विश्व हिन्दी सम्मेलन

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विश्व हिन्दी सम्मेलन
दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का लोगो
विवरण 'विश्व हिन्दी सम्मेलन' सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जो हिन्दी भाषा से जुड़ा है। विश्व भर से हिन्दी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ तथा हिन्दी प्रेमी आदि इसमें सम्मिलित होते हैं।
संकल्पना राष्ट्रभाषा प्रचार समिति', वर्धा द्वारा 1973 में।
प्रथम आयोजन 10-12 जनवरी (1975), नागपुर, भारत
कुल आयोजन अब तक नौ आयोजन हो चुके हैं-
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अन्य जानकारी हिन्दी की अंतर्निहित शक्ति से प्रेरित होकर भारत के नेताओं ने इसे अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम के दौरान संवाद की भाषा बनाया। यह दिशा राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने निर्धारित की थी, जिसका अनुपालन पूरे देश ने किया।

विश्व हिन्दी सम्मेलन (अंग्रेज़ी:Vishwa Hindi Sammelan) हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें विश्व भर से हिन्दी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ तथा हिन्दी प्रेमी शामिल होते हैं। 'विश्व हिंदी सम्मेलन' की संकल्पना 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति', वर्धा द्वारा 1973 में की गई थी। संकल्पना के फलस्वरूप 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति', वर्धा के तत्वावधान में 'प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन' 10-12 जनवरी, 1975 को नागपुर, भारत में आयोजित किया गया था।

शुरुआत

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की राष्ट्रभाषा के प्रति जागरुकता पैदा करने, समय-समय पर हिन्दी की विकास यात्रा का आकलन करने, लेखक व पाठक दोनों के स्तर पर हिन्दी साहित्य के प्रति सरोकारों को और दृढ़ करने, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने तथा हिन्दी के प्रति प्रवासी भारतीयों के भावुकतापूर्ण व महत्त्वपूर्ण रिश्तों को और अधिक गहराई व मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से ही 1975 में 'विश्व हिन्दी सम्मेलनों' की श्रृंखला शुरू हुई। इस बारे में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने पहल की थी। पहला 'विश्व हिन्दी सम्मेलन' राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के सहयोग से नागपुर में सम्पन्न हुआ था। तब से अब तक नौ 'विश्व हिन्दी सम्मेलन' हो चुके हैं।

उद्देश्य

  • सम्मेलन का उद्देश्य इस विषय पर विचार विमर्श करना था कि तत्कालीन वैश्विक परिस्थिति में हिंदी किस प्रकार सेवा का साधन बन सकती है। महात्मा गाँधी की सेवा भावना से अनुप्राणित हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रवेश पाकर विश्वभाषा के रूप में समस्त मानव जाति की सेवा की ओर अग्रसर हो। साथ ही यह किस प्रकार भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र 'वसुधैव कुटुंबकम' विश्व के समक्ष प्रस्तुत करके 'एक विश्व एक मानव परिवार' की भावना का संचार करे।
  • सम्मेलन के आयोजकों को विनोबा भावे का शुभाशीर्वाद तथा केंद्र सरकार के साथ-साथ महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, गुजरात आदि राज्य सरकारों का समर्थन भी प्राप्त हुआ। नागपुर विश्वविद्यालय के प्रांगण में 'विश्व हिंदी नगर' का निर्माण किया गया। तुलसीदास, मीरां, सूरदास, कबीर, नामदेव और रैदास के नाम से अनेक प्रवेश द्वार बनाए गए। प्रतिनिधियों और अतिथियों के आवास का नाम 'विश्व संगम', 'मित्र निकेतन' 'विद्या विहार' और 'पत्रकार निवास' रखा गया। भोजनालयों के नाम भी 'अन्नपूर्णा', 'आकाश गंगा' आदि रखे गए।
  • 'विश्व हिन्दी सम्मेलन' में काका साहेब कालेलकर ने हिन्दी भाषा के सेवा धर्म को रेखांकित करते हुए कहा था कि- "हम सबका धर्म सेवा धर्म है और हिन्दी इस सेवा का माध्यम है। सभी हिन्दी भाषियों ने हिन्दी के माध्यम से आज़ादी से पहले और आज़ाद होने के बाद भी समूचे राष्ट्र की सेवा की है और अब इसी हिन्दी के माध्यम से विश्व की, सारी मानवता की सेवा करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
  • हिन्दी भाषा की अंतर्निहित शक्ति से प्रेरित होकर भारत के नेताओं ने इसे अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम के दौरान संवाद की भाषा बनाया। यह दिशा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने निर्धारित की, जिसका अनुपालन पूरे देश ने किया। स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले अधिकांश सेनानी हिन्दीतर प्रदेशों से तथा अन्य भाषा-भाषी थे। इन सभी ने देश को एक सूत्र में बांधने के लिए संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी के सामर्थ्य और शक्ति को पहचाना और उसका भरपूर उपयोग किया। हिन्दी को भावनात्मक धरातल से उठाकर ठोस एवं व्यापक स्वरूप प्रदान करने के उद्देश्य से और यह रेखांकित करने के उद्देश्य से कि हिन्दी केवल साहित्य की ही भाषा नहीं बल्कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को अंगीकार करके अग्रसर होने में एक सक्षम भाषा है, 'विश्व हिंदी सम्मेलनों' की संकल्पना की गई।
  • एक अन्य उद्देश्य इसे व्यापकता प्रदान करना था न कि केवल भावनात्मक स्तर तक सीमित करना। इस संकल्पना को 1975 में नागपुर में आयोजित 'विश्व हिन्दी सम्मेलन' में मूर्तरूप दिया गया।[1]

