संगति का अंग -कबीर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
संगति का अंग -कबीर
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

हरिजन सेती रूसणा, संसारी सूँ हेत ।
ते नर कदे न नीपजैं, ज्यूं कालर का खेत ॥1॥

मूरख संग न कीजिए, लोहा जलि न तिराइ ।
कदली-सीप-भूवंग मुख, एक बूंद तिहँ भाइ ॥2॥

माषी गुड़ मैं गड़ि रही, पंख रही लपटाइ ।
ताली पीटै सिरि धुनैं, मीठैं बोई माइ ॥3॥

ऊँचे कुल क्या जनमियां, जे करनी ऊँच न होइ ।
सोवरन् कलस सुरै भर्‌या, साधू निंदा सोइ ॥4॥

`कबिरा' खाई कोट की, पानी पिवै न कोइ ।
जाइ मिलै जब गंग से, तब गंगोदक होइ ॥5॥

`कबीर' तन पंषो भया, जहाँ मन तहाँ उड़ि जाइ ।
जो जैसी संगति करै, सो तैसे फल खाइ ॥6॥

काजल केरी कोठड़ी, तैसा यहु संसार ।
बलिहारी ता दास की, पैसि र निकसणहार ॥7॥



संबंधित लेख