शीतला अष्टमी व्रत

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शीतला अष्टमी व्रत
शीतला अष्टमी
विवरण 'शीतला अष्टमी' का व्रत माँ शीतला को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस व्रत के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। एक दिन पहले ही तैयार बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।
तिथि कोई माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को, कोई वैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी को तो कोई चैत्र के कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी को इस पर्व को मनाता है।
अन्य नाम 'बूढ़ा बसौड़ा', 'बसौड़ा', 'बासौड़ा', 'लसौड़ा', 'बसियौरा'
वर्ष 2024 2 अप्रॅल
विशेष इस व्रत में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता, मात्र बासी भोजन ही ग्रहण किया जाता है।
मान्यता मान्यता है कि शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करती हैं और अपने भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं।
संबंधित लेख शीतला चालीसा, शीतला माता की आरती, शीतला मन्दिर गुड़गाँव
अन्य जानकारी भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार महिलाएं अपने बच्चों की सलामती, आरोग्यता व घर में सुख-शांति के लिए 'रंग पंचमी' से अष्टमी तक माँ शीतला को बसौड़ा बनाकर पूजती हैं।
अद्यतन‎

शीतला अष्टमी (अंग्रेज़ी: Sheetla Ashtami) का पर्व किसी न किसी रूप में भारत के हर कोने में मनाया जाता है। कोई माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को, कोई वैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी को तो कोई चैत्र के कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी को इस पर्व को मनाता है। शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करती हैं और अपने भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं। इस पर्व को 'बूढ़ा बसौड़ा', 'बसौड़ा', 'बासौड़ा', 'लसौड़ा' या 'बसियौरा' भी कहा जाता है।

विशेष तिथि

वैसे तो शीतला पूजन भिन्न-भिन्न जगहों पर अलग-अलग तिथियों पर किया जाता है, किन्तु विशेष कर चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला सप्तमी-अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को 'बसोरा' (बसौड़ा) भी कहते हैं। 'बसोरा' का अर्थ है- 'बासी भोजन'। इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रख देते हैं, फिर दूसरे दिन प्रात:काल महिलाओं द्वारा शीतला माता का पूजन करने के बाद घर के सब व्यक्ति बासी भोजन को खाते हैं। जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो, उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए।

वर्ष 2024

शीतला अष्टमी हिन्दुओं का त्योहार है जिसमें शीतला माता के व्रत और पूजन किये जाते हैं। ये होली सम्पन्न होने के अगले सप्ताह में बाद में करते हैं। प्रायः शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार के दिन ही की जाती है। भगवती शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट होता है। शीतला अष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार कर लिया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इस कारण से ही संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के नाम से विख्यात है।

पूजा मुहूर्त

  • मंगलवार 2 अप्रैल, 2024
  • शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त: सुबह 06:10 बजे से शाम 06:40 बजे तक
  • अष्टमी तिथि आरंभ: 1 अप्रैल, 2024 को रात्रि 09:09 बजे से
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 2 अप्रैल, 2024 को रात्रि 08 बजकर 08 मिनट पर

पौराणिक उल्लेख

हिन्दू व्रतों में केवल 'शीतलाष्टमी' का व्रत ही ऐसा है, जिसमें बासी भोजन किया जाता है। इसका विस्तृत उल्लेख पुराणों में मिलता है। शीतला माता का मंदिर वट वृक्ष के समीप ही होता है। शीतला माता के पूजन के बाद वट का पूजन भी किया जाता है। प्राचीन मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती हैं, उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्ण कर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं।