अब तक हुए सम्मेलन

कुल नौ 'विश्व हिन्दी सम्मेलन' अब तक हो चुके हैं और अब दसवाँ सम्मेलन 10 से 12 सितम्बर, 2015 तक मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित हो रहा है। इससे पूर्व में आयोजित हो चुके नौ विश्व हिन्दी सम्मेलनों का सारांश निम्न प्रकार है-

पहला सम्मेलन

पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी से 12 जनवरी, 1975 तक नागपुर में आयोजित किया गया था। सम्मेलन का आयोजन 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति', वर्धा के तत्वावधान में हुआ। सम्मेलन से सम्बन्धित राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष महामहिम उपराष्ट्रपति बी. डी. जत्ती थे। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अध्यक्ष मधुकर राव चौधरी उस समय महाराष्ट्र के वित्त, नियोजन व अल्पबचत मन्त्री थे। इस सम्मेलन का बोधवाक्य था- वसुधैव कुटुम्बकम। सम्मेलन के मुख्य अतिथि मॉरीशस के प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम थे, जिनकी अध्यक्षता में मॉरीशस से आये एक प्रतिनिधिमण्डल ने भी सम्मेलन में भाग लिया। इस सम्मेलन में 30 देशों के कुल 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।

दूसरा सम्मेलन

दूसरा सम्मेलन का आयोजन मॉरीशस में हुआ। मॉरीसस की राजधानी पोर्ट लुई में 28 अगस्त से 30 अगस्त, 1976 तक चले इस सम्मेलन के आयोजक राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष, मॉरीशस के प्रधानमंत्री डॉ. सर शिवसागर रामगुलाम थे। सम्मेलन में भारत से तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार नियोजन मन्त्री डॉ. कर्ण सिंह के नेतृत्व में 23 सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल ने भाग लिया था। भारत के अतिरिक्त इस सम्मेलन में 17 देशों के 181 प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया।

तीसरा सम्मेलन

तीसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन भारत की राजधानी दिल्ली में 28 अक्टूबर से 30 अक्टूबर, 1983 तक आयोजित किया गया। सम्मेलन के लिये बनी राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष डॉ. बलराम जाखड़ थे। इसमें मॉरीशस से आये प्रतिनिधिमण्डल ने भी हिस्सा लिया, जिसके नेता हरीश बुधू थे। सम्मेलन के आयोजन में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा ने प्रमुख भूमिका निभायी। सम्मेलन में कुल 6,566 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, जिनमें विदेशों से आये 260 प्रतिनिधि भी शामिल थे। हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा समापन समारोह की मुख्य अतिथि थीं। इस अवसर पर उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा था कि- "भारत के सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के कामकाज की स्थिति उस रथ जैसी है, जिसमें घोड़े आगे की बजाय पीछे जोत दिये गये हों।"

