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राजेंद्र यादव

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राजेंद्र यादव
राजेंद्र यादव
पूरा नाम राजेंद्र यादव
जन्म 28 अगस्त 1929
जन्म भूमि आगरा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 28 अक्टूबर, 2013 (84 वर्ष)
मृत्यु स्थान नई दिल्ली
पति/पत्नी मन्नू भंडारी
कर्म-क्षेत्र उपन्यास, कहानी, आलोचना
मुख्य रचनाएँ उपन्यास- सारा आकाश, उखड़े हुए लोग, शह और मात; कहानी संग्रह- देवताओं की मूर्तियां, खेल खिलौने, जहां लक्ष्मी कैद है; आलोचना- कहानी : अनुभव और अभिव्यक्ति, कांटे की बात - बारह खंड।
भाषा हिंदी
विद्यालय आगरा विश्वविद्यालय
शिक्षा एम.ए. (हिन्दी)
पुरस्कार-उपाधि शलाका सम्मान
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी राजेंद्र यादव संयुक्त मोर्चा सरकार में वर्ष 1999 से लेकर 2001 तक 'प्रसार भारती' के सदस्य भी बनाये गये थे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

राजेंद्र यादव (अंग्रेज़ी: Rajendra Yadav, जन्म: 28 अगस्त 1929 - मृत्यु: 28 अक्टूबर 2013) हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध पत्रिका हंस के सम्पादक और लोकप्रिय उपन्यासकार थे। राजेंद्र यादव ने 1951 ई. में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी) की परीक्षा प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की। जिस दौर में हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाएं अकाल मौत का शिकार हो रही थीं, उस दौर में भी हंस का लगातार प्रकाशन राजेंद्र यादव की वजह से ही संभव हो पाया। उपन्यास, कहानी, कविता और आलोचना सहित साहित्य की तमाम विधाओं पर उनकी समान पकड़ थी।

जीवन परिचय

हिंदी पत्रिका ‘हंस‘ के 25 साल और हिन्दी साहित्य के ‘द ग्रेट शो मैन‘ राजेंद्र यादव यदि भारत में आज हिन्दी साहित्य जगत् की लब्धप्रतिष्ठित पत्रिकाओं का नाम लिया जाये तो उनमें शीर्ष पर है-हंस और यदि मूर्धन्य विद्वानों का नाम लिया जाय तो सर्वप्रथम राजेंद्र यादव का नाम सामने आता है। साहित्य सम्राट प्रेमचंद की विरासत व मूल्यों को जब लोग भुला रहे थे, तब राजेंद्र यादव ने प्रेमचंद द्वारा 1930 में प्रकाशित पत्रिका ‘हंस’ का पुर्नप्रकाशन आरम्भ करके साहित्यिक मूल्यों को एक नई दिशा दी। अपने 25 साल पूरे कर चुकी यह पत्रिका अपने अन्दर कहानी, कविता, लेख, संस्मरण, समीक्षा, लघुकथा, ग़ज़ल इत्यादि सभी विधाओं को उत्कृष्टता के साथ समेटे हुए है। ‘‘मेरी-तेरी उसकी बात‘‘ के तहत प्रस्तुत राजेंद्र यादव की सम्पादकीय सदैव एक नये विमर्श को खड़ा करती नज़र आती है। यह अकेली ऐसी पत्रिका है जिसके सम्पादकीय पर तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं किसी न किसी रूप में बहस करती नजर आती हैं। समकालीन सृजन संदर्भ के अन्तर्गत भारत भारद्वाज द्वारा तमाम चर्चित पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं पर चर्चा, मुख्तसर के अन्तर्गत साहित्य-समाचार तो बात बोलेगी के अन्तर्गत कार्यकारी संपादक संजीव के शब्द पत्रिका को धार देते हैं। साहित्य में अनामंत्रित एवं जिन्होंने मुझे बिगाड़ा जैसे स्तम्भ पत्रिका को और भी लोकप्रियता प्रदान करते है। कविता से लेखन की शुरूआत करने वाले हंस के सम्पादक राजेंद्र यादव ने बड़ी बेबाकी से सामन्ती मूल्यों पर प्रहार किया और दलित व नारी विमर्श को हिन्दी साहित्य जगत् में चर्चा का मुख्य विषय बनाने का श्रेय भी उनके खाते में है। निश्चिततः यह तत्व हंस पत्रिका में भी उभरकर सामने आता है। आज भी ‘हंस’ पत्रिका में छपना बड़े-बड़े साहित्यकारों की दिली तमन्ना रहती है। न जाने कितनी प्रतिभाओं को इस पत्रिका ने पहचाना, तराशा और सितारा बना दिया, तभी तो इसके संपादक राजेंद्र यादव को हिन्दी साहित्य का ‘द ग्रेट शो मैन‘ कहा जाता है। निश्चिततः साहित्यिक क्षेत्र में हंस एवं इसके विलक्षण संपादक राजेंद्र यादव का योगदान अप्रतिम है।[1]

प्रमुख कृतियाँ

उपन्यास
  • सारा आकाश
  • उखड़े हुए लोग
  • शह और मात
  • एक इंच मुस्कान
  • कुलटा
  • अनदेखे अनजाने पुल
  • मंत्र विद्ध
  • स्वरूप और संवेदना
  • एक था शैलेन्द्र
कहानी संग्रह
  • देवताओं की मूर्तियां
  • खेल खिलौने
  • जहां लक्ष्मी कैद है
  • छोटे-छोटे ताजमहल
  • किनारे से किनारे तक
  • टूटना
  • ढोल और अपने पार
  • वहां पहुंचने की दौड़
कविता संग्रह
  • आवाज़ तेरी है
आलोचना
  • कहानी : अनुभव और अभिव्यक्ति
  • कांटे की बात - बारह खंड
  • प्रेमचंद की विरासत
  • अठारह उपन्यास
  • औरों के बहाने
  • आदमी की निगाह में औरत
  • वे देवता नहीं हैं
  • मुड़-मुड़के देखता हूं
  • अब वे वहां नहीं रहते
  • काश, मैं राष्ट्रद्रोही होता

निधन

28 अक्टूबर 2013, सोमवार

राजेन्द्र यादव का नई दिल्ली में 28 अक्टूबर 2013 (मध्य रात्रि सोमवार) को निधन हो गया। वह 84 वर्ष के थे। राजेन्द्र यादव की अचानक तबियत खराब हो गई और उन्हें सांस लेने की तकलीफ होने लगी। उन्हें 11 बजे के बाद फौरन एक निजी अस्पताल ले जाया गया। लेकिन उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। राजेंद्र यादव हिन्दी साहित्य का एक मजबूत स्तंभ थे। राजेन्द्र यादव को हिन्दी साहित्य में ‘नई कहानी’ के दौर को गढ़ने वालों में से एक माना जाता है। उन्होंने कमलेश्वर और मोहन राकेश के साथ नई कहानी आंदोलन की शुरुआत की।

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