कथा

  • लोक किंवदंतियों के अनुसार 'बसौड़ा' की पूजा माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। कहते हैं कि एक बार किसी गांव में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे तो माँ को गांववासियों ने गरिष्ठ भोजन प्रसाद स्वरूप चढ़ा दिया। शीतलता की प्रतिमूर्ति माँ भवानी का गर्म भोजन से मुंह जल गया तो वे नाराज हो गईं और उन्होंने कोप दृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी। केवल एक बुढ़िया का घर सुरक्षित बचा हुआ था। गांव वालों ने जाकर उस बुढ़िया से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढि़या ने माँ शीतला को गरिष्ठ भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर माँ को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया, जिससे माँ ने प्रसन्न होकर बुढ़िया का घर जलने से बचा लिया। बुढ़िया की बात सुनकर गांव वालों ने माँ से क्षमा मांगी और 'रंग पंचमी' के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर माँ का बसौड़ा पूजन किया।
  • एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक बुढ़िया व उसकी दो बहुओं ने व्रत रखा। उस दिन सभी को बासी भोजन ग्रहण करना था। इसलिये पहले दिन ही भोजन पका लिया गया था, लेकिन दोनों बहुओं को कुछ समय पहले ही संतान की प्राप्ति हुई थी। कहीं बासी भोजन खाने से वे व उनकी संतान बिमार न हो जायें, इसलिये बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा अर्चना के पश्चात पशुओं के लिये बनाये गये भोजन के साथ अपने लिये भी रोटी सेंक कर उनका चूरमा बनाकर खा लिया। जब सास ने बासी भोजन ग्रहण करने को कहा तो काम का बहाना बनाकर टाल गईं। उनके इस कृत्य से माता कुपित हो गईं और उन दोनों के नवजात शिशु मृत मिले। जब सास को पूरी कहानी पता चली तो उसने दोनों को घर से निकाल दिया। दोनों अपने शिशु के शवों को लिये जा रही थीं कि एक बरगद के पास रुक कर विश्राम के लिये ठहर गईं। वहीं पर ओरी व शीतला नामक दो बहनें भी थीं जो अपने सर में पड़ी जूंओं से बहुत परेशान थीं। दोनों बहुओं को उन पर दया आयी और उनकी मदद की। सर से जूंए कम हुईं तो उन्हें कुछ चैन मिला और बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाये। उन्होंने कहा कि हरी भरी गोद ही लुट गई है। इस पर शीतला ने लताड़ लगाते हुए कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा। बहुओं ने पहचान लिया कि साक्षात माता हैं तो चरणों में पड़ गईं और क्षमा याचना की। माता को भी उनके पश्चाताप करने पर दया आयी और उनके मृत बालक जीवित हो गये। तब दोनों खुशी-खुशी गांव लौट आयीं। इस चमत्कार को देखकर सब हैरान रह गये। इसके बाद पूरा गांव माता को मानने लगा।[1]

महत्त्व

भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार महिलाएं अपने बच्चों की सलामती, आरोग्यता व घर में सुख-शांति के लिए 'रंग पंचमी' से अष्टमी तक माँ शीतला को बसौड़ा बनाकर पूजती हैं। बसौड़ा में मीठे चावल, कढ़ी, चने की दाल, हलुवा, रावड़ी, बिना नमक की पूड़ी, पूए आदि एक दिन पहले ही रात्रि में बनाकर रख लिए जाते हैं। तत्पश्चात् सुबह घर व मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कर महिलाएं शीतला माता को बसौड़ा का प्रसाद चढ़ाती हैं। पूजा करने के बाद घर की महिलाओं ने बसौड़ा का प्रसाद अपने परिवारों में बांट कर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करके माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • इस व्रत में मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि एक दिन पहले से ही बनाए जाते हैं अर्थात व्रत के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता।
  • व्रती रसोईघर की दीवार पर 5 अंगुली घी में डुबोकर छापा लगाता है। इस पर रोली, चावल, आदि चढ़ाकर माँ के गीत गाए जाते हैं।
  • इस दिन शीतला स्रोत तथा शीतला माता की कथा भी सुननी चाहिए।
  • रात्रि में दीपक जलाकर एक थाली में भात, रोटी, दही, चीनी, जल, रोली, चावल, मूँग, हल्दी, मोठ, बाजरा आदि डालकर मन्दिर में चढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही चौराहे पर जल चढ़ाकर पूजा करते हैं। इसके बाद मोठ, बाजरा का बयाना निकाल कर उस पर रुपया रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श कर उन्हें देना चाहिए। उसके पश्चात् किसी वृद्धा को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए।

इन्हें भी देखें: शीतला चालीसा, शीतला माता की आरती एवं शीतला मन्दिर गुड़गाँव


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इस दिन मनाई जाएगी शीतला अष्टमी (हिंदी) india.com। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2020।

बाहरी कड़ियाँ

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