रमेश भाई को जैसा मैंने जाना -कुसुम जौहरी

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रमेश भाई को जैसा मैंने जाना -कुसुम जौहरी
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संपादक अशोक कुमार शुक्ला
प्रकाशक भारतकोश पर संकलित
देश भारत
पृष्ठ: 80
भाषा हिन्दी
विषय रमेश भाई के प्रेरक प्रसंग
प्रकार संस्मरण
मुखपृष्ठ रचना प्रेरक प्रसंग‎

रमेश भाई को जैसा मैंने जाना

आलेख: कुसुम जौहरी
सचिव
सर्वोदय आश्रम टडियांवा

आदरणीय रमेश भाई को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुये रमेश भाई का बचपन से लेकर अन्तिम समय तक उनका जीवन अत्यन्त संघर्ष का रहा। अपनी दो बड़ी बहनों के बाद पैदा हुये रमेश भाई अपने माता-पिता, बाबा और दोनों बहनों के बाद में हुये दो छोटे भाइयों के अतिप्रिय रमेश भाई अपने गांव (थमरवा) में भी सभी के प्रिय थे। शांत स्वभाव के रमेश भाई को बचपन से ही अपने गांव में प्रचलित कुप्रथायें उद्वेलित करती रहती थीं उन्हें समझ में नहीं आता था कि औरतें ही क्यों ख़रीदी-बेची क्यों जाती हैं? धार्मिक अनुष्ठानों विशेषकर रामायण आदि में केवल पुरुष और उनमें भी सवर्णं जाति के लोग व्यास गद्दी पर क्यों बैठते हैं? भूत-प्रेत, झाड-फूंक आदि पर भी उनके मन में प्रश्न चिन्ह थे। रमेश भाई की विशेषता यह रही कि आम बच्चों की तरह वे खिलौने से नहीं खेले बल्कि अपने से कहीं बड़ी उम्र के व्यक्तियों से बातचीत के द्वारा अपने मन की शंकाओं के समाधान का प्रयास करते।

गांव में केवल कक्षा 5 की पढ़ाई की व्यवस्था थी आगे की पढ़ाई के लिये उन्हें गोपामऊ बड़े लड़कों के साथ पैदल जाना, भागते-दौड़ते पड़ता था अतः उन्हें बहुत तेज चलने की आदत पड़ गयी और उसी समय उन्हें समझ में आ गया कि गांव के अधिकांश बच्चे और ख़ास कर लड़कियां क्यों नहीं पढ़ पा रहीं? जब वह कक्षा 11-12 में अध्ययनरत थे उसी समय उन्होंने अपने गांव आदर्श विद्यालय की स्थापना की जो आज इन्टरमीडिएट कालेज है जिसमें सैकड़ों लड़कियाँ-लड़के अध्ययनरत हैं।

जब उनकी आयु के अन्य बच्चे अपने कैरियर की चिन्ता में व्यस्त थे तब रमेश भाई हर छुट्टी में जगह-जगह रामायण करा रहे होते जिसमें व्यास गद्दी में हरिजन और महिलायें बैठती थीं इस प्रकार कक्षा 9, 10, 11 में पढ़ने वाले बच्चे ने समाज को सकारात्मक रूप से सह बताने की कोशिश की धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा पद्धति में कोई ऊँचा-नीचा नहीं है

गोपाामऊ से कक्षा 8 पास करने के बाद हरदोई शहर में जब नाम लिखाने आये तो वर्तमान आर0आर0 कालेज की बिल्डिंग ने आकर्षित किया और उन्होंने उसी स्कूल में पढ़ने का फैसला किया किराये के मकान में रहकर अपने हाथ से खिचड़ी बनाकर घर सोमवार को आते और शनिवार को घर पहुँचने की जल्दी रहती।

हरदोई से स्नातक करने के पश्चात् आगे की पढ़ाई हेतु सीतापुर जाना पड़ा जहां उनके कवि मन को अनुकूल हवा मिली कविताये ंतो बचपन से ही लिखते थे परन्तु यहां आकर कवि सम्मेलनों में जाने से कविताओं में निखार आ गया आज यहां कल वहां न जाने कितनों कवि सम्मेलनों में भाग लेते रहे।

कुशाग्रबुद्धि के रमेश भाई के मन पर अपनी माँ से अध्यात्म और गणित पिता से कूटनीति, राजनीति तथा बाबा से करुणा का घर/दर्शन, राजनीति और साहित्य उनके प्रिय विद्यालय में ही उन्होंने अनेक धर्मग्रन्थों का अध्ययन कर डाला था इसी बीच उनके गांव सर्वोदय यात्रियों का पडाव था रमेश भाई ने समझा कि यही विनोबा जी हैं और उनके साथ जाने की जिद करके चले गये। उन्होंने र्कइं यात्राएं कीं और जय प्रकाश नारायण के साथ चम्बल में डाकुओं के साथ आत्म समर्पण करवाने का काम के साथ उन्हें अपना भविष्य तय कर लिया मन में विनोबा के हृदय परिवर्तन के विचार को स्वीकार कर
सर्वोदय विचारकों के साथ आगे बढ़ गये।

