विद्येश्वर संहिता

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विद्येश्वर संहिता भगवान शिव से सम्बन्धित है। इस संहिता में 'शिवरात्रि व्रत', 'पंचकृत्य', 'ओंकार का महत्त्व', 'शिवलिंग की पूजा' और 'दान के महत्त्व' आदि पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और रुद्राक्ष का महत्त्व भी बताया गया है। इसमें बताया गया है कि रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है। खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए। सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है, जिसमें स्वयं ही छेद होता है।

रुद्राक्ष वर्णन

सभी वर्ण के मनुष्यों को प्रात:काल की भोर वेला में उठकर सूर्य की ओर मुख करके देवताओं अर्थात् शिव का ध्यान करना चाहिए। अर्जित धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिए। इसके अलावा क्रोध कभी नहीं करना चाहिए और न ही क्रोध उत्पन्न करने वाले वचन बोलने चाहिए। रुद्राक्ष के संदर्भ में 'शिवमहापुराण' के 'विद्येश्वर संहिता' में वर्णन मिलता है। इसके अनुसार-

  • एक मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात भगवान शिव का स्वरूप है। वह भोग और मोक्ष प्रदान करता है। जहाँ इस रूद्राक्ष की पूजा होती है, वहाँ से लक्ष्मी दूर नहीं जाती।
  • दो मुख वाला रुद्राक्ष 'देवदेवेश्वर' कहा गया है। यह संपूर्ण कामनाओं और मनोवांछित फल देने वाला है।
  • तीन मुख वाला रुद्राक्ष सदा साक्षात साधन का फल देने वाला है, उसके प्रभाव से सारी विद्याएँ प्रतिष्ठित होती हैं।
  • चार मुख वाला रुद्राक्ष ब्रह्मा का स्वरूप है। उसके दर्शन तथा स्पर्श से धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • पांच मुख वाला रुद्राक्ष 'कालाग्निरुद्ररूप' है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्ति देने वाला तथा संपूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है।
  • छ: मुख वाला रुद्राक्ष कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे धारण करने वाला ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है।

भगवान शंकर की उपासना में रुद्राक्ष का अत्यन्त महत्व है। रुद्राक्ष शब्द की शास्त्रीय विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसकी उत्पत्ति महादेव जी के अश्रुओं से हुई है-

रुद्रस्य अक्षि रुद्राक्ष:, अक्ष्युपलक्षितम्अश्रु, तज्जन्य: वृक्ष:।

'शिवपुराण' की 'विद्येश्वर संहिता' तथा 'श्रीमद्देवी भागवत' में इस संदर्भ में कथाएँ मिलती हैं। उनका सारांश यह है कि अनेक वर्षों की समाधि के बाद जब सदाशिव ने अपने नेत्र खोले, तब उनके नेत्रों से कुछ आँसू पृथ्वी पर गिरे। उन्हीं अश्रु बिन्दुओं से रुद्राक्ष के महान् वृक्ष उत्पन्न हुए।


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