चौथा सम्मेलन

चौथे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन 2 दिसम्बर से 4 दिसम्बर, 1993 तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में किया गया। यह सम्मेलन 17 साल बाद दुबारा मॉरीशस में आयोजित हुआ था। इस बार के आयोजन का उत्तरदायित्व मॉरीशस के कला, संस्कृति, अवकाश एवं सुधार संस्थान मंत्री मुक्तेश्वर चुनी ने सम्भाला। उन्हें राष्ट्रीय आयोजन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इसमें भारत से गये प्रतिनिधिमण्डल के नेता मधुकर राव चौधरी थे। भारत के तत्कालीन गृह राज्यमंत्री रामलाल राही प्रतिनिधिमण्डल के उपनेता थे। सम्मेलन में मॉरीशस के अतिरिक्त लगभग 200 विदेशी प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।

पाँचवाँ सम्मेलन

पाँचवें सम्मेलन का आयोजन त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट ऑफ़ स्पेन में 4 अप्रैल से 8 अप्रैल, 1996 तक हुआ। आयोजक संस्था थी- त्रिनीदाद की हिन्दी निधि। सम्मेलन के प्रमुख संयोजक हिन्दी निधि के अध्यक्ष चंका सीताराम थे। भारत की ओर से इस सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधिमण्डल के नेता अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल माता प्रसाद थे। सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था "प्रवासी भारतीय और हिन्दी"। जिन अन्य विषयों पर इसमें ध्यान केन्द्रित किया गया, वे थे- हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास, कैरेबियाई द्वीपों में हिन्दी की स्थिति एवं कम्प्यूटर युग में हिन्दी की उपादेयता। सम्मेलन में भारत से 17 सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल ने हिस्सा लिया। अन्य देशों के 257 प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए थे।

छठा सम्मेलन

छठा 14 सितम्बर से 18 सितम्बर, 1999 तक लंदन में आयोजित किया गया। यू.के. हिन्दी समिति, गीतांजलि बहुभाषी समुदाय और बर्मिंघम भारतीय भाषा संगम, यॉर्क ने मिलजुल कर इसके लिये राष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन किया, जिसके अध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार और संयोजक डॉ. पद्मेश गुप्त थे। सम्मेलन का केंद्रीय विषय था- हिन्दी और भावी पीढ़ी। सम्मेलन में विदेश राज्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल ने भाग लिया। प्रतिनिधिमण्डल के उपनेता थे, प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ, विद्यानिवास मिश्र। इस सम्मेलन का ऐतिहासिक महत्त्व इसलिए है, क्योंकि यह हिन्दी को राजभाषा बनाये जाने के 50वें वर्ष में आयोजित किया गया था। यही वर्ष सन्त कबीर की छठी जन्मशती का भी था। सम्मेलन में 21 देशों के 700 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें भारत से 350 और ब्रिटेन से 250 प्रतिनिधि शामिल हुए थे।

सातवाँ सम्मेलन

सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन सुदूर सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में हुआ। यह सम्मेलन 6 जून से 9 जून, 2003 तक आयोजित हुआ। इक्कीसवीं सदी में आयोजित यह पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन था। सम्मेलन के आयोजक जानकीप्रसाद सिंह थे और इसका केन्द्रीय विषय था- विश्व हिन्दी: नई शताब्दी की चुनौतियाँ। सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश राज्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने किया। सम्मेलन में भारत से 200 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें 12 से अधिक देशों के हिन्दी विद्वान व अन्य हिन्दी सेवी सम्मिलित हुए। सम्मेलन का उद्घाटन 5 जून को हुआ था। यह भी एक संयोग ही था कि कुछ दशक पहले इसी दिन सूरीनामी नदी के तट पर भारतवंशियों ने पहला कदम रखा था।