तरूण शान्ति सेवा का नेतृत्व, बिहार, महाराष्ट्र में भूमि आवन्टन, बाद में आदरणीय निर्मला देशपान्डे दीदी के नेतृत्व में उ0प्र0 भूमि व्यवस्था समिति अनेक प्रकार के रचनात्मक कार्यक्रमों का संचालन किया।

इस समय उनके जीवन में अत्यन्त संघर्ष था, देश में इमरजेन्सी लगी थी भूमि व्यवस्था भंग हो चुकी थी। विद्यालय की मान्यता लेने का काम सर पर था और गुजरात के श्री हरिवल्लभ भाई पारीख ने की व कुछ अन्य मित्रों की सहायता से अखिल भारत खेत मज़दूर किसान परिषद का उ0प्र0 में संगठन ही खड़ा किया और उसमें प्रादेशिक सम्मेलन भी आयोजित किये और इसी संगठन के द्वारा जनपद हरदोई में मुफ़्त क़ानूनी सहायता नामक योजना प्रारम्भ की इसमें पूरे जनपद के खेत मज़दूरों, छोटे किसानों और शिल्पकारों को संगठित किया उनके छोटे-मोटे मसलों का गाँव में हल खोजा व अत्यन्त ग़रीबों के मुकदमों को लड़ने के लिये मुफ़्त वकील उपलब्ध करवाया। यह सब करते-करते ज़िले में असंख्य छोटे किसान मज़दूरों के खेतों पर करों से मुक्त करवाया, उनका क़ब्ज़ा दिलवाया यह जब करने के साथ ही यह चिन्तन-मन्थन चलता रहा कि आगे क्या करना है संस्था निर्माण की बात पर हमेशा कहते कि संस्था में क्रांति में बाधक होती हैं फिर भी लम्बे चिन्तन के पश्चान विनोबा जी देह छोड़ने के पश्चात् निर्मला दीदी के अनुरोध पर कि कहीं तो गाँधी विनोबा के कार्यक्रमों को मूर्तरूप दिया जा सके जिससे नये कार्यकर्ता प्रेरण ले सकें। अतः सर्वप्रथम अपने साथियों के सहयोग से भूरज सेवा संस्थान फिर विनोबा सेवा आश्रम - शाहजहाँपुर और अन्त में सर्वोदय आश्रम का गठन किया।

इसके पश्चात् तो फिर रूकने का नाम नहीं जो भी मन में गाँधी विनोबा के विचार थे उन्हें मूर्त रूप देने का काम प्रारम्भ हो गया जो आज सबके सामने है।

आदरणीय रमेश भाई की कार्यशैली इस प्रकार की थी कि बड़े से बड़ा अधिकारी और आश्रम पर कार्य करने वाला मज़दूर सभी को लगता थ कि रमेश भाई उनसे पूछे बगैर कुछ भी नहीं करते इसलिये हर किसी को चाहे वह कार्यकर्ता हो या रिश्तेदार या अन्य कोई सभी को महसूस होता था कि यह जगह उनकी है जो भी हो रहा है उसमें सबकी भागीदारी है उनकार अपना काम है प्रत्येक व्यक्ति से मित्रवत हँस के बात करना और उस पर पूरा विश्वास करना यह उनकी विशेषता रही। स्वयं के धन संचन में कभी भी रुचि नहीं दिखाई और किसी के भी माँगने पर जो भी जेब में पड़ा होता, निकाल देते और अपनी ज़रूरत पड़ने पर दूसरों से उसी अधिकार से मांग भी लेते थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि जब कोई सामाज के लिये कार्य करता है तब उसकी आवष्यकता पड़ने पर जो समाज दद करता है और यह बात उनकी बेटी रश्मि की बीमारी में सबने देखा कि किस तरह लोगों की मदद वे अपनी बेटी का इलाज करा सके। जीवन में उन्होंने पैसे और अच्छे कपड़ों की तरफ कभी भी ध्यान नहीं दिया उनका मानना थ कि लोग आपको कपड़ों और पैसे से नहीं बल्कि आपके कार्यों से पहचानते हैं। पैतृक सम्पत्ति में भी उन्होंने कुछ भी ग्रहण नहीं किया और उनके संसार से जाने के पश्चात् उनके खाते में भी कुछ नहीं था।

