मार खाकर चुप रहूँ मैं और हँसती भी रहूँ
जुल्म की यह इन्तेहा है और तुमसे क्या कहूँ
रूह तक घायल है मेरी जिस्म की तो छोडि़ए
सोच कर तुम ही बताओ और मैं कितना सहूँ
देह मेरी बर्फ थी मैंने इसे पानी किया
वक़्त की धारा में आखिर और मैं कैसे बहूँ
हाथ जिसका भी गहा उसने मुझे धोखा दिया
ख़ौफ़ में हूँ मैं बहुत अब हाथ मैं किसका गहूँ
ज़िन्दगी और मौत हैं दोनों ख़फ़ा मुझसे बहुत
मेरी मुश्किल ! मैं इन्हीं दोनों के बीचोबीच हूँ