आठवाँ सम्मेलन

आठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन 13 जुलाई से 15 जुलाई, 2007 तक संयुक्त राज्य अमरीका की राजधानी न्यूयॉर्क में हुआ। इस सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था- विश्व मंच पर हिन्दी। इसका आयोजन भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय द्वारा किया गया था। न्यूयॉर्क में सम्मेलन के आयोजन से सम्बन्धित व्यवस्था अमरीका की हिन्दी सेवी संस्थाओं के सहयोग से भारतीय विद्या भवन ने की थी। इसके लिए एक विशेष वेवसाइट का निर्माण भी किया गया। इसे प्रभासाक्षी.कॉम के समूह सम्पादक बालेन्दु शर्मा दाधीच के नेतृत्व वाले प्रकोष्ठ ने विकसित किया था।

नौवाँ सम्मेलन

नौवाँ सम्मेलन वर्ष 2012 में 22 सितम्बर से 24 सितम्बर तक दक्षिण अफ़्रीका के शहर जोहांसबर्ग में हुआ। इस सम्मेलन में 22 देशों के 600 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें लगभग 300 भारतीय शामिल हुए थे। सम्मेलन में तीन दिन चले मंथन के बाद कुल 12 प्रस्ताव पारित किए गए और विरोध के बाद एक संशोधन भी किया गया।

दसवाँ हिन्दी विश्व सम्मेलन

भारतकोश संस्थापक श्री आदित्य चौधरी को माननीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह 'विश्व हिन्दी सम्मान' से सम्मानित करते हुए

दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन वर्ष 2015 में 10 सितम्बर से 12 सितम्बर तक भारत में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित हुअा। इस दसवें सम्मेलन का मुख्य कथन रहा- "हिन्दी जगत : विस्तार एवं सम्भावनाएँ"। कई प्रौद्योगिक कंपनियों ने भी इस सम्मेलन में हिस्सा लिया, जिसमें कई विदेशी कंपनियाँ जैसे- गूगल, एप्पल, माइक्रोसोफ़्ट, वेबदुनिया हिन्दी के साथ-साथ कई भारतीय संस्थाएँ जैसे- सी-डेक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, भारतकोश, राष्ट्रीय विज्ञान प्रसार केन्द्र भी शामिल रहीं।

भारतकोश संस्थापक श्री आदित्य चौधरी जी को 'विश्व हिन्दी सम्मान'

भारतकोश संस्थापक श्री आदित्य चौधरी जी को दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में भारतकोश का ऑनलाइन प्रकाशन एवं छात्रों को नि:शुल्क कम्प्यूटर शिक्षा देने के लिए भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा निमंत्रण मिला। भारत के माननीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 12 सितम्बर, 2015 को आदित्य चौधरी जी को 'विश्व हिन्दी सम्मान' से सम्मानित किया।

ग्यारहवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन

11वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन विदेश मंत्रालय द्वारा मॉरीशस सरकार के सहयोग से 18 अगस्त-20 अगस्त, 2018 तक मॉरीशस में आयोजित किया जा रहा है। 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन को मॉरीशस में आयोजित करने का निर्णय सितम्बर, 2015 में भारत के भोपाल शहर में आयोजित 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में लिया गया था।

भारत के अलावा मॉरीशस ही दुनिया का एकमात्र देश है, जो 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजन द्वारा तीसरी बार विश्व हिन्दी सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन का पहला सत्र भोपाल से मॉरीशस तक होगा, जिसमें 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में पारित अनुशंसाओं पर की गई कार्रवाई से संबन्धित एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी। 11वां विश्व हिन्दी सम्मेलन तकनीक और डिजिटल प्रकाशन को भी समर्पित होगा। साँचा:विश्व हिन्दी सम्मेलन श्रृंखला


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विश्व हिंदी सम्मेलन – पृष्ठभूमि (हिन्दी) विश्व हिंदी सम्मेलन की आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 7 अगस्त, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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