देवगौड़ा और रामविलास पासवान सहित कई नेताओं ने शरद यादव को अपना समर्थन दिया था। शरद पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत गए। इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल बना लिया।

छात्र संघ के अध्यक्ष

1971 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान जबलपुर मध्यप्रदेश में शरद यादव छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। 70 के दशक में कांग्रेस विरोधी आंदोलन के दौरान उनके राजनीतिक करियर का उदय हुआ। 1971 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान वे जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज, जबलपुर मध्यप्रदेश में छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। छात्र राजनीति के साथ वे पढ़ाई में भी अव्वल रहे और बीई (सिविल) में गोल्ड मेडल जीता। वर्ष 1974 में शरद यादव का राजनीतिक कद तब बढ़ गया, जब उन्होंने चौधरी चरण सिंह की भारतीय लोक दल पार्टी की ओर से विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर मध्य प्रदेश के जबलपुर में लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस को मात दी। 1977 में उन्होंने दूसरी बार इस सीट से जीत दर्ज की।

सांसद

शरद यादव चार बार बिहार के मधेपुरा सीट से सांसद रहे हैं. वे जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष के साथ केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं.

  • पहली बार 1974 में वे मध्य प्रदेश की जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। यह जेपी आंदोलन का समय था और वे हल्दर किसान के रूप में जेपी द्वारा चुने गए पहले उम्मीदवार थे।
  • 1977 में भी वे इसी लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे। उस वक्त वे युवा जनता दल के अध्यक्ष रहे। 1986 में वे राज्यसभा से सांसद चुने गए और 1989 में यूपी की बदाऊं लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर तीसरी बार संसद पहुंचे। वे 1989-1990 में टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री रहे। 
  • वे 1991 से 2014 तक बिहार की मधेपुरा सीट से सांसद रहे। 1995 में उन्हें जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया और 1996 में वे पांचवीं बार लोकसभा का चुनाव जीते। 1997 में उन्हें जनता दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। 1998 में उन्‍होंने जॉर्ज फर्नांडीस की मदद से जनता दल यूनाइटेड पार्टी बनाई, जिससे नीतीश कुमार जनता दल छोड़कर जुड़ गए।   
  • 13 अक्टूबर 1999 को उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया और एक जुलाई 2001 को वे केंद्रीय श्रम मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री चुने गए। शरद यादव 2004 में राज्यसभा से दूसरी बार सांसद बने और गृह मंत्रालय के अलावा कई कमेटियों के सदस्य रहे। 2009 में वे 7वीं बार सांसद बने और उन्हें शहरी विकास समिति का अध्यक्ष बनाया गया। 

राजनीतिक दल का गठन

शरद यादव ने अपनी खुद की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल शुरू की थी। मार्च 2020 में उन्होंने लालू यादव के संगठन राजद में विलय कर लिया। उन्होंने कहा था कि एकजुट विपक्ष की ओर पहला कदम था। शरद यादव ने जेडीयू से साल 2016 में इस्तीफा देने के बाद अपनी पार्टी का गठन किया था और उन्होंने नई पार्टी बनाई. इसके बाद इस पार्टी का उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल में विलय कर दिया. उनकी बेटी सुभाषिनी कांग्रेस में हैं.

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष

शरद यादव जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके थे। मंत्री रहे हों या विपक्ष के सांसद, उनके सामने कभी कोई ऐसा सवाल नहीं आया जिसका जवाब उन्हें नहीं सूझा हो। उनका जवाब सुनकर प्रश्न पूछने वाले चुप रह जाया करते थे।

संकट मोचक बने शरद

लालू ने शरद यादव के सहारे भाजपा के सहयोग से बिहार में सरकार बनाई। उस वक्त जनता दल में तीन खेमे थे। पहला खेमा के मुखिया तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह थे। दूसरा खेमा चंद्रशेखर का था और तीसरे खेमे को देवीलाल और शरद यादव मिलकर संभाल रहे थे। बिहार में देवीलाल के मुख्यमंत्री प्रत्याशी लालू थे। वीपी सिंह के रामसुंदर दास और चंद्रशेखर के रघुनाथ झा थे। देवीलाल के लेफ्टिनेंट के रूप में शरद यादव ने ही लालू को आगे बढ़ाया।

हालांकि, लालू की राजनीतिक मुश्किल तक बढ़ गई, जब सात महीने बाद ही उन्होंने बहुचर्चित रथयात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार करवा दिया। इस घटना के बाद भाजपा ने केंद्र और बिहार सरकार से अपना समर्तन वापस ले लिया, जिसके बाद केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई। वहीं, शरद यादव के प्रयास से झारखंड मुक्ति मोर्चा और वामदलों ने बिहार में लालू की सरकार को गिरने से बचा लिया।

सांसद पुरस्कार

2012 में संसद में उनके बेहतरीन योगदान को देखते हुए 'उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार 2012' से नवाजा गया। लोकसभा अध्‍यक्ष मीरा कुमार ने संसद के सभी सदस्‍यों की उपस्थिति में उन्‍हें यह पुरस्‍कार सौंपा। 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्हें मधेपुरा सीट पर हार का सामना करना पड़ा। 

निधन

12 जनवरी 2023 को गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में उनका निधन हो गया। जनता दल यूनाइटेड के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव नहीं रहे। गुरुवार रात गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में उनका निधन हो गया। वह 75 साल के थे। सांस लेने में तकलीफ होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी बेटी ने निधन की जानकारी दी। मध्य प्रदेश में पैतृक गांव ले जाया जाएगा जहां अंतिम संस्कार किया जाएगा।