रमेश भाई को एक बड़ी विशेषता यह भी थी कि उन्हें व्यक्तियों की पहचान थी और उन्होंने अनेक कार्यकर्ताओं का निर्माण किया और उनका पूरा सम्मान किया अपने कार्यकर्ता को उन्होंने हमेशा अपना साथी कहा कि सफलता इस बात पर निर्भर करती हे कि कार्यक्रम के किसी भ्ज्ञी कार्य की नियोजन, क्रियान्वयन एवं मूल्यांकन में उनकी सहभागिता प्रारम्भ से रहे और इस सिद्धान्त को उन्होंन सफलतापूर्वक जिया। इसीलिये प्रत्येक कार्यकर्ता उन्हें अपना संरक्षण, मित्र, मार्गदर्शक, मानता है और उनके लिये समर्पित रहा इसीलिये उन्होंने उनके साथ मिलकर ऊसर सुधार भूमि आवंटन जैसे मुश्किल कार्यों को भी जैसे सरलता से कर लिया। कहीं जाना है तो रिजर्वेशन का होना न होना कोई बाधा नहीं। रिजर्वेशन न होने पर हँस कहते कि अच्छा है सारी ट्रेन अपनी है चाहे जहाँ बैठो सुन्दर ठांठ से। यह उनकी विषयों के प्रति अनासक्ति भाव था।

निर्मला दीदी के साथ रमेश भाई का व्यक्तित्व निखर कर सामने आता था। किसी सभा के पहले रमेश भाई का विषय प्रवेश करना फिर उस पर दीदी का बोलना जिस ऊँचाई पर पहुँचना लो झूम उठते विचार की गहराई में डूब जाते। दीदी सदैव सलाह लेती रमेश भाई मैं क्या बोलूँ? अति विद्वान् विनोबा के साहित्य में रहीं ज्ञानी दीदी को मार्ग दर्शन करना रमेश भाई के ही बस की बात थी।
दीदी के साथ मिल कर उन्होंने अखिल भारतीय रचनात्मक समाज और हरिजन सेवक दोनों के महामन्त्री होने का गौरव प्राप्त हुआ।

निर्मला दीदी का पूरा विश्वास रमेश भाई पर अनेक अखिल भारतीय रचनात्मक सम्मेलनों का सफल संचालन देखते बनता था। सम्मेलन, कार्यकर्ताओं के साथ बैठना, शांन्ति कार्यों में जाना चाहे कश्मीर हो या मुरादाबाद यह सब उनके मन के कार्य के बराबरी, समता उनके लिये मन्त्र सिद्धान्त नहीं थे बल्कि उन्होंने इसे जिया था। ऊसर सुधार की योजना बनते समय उन्होंने बड़ी स्पष्टता और दृढ़ता से अपने सहयोग देने को मना कर दिया जब प्रदेश के मुख्य सचिव ने कहा कि ये जमीन उद्योगपत्तियों को दे दी जाये। अन्त में अधिकारियों को झुकना पड़ा और रमेश भाई की बात माननी पड़ी कि इस खराब और बेकार जमीन को भूमिहीनों, मज़दूरों में बाँटी जाय उस पर उनका स्वामित्व हो और उनके सहयोग से ऊसर सुधार कार्य किया जाय।

महिलाओं की सहभागिता और जेन्डर संवेदनशीलता भी उनके स्वभाव में थी संस्था में महिलायों की एवं अन्य सभी जातियों की सहभागिता इसका प्रमाण है।

अपने साथियों को उनकी योग्यतानुसार कार्य देने व कार्य करने की पूरी स्वतन्त्रता देने और उसमें जानकारी होने पर भी अपने को अलग रखना साथियों की छोटी-2 सफलताओं पर प्रसन्न होना, आगे बढ़ने का मौका देना प्रोत्साहन देने का उनकी अद्भुत स्वभाव था यही तक असली नेता की पहचान है। साथियों के मध्य उनका व्यवहार एक मिसाल हैं। अपनी बेटी की बढ़ती बीमारी उनकी चिन्ता थी परन्तु फिर भी जब डाक्टर कुछ उसके बारे में गंभीर बात बाहर ले जाकर कहते तो वे थोड़ी देर बाद बहुत हल्का करके सबको बताते कि ताकि कोई परेशान न हो।

अचानक एक दिने उन्हें चक्कर आया और सब कुछ खत्म सा होता महसूस हुआ फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सब काम जल्दी-2 पूरा करने का उपाय सोचते रहे परन्तु ईश्वर का विधान कुछ और था ज्यों-2 इलाज प्रारम्भ हुआ उनका कष्ट बढ़ता गया। डाक्टर ने कहा कि आपरेशन के पश्चात् बोलना बन्द हो सकता है तो निर्भीकता से कहा कोई बात नहीं मैं लिखने का काम करूँगा बहुत लम्बे समय से लिखा नहीं है किन्तु समय ने उन्हें वह अवसर नहीं दिया धीरे-2 उनको हालत खराब होती गयी और एक वर्ष की घोर पीड़ा के पश्चात् उनका शरीर छूअ गया।

वे अपने पीछे एक मजबूत सोच, स्वस्थ विचार के व्यवस्थित संस्था आगे के ग़रीबों के कार्यों के लिये छोड़ गये। ईश्वर हमें उनके दिखाये मार्ग पर चलने की सद्बुद्धि प्रदान करे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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